झूठ, ग़ीबत और तोहमत करने वाला भी ज़ालिम है: मौलाना सैयद रूहे ज़फ़र रिज़वी
तक़वा, हक़ूक़ुल इबाद और वक़्फ़ कानून पर दिया बेबाक बयान
मुंबई, 24 अक्टूबर 2025 — ख़ोजा शिया अस्ना-अशरी जामा मस्जिद, पाला गली में आज की नमाज़-ए-जुमा हज़रत हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लमीन मौलाना सैयद रूहे ज़फ़र रिज़वी साहब क़िब्ला की इमामत में अदा की गई।
अपने ख़ुत्बे (संदेश) में मौलाना ने तक़वा-ए-इलाही यानी ईश्वर से डरने और उसकी आज्ञा पालन की नसीहत करते हुए फ़रमाया कि तक़वा से दिल मुनव्वर (प्रकाशित) होते हैं और क़यामत के दिन नजात (मोक्ष) मिलती है।
🌿 इंसान की नजात उसके अपने अमल में है
मौलाना ने फ़रमाया कि हर इंसान नजात चाहता है और अल्लाह ने नजात इंसान के अपने हाथों में दी है।
“जैसा अमल करोगे, वैसी ही नजात पाओगे,”
उन्होंने कहा — इंसान की मुक्ति का ज़ामिन (ज़िम्मेदार) खुद उसका अमल है।
अल्लाह ने जो वाजिब (अनिवार्य) किया है, उसे अदा करना और जो हराम (निषिद्ध) ठहराया है, उससे बचना ही असली तक़वा है।
मौलाना ने कुरआनी आयतों और अहले बैत (अ.) की रिवायतों का हवाला देते हुए कहा कि अमल-ए-सालेह (नेकी का काम) में सिर्फ़ अल्लाह के हक़ की अदायगी नहीं बल्कि बंदों के हक़ अदा करना भी उतना ही ज़रूरी है।
“जो अल्लाह की इबादत में मग्न है, लेकिन बंदों के हक़ अदा नहीं करता — उसका अमल मुकम्मल नहीं होता।”
⚖️ झूठ, ग़ीबत और तोहमत करने वाला भी ज़ालिम
मौलाना सैयद रूहे ज़फ़र रिज़वी ने कहा:
“सिर्फ़ तलवार या हथियार से हमला करने वाला ज़ालिम नहीं होता, बल्कि झूठ बोलने वाला, ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई करने वाला) और तोहमत (इल्ज़ाम) लगाने वाला भी ज़ालिम है।”
उन्होंने चेताया कि जो इन ज़ुल्मों से खुद को बचा लेगा, उसका अमल अमल-ए-सालेह कहलाएगा।
कुरआन के मुताबिक़,
“क़यामत के दिन राई के दाने के बराबर भी नेकी या बुराई का हिसाब लिया जाएगा।”
🤲 हक़ूक़ुल इबाद की अहमियत और इमाम अली (अ.) का उसूल
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.) की हदीस बयान करते हुए मौलाना ने कहा:
“शिर्क वो गुनाह है जो कभी माफ़ नहीं होगा, लेकिन अल्लाह अपने हक़ को माफ़ कर सकता है — मगर बंदों के हक़ तब तक माफ़ नहीं होंगे जब तक वो शख्स खुद माफ़ न करे जिस पर ज़ुल्म हुआ है।”
उन्होंने कहा कि इमाम अली (अ.) की यह बात आज भी हमारे लिए आईना है:
“दुनिया की तमाम तकलीफ़ें मेरे लिए आसान हैं, मगर ये मुश्किल है कि मेरी गर्दन पर किसी का हक़ हो।”
मौलाना ने कहा,
“अगर हम इमाम अली (अ.) के शिया हैं, तो हमें रोज़ अपना मुहासिबा (आत्मनिरीक्षण) करना चाहिए — कहीं हमारी गर्दन पर किसी का हक़ तो नहीं?”
💔 कारवाने कर्बला से सबक़
इमाम हुसैन (अ.) की रिवायत का ज़िक्र करते हुए मौलाना ने कहा:
“शब-ए-आशूर इमाम हुसैन (अ.) ने अपने असहाब से फ़रमाया कि जिसकी गर्दन पर किसी का हक़ है, वो चला जाए। यानी जो दूसरों का हक़ नहीं चुकाता, वह कारवाने हक़ का हिस्सा नहीं हो सकता।”
उन्होंने कहा कि ये हदीस हमें सिखाती है कि असली दीनी ज़िंदगी सिर्फ़ इबादत नहीं बल्कि इंसाफ़ और अदायगी-ए-हक़ पर आधारित है।
📖 हदीस-ए-नबवी और ग़ीबत का नुकसान
मौलाना ने हदीस-ए-नबवी बयान करते हुए कहा:
“सबसे बड़ा घाटा उस इंसान का है जिसकी गर्दन पर लोगों का हक़ है, जिसने ग़ीबत की, तोहमत लगाई, दूसरों की तौहीन की, या उनके ख़िलाफ़ साज़िशें कीं।”
उन्होंने कहा कि जो इंसान दूसरों के हक़ मारता है, वो न केवल दुनिया में बल्कि आख़िरत में भी घाटे में रहेगा।
🕊️ अज़ा-ए-फ़ातिमी में इख़लास और एहतजाज का संदेश
मौलाना ने माह-ए-जमादी-उल-अव्वल की मुनासिबत से कहा:
“अहले बैत (अ.) का ज़िक्र इख़लास (निष्कपटता) के साथ करें, ख़ास तौर पर अज़ा-ए-फ़ातिमी में सच्चे दिल से शिरकत करें।”
उन्होंने मुस्लिम देशों की सियासत और “शर्म-अश-शेख़” के मुआहिदे को “शर्मनाक समझौता” बताते हुए कहा कि:
“अगर मुस्लिम सरबराह सिर्फ़ संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पढ़ लेते, तो देखते कि हज़ारों मासूम बच्चे और निर्दोष लोग उन हमलों में मारे गए। इस समझौते को 14 दिन बीत चुके हैं, मगर उसकी किसी एक भी शर्त पर अमल नहीं हुआ।”
मौलाना ने कहा कि मुस्लिम मुल्कों को दुश्मनों से समझौते की बजाय इस्तेक़ामत (दृढ़ता) दिखानी चाहिए थी।
🕌 वक़्फ़ कानून और उसकी मुख़ालफ़त
वक़्फ़ कानून पर बात करते हुए मौलाना सैयद रूहे ज़फ़र रिज़वी ने कहा:
“न सिर्फ़ मुसलमान, बल्कि हर आज़ाद ख़याल इंसान जानता है कि यह कानून मुनासिब नहीं है।”
उन्होंने लोगों से अपील की कि कानूनी दायरे में रहकर इस कानून के ख़िलाफ़ एहतजाज (विरोध) करें।
मौलाना ने कहा:
“हुकूमत ने 5 दिसंबर तक का वक़्त दिया है कि सारे औक़ाफ़ को रजिस्टर कराया जाए। इसलिए आपसी मतभेद और मुतवल्लियों के झगड़ों को छोड़कर हर छोटे-बड़े वक़्फ़ को जल्द से जल्द रजिस्टर कराएँ।”
उन्होंने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इक़दामात की हिमायत करते हुए कहा:
“बोर्ड ने अब तक सारे काम क़ानून के दायरे में किए हैं और इंशा अल्लाह आगे भी यही करेंगे। हमें उनकी पूरी ताईद करनी चाहिए।”
🌱 नौजवानों की तालीम और तरक़्क़ी पर ज़ोर
आख़िर में मौलाना सैयद रूहे ज़फ़र रिज़वी ने कहा:
“क़ौम की असली ताक़त उसके नौजवान हैं। हमें अपनी क़ौम के बच्चों की तालीम और तरबियत पर ख़ास ध्यान देना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ने के लिए हौसला देना चाहिए।”
ख़ुत्बा-ए-जुमा का यह संदेश न सिर्फ़ इबादतगाहों के लिए, बल्कि समाज के हर तबक़े के लिए एक आईना है — कि नजात सिर्फ़ सजदे में नहीं, बल्कि सच्चाई, अमानतदारी और इंसाफ़ में छिपी है।
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