“बिजनौर—जहाँ मस्जिद की सादगी, दरगाह की रूहानियत और करबला की मिट्टी आज भी मौलाना गुलाम अस्करी साहब कब्र को अपनी आगोश में लेकर दिलों को सुकून देती है”

निदा टीवी डेस्क

लखनऊ का बिजनौर… यह सिर्फ़ एक मोहल्ला नहीं, बल्कि रूहानियत, तहज़ीब और इख़लास की वो पाक सरज़मीं है जिसने सदियों से दिलों में इबादत और इंसानियत का चिराग़ रोशन रखा है। आज यह इलाक़ा आधिकारिक तौर पर नगर निगम का हिस्सा बन चुका है—मगर बिजनौर की असल पहचान उसकी मिट्टी से उठती उस खुशबू में है, जो अदब, इल्म और आध्यात्मिकता का पैग़ाम देती है।

एक रूहानी सफ़र—20 नवंबर की याद

20 नवंबर को जब मुझे खतीब-ए-आज़म मौलाना सैयद गुलाम अस्करी साहब के आबाई वतन में उनके घर जाने का मौका मिला, तो दिल एक अद्भुत एहसास से भर गया। वो घर, वह माहौल, वह सन्नाटा जो इबादत की अज़ान लग रहा था—खासतौर पर इमामबाड़े की सादगी और रूहानियत ने दिल को झकझोर दिया। ऐसा लगा जैसे हर कोना एक दुआ की तस्बीह पढ़ रहा हो।

इस खानावादे के चश्मों चिराग में से एक मौलाना नक़ी अस्करी साहब ने बताया कि करबला स्थित आरामगाह अब नए अंदाज़ में तामीर होगी—जहाँ सिर्फ़ एक इमारत नहीं खड़ी होगी, बल्कि मौलाना गुलाम अस्करी साहब की खिदमत, मशक्कत और उम्मत के दर्द की दास्तां दोबारा ज़िंदा होगी।

मस्जिद और दरगाह—सादगी का मरकज़

बिजनौर की मस्जिद और दरगाह हज़रत अब्बास अलमदार (अ.स.) की सादगी और रूहानियत की जितनी तारीफ की जाए कम है। वहाँ की हवा में जो यकीन और सुकून है, वो इबादत करने वाले दिलों को रोशनी और राहत देता है। हर नमाजी वहां जाकर ऐसा महसूस करता है जैसे करबला की सरज़मीन पर खड़ा हो।

और यह भी दिलचस्प है कि नए लखनऊ की आलीशान कॉलोनियों में रहने वाली कई नुमाया और नामवर शख्सियतें हर जुमे की नमाज़ अदा करने यहीं आती हैं—क्योंकि उन्हें पता है कि सुकून मस्जिदों की सजावट में नहीं, बल्कि सादगी और ताबेदारी में होता है।

मौलाना गुलाम अस्करी साहब—नेकी और तालीम का अलमबरदार

भारत में तंजीम-उल-मकातिब की तामीर कर के मौलाना गुलाम अस्करी साहब ने जो इंसानी खिदमत का झंडा बुलंद किया, वह आज 1200 से ज्यादा मकातिब के रूप में चमक रहा है। जहाँ लाखों बच्चे कुरान सीखकर अपने घरों को रोशन कर रहे हैं, और समाज में तहज़ीब, तमीज़, नमाज़ और इंसानियत की मिसालें पेश कर रहे हैं।

आज भी लोग मौलाना साहब के वतन बिजनौर आकर ज़ियारत करते हैं, मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं, दरगाह पर हाज़री देते हैं और एक अलग ही सुकून व इबादत की कैफ़ियत महसूस करते हैं। यह जगह हर अकीदतमंद के दिल में एक नूर बनकर रौशन है।


इमामे-जमाअत—बिजनौर की चमकती पहचान

इस पवित्र जगह के इमामे जमाअत, नवजवान मौलाना सैयद मोहम्मद तकी नक़वी अपनी शराफत, सादगी, नेकियों और इल्मी तमीज़ की वजह से आज शिया कम्युनिटी की एक बेमिसाल पहचान बन चुके हैं। लोग सिर्फ़ नमाज़ के लिए नहीं, बल्कि उनके अख़लाक़ और ईमानदारी के लिए भी उनसे मोहब्बत रखते हैं। उनकी नमाज़, उनका अंदाज़ और उनकी दुआएं दिलों पर असर करती हैं।

बदलते बिजनौर की दुआ

आज बिजनौर बदल रहा है—सड़कें, सुविधाएँ, तामीरात, सब कुछ तरक़्क़ी की तरफ बढ़ रहा है। मगर दुआ है कि इसका रूहानी रंग हमेशा उसी तरह बाक़ी रहे, जैसे सदियों से है।

मौलाना गुलाम अस्करी साहब की खिदमत, इस सरज़मीं की पवित्रता, और तंजीम-उल-मकातिब का उजाला क़याम-ए-क़ियामत तक रोशन रहे।

आमीन या रब्बल आलमीन।

अल्फ़ाज़-ए-दिल

ये वादी-ए-बिजनौर है, जहाँ हर सांस में इबादत की महक है,
जहाँ सादगी भी सजदा करती है, और रूहानियत भी नमाज़ पढ़ती है। अगर आपको भी मौका मिले तो इस सरजमी पर सजदा जरूर कीजिएगा।


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