अयोध्या: मौलाना वसी हसन खां साहब, एक ऐसा नाम जो आलिम-ए-दीन की दुनिया में अपनी अमलपसंदी और बेहतरीन तकरीरों की वजह से पूरी दुनिया में मकबूल है। अपनी नसीहतों और इंकलाबी अंदाज से उन्होंने न सिर्फ मजलिसों और महफिलों को रौशन किया, बल्कि अमल और जिम्मेदारी का वह पैगाम भी दिया, जो आज के दौर के मदरसों, तालीमगाहों और समाज के लिए एक मिसाल है।
वसीका अरेबिक कॉलेज से जुड़ाव और इस्तीफा
मौलाना वसी हसन खान साहब ने अपनी तालीम वसीका अरेबिक कॉलेज, फैजाबाद में हासिल की। यह वही कॉलेज है जिसे उनके बुजुर्ग, मौलाना वसी साहब क़िब्ला ने तामीर किया था। मौलाना तक़िउल हैदरी जैसे जहीन आलिम की शागिर्दी में रहकर उन्होंने इल्म का नूर हासिल किया और बाद में उसी कॉलेज में प्रोफेसर के तौर पर अपनी सेवाएं दीं।
उनकी तकरीरें और तालीम देने का अंदाज इतना असरदार था कि उन्होंने मजलिसों और महफिलों में अपनी जगह बना ली। उनकी मसरूफियत इतनी बढ़ गई कि वह कॉलेज को समय नहीं दे पा रहे थे। यह महसूस करते हुए उन्होंने 2018 में इस्तीफा दे दिया। हालांकि, कॉलेज की मैनेजमेंट ने उनके इस्तीफे को नामंजूर कर दिया।
लेकिन, मौलाना वसी हसन खान साहब ने हमेशा जिम्मेदारी को अहमियत दी। उनका मानना था कि अगर वह कॉलेज को वक्त नहीं दे पा रहे हैं, तो उन्हें इस पद पर बने रहने का कोई हक नहीं। आखिरकार, जून 2024 में उन्होंने दोबारा इस्तीफा दिया। इस बार भी मैनेजमेंट ने उन्हें रोकने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्होंने अपनी बात पर डटे रहते हुए इस्तीफा दे दिया।
तनख्वाह और पेंशन का त्याग
मौलाना वसी हसन खान साहब की तनख्वाह ₹1,10,000 थी, जो उनके पद और अनुभव के हिसाब से काफी ऊंची थी। इसके बावजूद, उन्होंने इस तनख्वाह और बुढ़ापे में सहारे के तौर पर मिलने वाली पेंशन की परवाह नहीं की। उन्होंने यह साबित किया कि पैसा और आरामदायक जिंदगी से ज्यादा अहम है इंसान का जमीर और जिम्मेदारी का एहसास।
उनका यह कदम उन तमाम लोगों के लिए एक सबक है जो अपनी नौकरी को सिर्फ तनख्वाह के लिए निभाते हैं, लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को सही तरीके से नहीं निभाते।
समाज के लिए एक पैगाम
मौलाना वसी हसन खान साहब का यह फैसला उन लोगों के लिए एक पैगाम है जो बिना मेहनत किए मुफ्त की तनख्वाह लेते हैं। वह कहते हैं:
"जब मैं अपना वक्त नहीं दे सकता, तो मुझे इस पोस्ट पर रहने का कोई हक नहीं।"
उनकी यह सोच हमें सिखाती है कि एक आलिम या किसी भी पेशे में काम करने वाले व्यक्ति का पहला फर्ज अपनी जिम्मेदारी को निभाना है। यह पैगाम खास तौर पर आज के मदरसों और तालीमगाहों के उन लोगों के लिए है, जो अपनी ड्यूटी में कोताही बरतते हैं।
हुसैनाबाद ट्रस्ट और पेश इमामों का उदाहरण
वर्तमान समय में, हुसैनाबाद ट्रस्ट के कुछ पेश इमामों की अनियमितता और जिम्मेदारी से भागने की प्रवृत्ति ने समाज में एक नई बहस को जन्म दिया है। कई मस्जिदों के पेश इमामों की मौजूदगी में कमी पाई जाती है, जो नमाज के वक्त उपस्थिति में लापरवाही बरतते हैं। उनका कहना है कि "मोमिनीन नहीं आते," जबकि एक मोमिन का कहना था कि "हमेशा आधा दर्जन से ज्यादा लोग मौजूद रहते हैं, यह सिर्फ एक बहाना है और जिम्मेदारी से बचने का तरीका है।"
कुछ लोगों ने इसे एक "स्टेटस सिंबल" बना लिया है और सरकारी हुसैनाबाद ट्रस्ट में पेश नमाज की नियुक्ति करवा कर अपनी स्थिति को ऊंचा करने का प्रयास किया है, जबकि वे खुद अपनी जिम्मेदारियों को सही से नहीं निभाते। यह स्थिति समाज के लिए एक चेतावनी है कि अगर किसी का इरादा सिर्फ पद और तनख्वाह का है, तो वह सच्चे इमाम और आलिम की भूमिका निभाने में सफल नहीं हो सकता।
एक आलिम-ए-अमल का किरदार
मौलाना वसी हसन खान साहब का किरदार हमें बताता है कि एक सच्चा आलिम वही होता है जो अपने अमल से समाज को राह दिखाए। उनकी तकरीरें सिर्फ नसीहतें नहीं, बल्कि अमल का एक इनक़लाबी पैगाम हैं। उनकी बातें मजलिसों से लेकर आम इंसान तक, हर जगह दिलों को छूती हैं।
दुनिया में मकबूलियत
मौलाना वसी हसन खान साहब की तकरीरें भारत ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में सुनी जाती हैं। उनकी हकपरस्ती और अमल की नसीहतें इंसानों को उनकी जिम्मेदारियों की याद दिलाती हैं। उन्होंने साबित किया कि मौला अली के गुलाम वही होते हैं, जो अपने जमीर की सुनें और अमल करें।
अखलाक और अमल का सबक
मौलाना वसी हसन खान साहब का यह कदम सिर्फ एक इस्तीफा नहीं, बल्कि एक इनक़लाब है। यह उन सभी के लिए एक पैगाम है जो तनख्वाह को अपना हक समझते हैं, लेकिन जिम्मेदारी को नहीं निभाते।
उनकी यह सोच और अमल हमें सिखाता है कि अगर आप अपनी ड्यूटी को सही तरीके से नहीं निभा रहे हैं, तो आपको उस पद पर रहने का कोई हक नहीं। यह पैगाम हर उस इंसान के लिए है जो समाज और अपने काम के प्रति ईमानदार नहीं है।
मौलाना वसी हसन खान साहब जैसे लोग समाज के लिए मिसाल हैं
मौलाना वसी हसन खान साहब जैसे लोग इस बात की मिसाल हैं कि आज भी समाज में ऐसे अल्लाह वाले और अली वाले मौजूद हैं, जो अपने किरदार से इंसानियत और जिम्मेदारी का सबक देते हैं। उनकी यह कहानी एक रोशनी है, जो हमें हमारे फरायज और जिम्मेदारियों का एहसास कराती है।
उनकी जिंदगी और फैसले हर उस इंसान के लिए एक आईना हैं, जो अपनी जिम्मेदारी और जमीर को भूलकर आराम की जिंदगी को चुनता है। मौलाना वसी हसन खान साहब ने दिखा दिया कि सच्चा मुसलमान वही है, जो अपने अमल और किरदार से दूसरों को राह दिखाए।
मौलाना वसी हसन खान मालों दौलत, जिम्मेदारी और शोहरत के बीच में इम्तेहान में हुए पास, बातों में तकरीर में बढ़ा वजन और अहमियत, आज के उलेमा और आवाम के लिए पैगाम
तकी हसनैन मुस्तफा
हमारी वेबसाइट का उद्देश्य
समाज में सच्चाई और बदलाव लाना है, ताकि हर व्यक्ति अपने हक के साथ खड़ा हो सके। हम आपके सहयोग की अपील करते हैं, ताकि हम नाजायज ताकतों से दूर रहकर सही दिशा में काम कर सकें।
कैसे आप मदद कर सकते हैं:
आप हमारी वेबसाइट पर विज्ञापन देकर हमें और मजबूती दे सकते हैं। आपके समर्थन से हम अपने उद्देश्य को और प्रभावी ढंग से पूरा कर सकेंगे।
हमारा बैंक अकाउंट नंबर:
- बैंक का नाम: Bank Of India
- खाता संख्या: 681610110012437
- IFSC कोड: BKID0006816
हमारे साथ जुड़कर आप हक की इस राह में हमारा साथी बन सकते हैं। आपके सहयोग से हम एक मजबूत और सच्ची पहल की शुरुआत कर सकेंगे।