क़ौम ने भुला दिया, मगर मशहद की ख़ाक आज भी गवाही देती है —यह शख़्स ‘ख़तीब–उल–ईमान’ है,मौलाना ताहिर जरवली साहब की बरसी पर खास

निदा टीवी डेस्क/अली मुस्तफा

लखनऊ ,तारीख़ की किताबों में दर्ज कुछ नाम काग़ज़ पर नहीं,

दिलों की धड़कनों में लिखे जाते हैं।
खतीब उल ईमान मौलाना ताहिर जरवली मरहूम ऐसी ही नूरानी शख़्सियत थे—
जिन्होंने अपनी ज़िंदगी का हर पल सिर्फ़ और सिर्फ़ क़ौम की तरक्की, तालीम की इज़्ज़त और इंसानी ख़िदमत पर कुर्बान कर दिया।

जब भी मैं मशहद-ए-मुक़द्दस पहुँचता हूँ,
इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के हरम की रूहानी हवा महसूस करता हूँ,
और मौलाना के कब्र पर खड़ा होकर सूरह फ़ातिहा पढ़ता हूँ,
तो दिल की गहराई से एक आवाज़ उठती है:

“ऐ ख़ुदा! इस क़ौम को समझ आया भी या नहीं कि उसने कौन-सा हीरा खो दिया?”


🕌 शिया कॉलेज — एक इमारत नहीं, उनकी रूह की सांस

मौलाना ताहिर जरवली की सबसे अज़ीम खिदमत—
शिया डिग्री कॉलेज लखनऊ का पुनरुत्थान।

उन्होंने कहा:

“शिया कॉलेज सिर्फ नाम का शिया न रहे, बल्कि मुकम्मल शिया रहे।”

इसलिए उन्होंने:

  • शिया टीचर्स और शिया स्टाफ़ की नियुक्ति की
  • नई शाखाएँ, नए विभाग, असरी तालीम की बुनियाद रखी
  • कॉमर्स, बी.एससी., कम्प्यूटर सेक्शन की स्थापना की
  • कॉलेज के लिए ज़मीन और इमारतें हासिल कीं
  • इदारे में नज़्म, तहज़ीब और इज़्ज़त की बुनियाद डाली

यह इमारत नहीं—उनके अरमान, आँसू और रातों की नींद की कीमत से बनी है।

🌸 तालीम-ए-निस्वान — वह इंक़लाब जिसने इतिहास बदल दिया

जब लड़कियों की असरी तालीम का नाम लेना भी गुनाह समझा जाता था,
बोर्ड की मीटिंग में सब चिल्लाए:

“नहीं! इससे बे-हिज़ाबी होगी!”

मौलाना ताहिर जरवली सिंह की दहाड़ में बोले:

“मैं सिक्रेट्री हूँ — हिज़ाब की ज़िम्मेदारी मेरी!
तालीम रोकी नहीं जाएगी!”

और फिर:

  • शिया गर्ल्स कॉलेज की नींव रखी
  • सिर्फ़ महिलाएँ स्टाफ़
  • पूरे कॉलेज में हरे पर्दे
  • मर्दों का बिना अनुमति प्रवेश पूरी तरह बंद

आज हजारों बेटियाँ उस इमारत से रोशनी लेकर निकल रही हैं।
यह मौलाना का चमत्कार है।

💻 तकनीक की पहली सुबह

जब कम्प्यूटर का नाम लोग समझते भी नहीं थे,
मौलाना ने कम्प्यूटर सेक्शन शुरू कराया
और लखनऊ यूनिवर्सिटी के साथ कदम मिलाकर
शिया कॉलेज को तकनीकी भविष्य से जोड़ा।

यह दूरदर्शिता सिर्फ़ इदारे की नहीं, क़ौम की किस्मत बदलने की थी।

🕯️ नज़रियाती एख़्तेलाफ़, मगर मिंबर की पवित्रता

 इतिहास की गवाही है:

“मौलाना ताहिर जरवली का कुछ लोगों से नज़रियाती एख़्तेलाफ़ था,
मगर उन्होंने कभी भी किसी मजलिस में उसे बयान नहीं किया।
न ही कभी मिंबर को जाती मसाइल और सियासी लड़ाई के लिए इस्तेमाल किया।”

आज मिंबर और स्टेज  को लोग नफरत और तकरार का हथियार बना रहे हैं,
मगर मौलाना ने साबित किया कि

मिंबर इमाम हुसैन (अ) का है—यह इंसानियत की अमानत है, झगड़ों का बाज़ार नहीं।

🌍 रोज़गार की राह खोलने वाले

मौलाना सिर्फ़ वक्ता नहीं थे—
वह लोगों की ज़िंदगियाँ बदलने वाले इंसान थे।

  • लखनऊ,
  • मुंबई,
  • कोलकाता,
  • और देश के कई शहरों में
    उन्होंने हजारों लोगों को रोजगार से जोड़ा, सम्मान और रोज़ी दी।

कितने ही घरों में चूल्हे जले,
कितने नौजवानों की माथे की शिकन मिट गई,
कितने बच्चों की फीस और बेटियों की शादी हुई—
यह सब मौलाना की खामोश कोशिशों का नतीजा था।

उन्होंने कभी एहसान नहीं जताया,
कभी तस्वीर नहीं खिंचवाई,
कभी स्टेज से तालियाँ नहीं माँगी।

उनका अंदाज़ था—करो और भूल जाओ, क्योंकि अल्लाह याद रखता है

🌙 इंतिक़ाल नहीं — बुलावा

ऐसी हस्तियाँ मरती नहीं—
इन्हें बुला लिया जाता है।

मौलाना मशहद में दफन हुए—
जहां इमाम अली रज़ा (अ) के हरम की मिट्टी भी जन्नत की खुशबू देती है।
उनके मजार पर रोते दिल यह कहते हैं:

“क़ौम ने उन्हें भुला दिया, लेकिन इमाम ने नहीं।”

🤲 बरसी पर दुआ

ऐ अल्लाह,
मौलाना ताहिर जरवली की रूह को
जन्नतुल फ़िरदौस में आला मक़ाम अता फ़रमा,
हौज़-ए-कौसर की ठंडक नसीब फ़रमा,
और हुसैन (अ) की शफ़ाअत से नवाज़ दे।
आमीन या रब्बल आलमीन।

🕯️ उन्होंने तालीम को इबादत बनाया, और मिंबर को पवित्र अमानत माना।
🕯️ उन्होंने रोज़गार बांटा, इमारतें खड़ी कीं, और क़ौम को सम्मान दिया।
🕯️ आज क़ौम उन्हें भूल सकती है, लेकिन इतिहास और इमाम नहीं भूलेंगे।

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