इमाम खुमैनी की रूहानी खुशबू से महकता किन्तूर: अवध की तहजीब से ईरान तक गूंजती भारत-ईरान दोस्ती की सदाएं

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नई दिल्ली – दिल्ली – तहज़ीब, तमीज़, अदब, सादगी और शराफत की मिसाल, अवध की यह पाक सरज़मी इन दिनों सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि ईरान के सियासी और समाजी गलियारों में भी चर्चा का केंद्र बन चुकी है। यह मुमकिन हुआ है उस जज़्बे, उस मोहब्बत, और उस तहज़ीब की बदौलत, जो किन्तूर की मिट्टी में घुली हुई है और जिसकी खुशबू इमामे इनक़लाब रूहुल्लाह इमाम खुमैनी र.अ. के उस्फ़ और अदब से रूहानी रिश्ता रखती है।

हाल ही में दिल्ली स्थित ईरान दूतावास में में इस रिश्ते को और भी गहरा कर दिया, जहां भारत-ईरान रिश्तों, शिया विरासत और साझा तहजीब पर खुलकर बातें हुईं। इस मौके पर खास तौर से शिरकत की सैयद रिज़वान मुस्तफा रिज़वी ने, जो बाराबंकी की मिट्टी से जुड़ाव रखने वाले एक प्रभावशाली सामाजिक कार्यकर्ता और Save Waqf India Mission के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं।

*किन्तूर से दिल्ली और वहां से तेहरान तक…*

यह महज़ एक कार्यक्रम नहीं था, बल्कि भारत और ईरान की गंगा-जमनी तहजीब को जोड़ने वाला एक पुल था। जिस तरह किन्तूर का इतिहास इमामबाड़ों, मजलिसों, और इल्मी बैठकों से रोशन है, उसी तरह ईरान की सरज़मी इमाम खुमैनी, शहीद मुतहहरी, और शहीद सैयद अली शुस्तरी की तालीम से महकती है।

दिल्ली में मौजूद ईरानी राजदूत डॉ. इराज इलाही (Dr. Iraj Elahi) और ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसऊद पेज़ेश्कियान (Masoud Pezeshkian) के हवाले से जब किन्तूर की तारीफ हुई, तो यह बाराबंकी के लिए गौरव का पल बन गया।

*अम्बर फाउंडेशन का तहज़ीबी तोहफ़ा*

इस मौके पर अम्बर फाउंडेशन के चेयरमैन वफ़ा अब्बास ने वह काम किया जो तहज़ीब और दिल से निकली मोहब्बत की मिसाल बन गया। उन्होंने लखनऊ की रूहानी और सांस्कृतिक पहचान ‘रूमी गेट’ का खूबसूरत मोमेंटो ईरानी प्रतिनिधियों को भेंट कर दिल जीत लिया। यह न सिर्फ एक तोहफा था, बल्कि यह तहज़ीब-ए-अवध की तरफ़ से ईरान की तहजीब को झुक कर सलाम था।

वफा अब्बास का यह क़दम भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक संवाद को और प्रगाढ़ करने वाला सिद्ध हुआ है। इसने यह साबित कर दिया कि जब सादगी, इख़लास और मोहब्बत से कोई पेश आता है, तो वह सीधे दिल में उतरता है।

*किन्तूर की मिट्टी में इमाम की रूहानी झलक*

सैयद रिज़वान मुस्तफा रिज़वी ने जब  किन्तूर और बाराबंकी के इतिहास, इमामबाड़ों, और शिया संस्कृति के बारे में बताया, तो सभी हैरान रह गए कि कैसे भारत की एक तहज़ीबी बस्ती इतनी इल्मी और रूहानी गहराई लिए हुए है।

उनकी ओर से रखे गए विचारों और इख़लास ने ईरानीयो को प्रभावित किया और इस मुलाक़ात ने भारत-ईरान रिश्तों को एक नई ऊर्जा दी।

भारत-ईरान रिश्ते और शिया तहजीब
यह मुलाक़ात सिर्फ राजनीतिक नहीं थी, यह एक तहज़ीबी और रूहानी रिश्ता था जो भारत की इमामी तहज़ीब और ईरान की इस्लामी क्रांति की रूह से जुड़ता है। किन्तूर और बाराबंकी जैसे शहर इस रिश्ते के ‘सांस्कृतिक दूत’ बनते जा रहे हैं।

ईरान के राजदूत  का भारत को लेकर प्रेम और भारत के प्रतिनिधियों का ईरान के प्रति सम्मान यह साबित करता है कि यह रिश्ता सिर्फ इतिहास की किताबों का हिस्सा नहीं, बल्कि आज के दौर में भी जीवित और क्रियाशील है।

जिस तरह रूमी गेट लखनऊ की पहचान है, उसी तरह यह कार्यक्रम भारत-ईरान सांस्कृतिक कूटनीति की एक नई पहचान बन गया है। किन्तूर की मिट्टी, वफा अब्बास की मोहब्बत, और सैयद रिज़वान मुस्तफा रिज़वी की दूरदर्शिता ने इस महफिल को वो रूह दी, जो सरहदों से परे दिलों को जोड़ने का काम करती है।

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