"अबाबील की तर्ज़ पर ईरान की टेक्नोलॉजी ने ज़ुल्म को झुका दिया"ज़ुल्म की इमारतें भूसे की तरह बिखर गईं"

सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा

जब भी ज़ुल्म हद से बढ़ता है, अल्लाह की अदल और क़हर हर सरकश ताक़त को झुका देता है। इतिहास इसका गवाह है। कभी अब्राहा अपने हाथियों के लश्कर के साथ अल्लाह के घर को मिटाने चला था, और अल्लाह ने अबाबीलों के ज़रिये पत्थरों से ऐसा जवाब दिया कि पूरा लश्कर भूसे की तरह बिखर गया। आज के दौर में जब इज़राइल की ताक़तें इंसानियत, बच्चों, और मस्जिदों पर बम बरसा रही थीं, तब एक बार फिर वह मंज़र दोहराया गया।

ईरान का हमला सिर्फ़ मिसाइलों और ड्रोन का हमला नहीं था — ये फ़िज़ा में उठी वो चीख़ थी, जो मासूम शहीदों की रूह से निकली थी। जो बेक़सूर माएं अपने लहू से तर्बीयत दे रही थीं, जिन बच्चों की नींदें धमाकों में छिन ली गई थीं, जिन इबादतगाहों को खंडहर बना दिया गया था — उनकी हर आह ने एक अबाबील का रूप लिया।

तेहरान से उड़ा हर ड्रोन, इस्लामी प्रतिरोध का वो पत्थर था जो ज़ुल्म के महलों पर गिरा और उन्हें भूसे की तरह उड़ाकर रख दिया। हाइफ़ा और तेल अवीव की चमचमाती इमारतें उस वक़्त ऐसी लगीं जैसे अब्राहा के हाथियों के नीचे बिखरे लाशों के ढेर — ना शान बाक़ी रही, ना तमक़न।

कहते हैं कि अल्लाह जब राज़ी होता है, तो नामुमकिन को मुमकिन बना देता है। शायद यही वजह है कि सैंकड़ों सैटेलाइटों, आयरन डोम्स, अमरीकी हिफाज़त और पश्चिमी टेक्नोलॉजी के बावजूद, ईरान के मिसाइल अपने निशाने पर पहुंचे — और दुनिया देखती रह गई। क्या ये वही ‘नेमत’ नहीं है जो अबाबीलों के पत्थरों में थी? जो नज़र तो छोटी चीज़ लगती है, मगर जब अल्लाह का हुक्म साथ हो तो सबसे बड़ी ताक़तों को घुटनों पर ला देती है।

आज की दुनिया में जहां टेक्नोलॉजी और ताक़त के नाम पर मासूमियत को कुचला जा रहा था, वहीं ईरान ने दिखा दिया कि सच्चाई, सिद्क, और शहादत की सरज़मीन पर पलने वाली कौमें कभी मिटाई नहीं जा सकतीं।

हमें सिर्फ़ मिसाइल नहीं दिखे — हमें अबाबीलों का करिश्मा दोबारा नज़र आया। और इस करिश्मे ने दिल को यक़ीन दिलाया कि जब अल्लाह का नज़र-ए-करम हो, तो वक़्त के अब्राहा भी मिट जाते हैं।

ईरान का ये हमला महज़ एक सियासी जवाब नहीं, बल्के एक रूहानी तजली था। एक पैग़ाम था उन तमाम मज़लूमों के लिए जो सोचते हैं कि दुनिया की बड़ी ताक़तें उनका कुछ नहीं होने देंगी। आज उन्हें यक़ीन हो गया कि अगर अबाबील पत्थरों से लश्कर मिटा सकते हैं, तो ईरान मिसाइलों से ज़ुल्म के क़िले भी गिरा सकता है।

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