*रिपोर्ट : हसनैन मुस्तफा,एडिटिंग:सैयद रिज़वान मुस्तफा*
बघरा, मुजफ्फरनगर की हजरत अब्बास अलमदार के रोज़े पर सालाना मजलिसों के मौके पर इस बार कुछ ऐसा नज़ारा देखने को मिला जो दिलों को छू गया और ज़ेहन में एक रौशनी की तरह उतर गया। ग्रांड रिलिजियस अथॉरिटी आयतुल्लाह अल-उज़मा सैयद अली सिस्तानी दामे बरकातुह के भारत में नुमाइंदे हुज्जतुल इस्लाम आगा अशरफ अली गरवी के कार्यालय की जानिब से एक खास कैंप का आयोजन किया गया, जो मौलाना अली हाशिम आब्दी साहब की सरपरस्ती और नेतृत्व में कामयाबी से हमकिनार हुआ।
इस कैंप की सबसे बड़ी खासियत यह रही कि इसमें न सिर्फ़ दीन की बातें हुईं, बल्कि दुनियावी मसलों का भी बेहतरीन अंदाज़ में हल पेश किया गया। कैंप ने सवाल-जवाब, रहनुमाई और सामाजिक पैग़ाम के ज़रिये हजारों लोगों के दिलों को रोशन किया।
मौलाना मुहम्मद अली साहब (इमाम जुमा, जामा मस्जिद इमाम हुसैन अ०स०, कसमंडी (कला, लखनऊ)
मौलाना हसन अब्बास मारूफी साहब ने भी अपनी मौजूदगी से इस कैंप को रौशन किया और लोगों के दिलों में ख़ास मक़ाम हासिल किया।
मौलाना अली हाशिम आब्दी ने नवजवानों और जायरीनों के हर सवाल का तसल्लीबख्श जवाब दिया, इंसानियत की खिदमत, हलाल रोज़ी, एकता और भाईचारे का जज़्बा, हराम से बचने और दोनों तालीम (दीनी व दुनियावी) की अहमियत पर ज़ोर दिया। उन्होंने बताया कि कैसे एक मोमिन सिर्फ़ आलिम नहीं बल्कि साइंटिस्ट, इंजीनियर, डॉक्टर, कलेक्टर, जज, पत्रकार, वकील और समाज सेवी बनकर भी अपने समाज और मुल्क की बेहतरीन खिदमत कर सकता है।
*कैंप का असर:*
इस कैंप से जुड़कर कई नौजवानों और लोगों ने अपने दिलों में एक नया जोश और सोच को महसूस किया। उनके सवालों को सुना गया, उनकी परेशानियों को समझा गया और कुरआन व अहलेबैत अ.स. की रौशनी में उन्हें हल पेश किया गया। बहुत से लोगों ने कहा कि यह कैंप उनकी ज़िंदगी में एक मोड़ लेकर आया है और वे अब अपने जीवन को अल्लाह की रज़ा के मुताबिक ढालना चाहते हैं।
*तौसीअ-ए-पैग़ाम:*
इस कैंप ने सिर्फ़ मजलिस का हिस्सा बनने वालों को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को यह पैग़ाम दिया कि भारत जैसे मुक़द्दस वतन में, जहां गंगा-जमुनी तहज़ीब की रवायत है, वहाँ एक ऐसा माहौल बनाया जा सकता है जिसमें तालीम, तहज़ीब, अमन, अख़लाक़ और इंसानियत की खुशबू हर गली-कूचे में महके।
*इनामात और हौसला अफज़ाई:*
सवाल-जवाब सेशन में भाग लेने वाले काबिल छात्रों को खास इनामात देकर नवाज़ा गया, जिससे उनमें आगे बढ़ने और दीन व दुनिया की बेहतर समझ हासिल करने का हौसला पैदा हुआ।
बघरा का यह कैंप एक रूहानी और तालीमी इंकलाब का पैग़ाम बनकर उभरा है। आयतुल्लाह सिस्तानी साहब की रहनुमाई और आगा अशरफ अली गरवी की निगरानी में, मौलाना अली हाशिम आब्दी की मेहनत और उलेमा की टीम की सादगी व खिदमतगुज़ारी ने इस काम को एक मिसाल में तब्दील कर दिया।
यह कैंप एक नमूना है कि कैसे दीनी रहनुमाई के ज़रिये इंसान अपने अंधेरे से रौशनी की तरफ़ सफ़र कर सकता है, और अपने किरदार को हीरे की तरह तराश सकता है।
*सचमुच, यह महज़ एक कैंप नहीं, बल्कि एक तहरीक थी — इल्म, अमल और इंसानियत की तहरीक*
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