भारत में शिया मदरसों के संकट के दरमियान मौलाना कल्बे जवाद नक़वी की ईरान में अहम पेशकदमी – अल-मुस्तफ़ा यूनिवर्सिटी के सदर आगा अब्बासी से मुलाकात ,तालीमी तआवुन की नई उम्मीद जागी


नई दिल्ली / क़ुम / तेहरान:/हसनैन मुस्तफा


हिंदुस्तान में शिया मज़हबी तालीम इस वक़्त अपने सबसे नाज़ुक दौर से गुज़र रही है। तवारीखी और सरकारी मान्यता प्राप्त शिया मदरसे — जामिया सुलतानुल मदारिस (लखनऊ), मदरसा नाज़मिया, वसीका अरेबिक कॉलेज, ज्वादिया अरेबिक कॉलेज (वाराणसी), जामिया अल-मुंतज़िर (नौगांव सादात) — आज बंदी और बेसरो-सामानी के ख़तरे से दो-चार हैं। हुकूमती बेरुख़ी, फंड की कमी और तालीमी नज़्म व नसक़ की कमी ने इन इदारों को एक गहराते हुए अंधेरे की तरफ़ ढकेल दिया है।

ऐसे संगीन हालात में हिंदुस्तान की आला शिया मज़हबी शख़्सियत आफ़ताबे शरीअत, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना डॉक्टर कल्बे जवाद नक़वी ने ईरान के अल-मुस्तफ़ा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के सदर हुज्जतुल इस्लाम आगा अब्बासी से एक अहम और दूरअंदेश मुलाक़ात करके इस तालीमी बहस को नया रुख़ देने की कोशिश की है। इस मुलाक़ात में मौलाना सैयद कल्बे अहमद साहब और मौलाना ग़ुलाम रज़ा साहब भी शरीक रहे।

इस बैठकी में हिंदुस्तान और ईरान के दरमियान मज़हबी, सकाफ़ती और तालीमी तआवुन को मज़ीद मज़बूत बनाने पर तफ़सील से बात हुई। मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने हिंदुस्तान के शिया मदरसों की गिरती हुई हालत, तलबा के मुस्तक़बिल और तालीम-ओ-तरबियत के मसाइल को आगा अब्बासी के सामने पेश किया। इसके जवाब में अल-मुस्तफ़ा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी की जानिब से हर मुमकिन तआवुन का यक़ीन दिलाया गया।

इस मुलाक़ात में जिन अहम बिंदुओं पर इत्तेफ़ाक़ हुआ, वो ये हैं:

  • हिंदुस्तानी मदरसों को अल-मुस्तफ़ा यूनिवर्सिटी से एकेडमिक तआवुन और इंटरनेशनल सर्टिफिकेशन देने की गुंजाइश
  • हिंदुस्तानी तलबा के लिए स्कॉलरशिप और तालीमी मौक़ों में इज़ाफ़ा
  • ईरान और भारत के दरमियान उस्तादों का तबादला और ऑनलाइन कोर्सेस की सहूलत
  • मुश्तरका सेमिनार, वर्कशॉप और रिसर्च प्रोजेक्ट्स का इंइक़ाद
  • हिंदुस्तानी मदरसों को तदरीसी मवाद, तर्जुमे और निसाब के मैदान में मदद

मौलाना कल्बे जवाद नक़वी की यह पेशकदमी सिर्फ़ एक मज़हबी गुफ़्तगू नहीं, बल्कि हिंदुस्तान में मज़हबी तालीम की बहाली के लिए एक बुनियादी और दुरअंदेश कोशिश है। माहिरीन इसे "तालीम-ए-मज़हब की आलमी बहाली" की तरफ़ एक अहम मरहला करार दे रहे हैं।

इस मुलाक़ात की खबर से शिया हल्क़ों में राहत और उम्मीद की लहर दौड़ गई है। उमीद की जा रही है कि ये तआवुन महज़ काग़ज़ी नहीं रहेगा, बल्कि ज़मीन पर भी इसका असर नज़र आएगा।

मौलाना कल्बे जवाद नक़वी ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि जब बात उम्मत की रहनुमाई और मज़हबी तालीम की हिफाज़त की हो, तो वो सिर्फ़ मिंबर तक महदूद नहीं रहते, बल्कि आलमी सतह पर जाकर अपनी क़ौम की आवाज़ बनते हैं।

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