निदा टीवी डेस्क/हसनैन मुस्तफा
लखनऊ। तहसीन गंज स्थित शबीहा-ए-रौज़ा-ए-सकीना सलामुल्लाह अलैहा (जामा मस्जिद) में बीती रात एक ऐसी रूहपरवर और दिलों को झकझोर देने वाली “इस्लाह-ए-इक़्तेसाद कांफ़्रेंस” हुई जिसने मोमिनीन को यह एहसास दिलाया कि माल अल्लाह की नेमत है और इसका सही इस्तेमाल इंसान को हलाकत से बचाता है।
यह कांफ़्रेंस सन्दूक़ ख़दीजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैहा के तत्वावधान में और ‘अह्यू अम्रना ट्रस्ट’ की निगरानी में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली सीस्तानी द० ज़ि० के प्रतिनिधि, हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मौलाना सैयद अशरफ़ अली अल-ग़रवी साहब की सरपरस्ती में आयोजित हुई।
कुरआन की तिलावत से शुरू हुई महफ़िल, दिलों में उतर गया असर
कांफ़्रेंस की शुरुआत मौलाना मोहम्मद अली की दिल को छू लेने वाली तिलावत-ए-कुरआन से हुई। इसके बाद मौलाना सैयद मोहम्मद हुसैन रिज़वी, मौलाना मकातिब अली ख़ान, जनाब सैयद ऐनुर्रज़ा रिज़वी और जनाब सैयद सरफ़राज़ हुसैन ने अलग-अलग पहलुओं पर रोशनी डाली।
हर तकरीर का लहजा एक ही मैसेज दे रहा था—समाज तब ही सँवरता है जब माल सिर्फ जमा नहीं किया जाता, बल्कि सही जगह खर्च भी किया जाता है।
एक-एक पैसा हक़दार तक पहुँचा
सन्दूक़ ख़दीजतुल कुबरा सलामुल्लाह अलैहा के निदेशक मौलाना शब्बीर अली ने वार्षिक रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि नवंबर 2024 से अक्टूबर 2025 तक कुल आमदनी 1,39,020 रुपये हुई, जबकि खर्च 1,46,191 रुपये हुआ।
यह खर्च किन पर हुआ?
- यतीम बच्चों की किफालत
- बेवा महिलाओं की आर्थिक और चिकित्सकीय सहायता
- गरीब परिवारों के रोज़मर्रा के खर्च
- बच्चों की फीस और शैक्षिक सहयोग
- भोजन, वस्त्र, दवाइयाँ
- मकान व दुकान की मरम्मत
- सिलाई मशीन और रोजगार साधन उपलब्ध कराना
सबसे ख़ास बात—आमदनी से अधिक खर्च एक नेक मोमिन ने ख़ुद अदा किया। यह समाज में बढ़ते जज़्बा-ए-ख़िदमत की सबसे खूबसूरत मिसाल है।
माल का सही इस्तेमाल ही असल नجات — मौलाना अशरफ़ अल-ग़रवी
कांफ़्रेंस के मुख्य वक्ता मौलाना सैयद अशरफ़ अल-ग़रवी ने एक बेहद असरअंगेज ख़िताब किया। उन्होंने अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम की हदीस—
“जो अपने आर्थिक मामलों को न सँभाले, वह हलाक हो जाता है”
—का हवाला देते हुए कहा कि अगर इंसान अहले-बैत अ०स० की हिदायतों पर अमल करे, तो न सिर्फ आर्थिक कमजोरी बल्कि कई सामाजिक बुराइयों से भी बच सकता है।
उन्होंने क़ारून की कहानी का ज़िक्र करते हुए कहा कि
“काबिलियत माल जमा करने में नहीं, बल्कि उसे सही जगह खर्च करने में है।
जो माल को अल्लाह की राह में लगाएगा, उसके लिए वही माल नجات बनेगा;
और जो बेमक़सद जमा करेगा, वही माल उसके लिए हलाकत का कारण भी बन सकता है।”
मौलाना ग़रवी का यह जुमला पूरे हॉल में सन्नाटा और फिर सुकून भर गया—
“माल इंसान की अमानत है, मालिक अल्लाह है… और अमानत का हक़ अदा करना ही असल इबादत है।”
यतीमों और बेवाओं की आहों में छिपी दुआएँ सबसे बड़ी दौलत
मौलाना शब्बीर अली ने कॉन्फ्रेंस में बताया कि सबसे अधिक ध्यान यतीम बच्चों की परवरिश और शिक्षा पर दिया गया।
उन्होंने कहा:
“मदद सिर्फ पैसे देने का नाम नहीं, इज़्ज़त लौटाने का नाम है।
हमारा मकसद है कि यतीम सुरक्षित हों, बेवा सम्मानित हों और गरीबों के घरों में उम्मीद का दिया जलता रहे।”
उनकी यह बात सुनकर कई लोगों की आँखें नम हो गईं।
ईसाल-ए-सवाब: मरहूम याक़ूब अली के लिए मजलिस-ए-अज़ा
कांफ़्रेंस के समापन पर ख़िदमते खल्क़ में अपनी ज़िंदगी बिताने वाले नेक बंदे, जनाब याक़ूब अली मरहूम के ईसाल-ए-सवाब के लिए मजलिस आयोजित हुई। मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी ने ख़िताब किया और मोमिनीन ने फातिहा पेश की।
उनकी ख़िदमत का ज़िक्र होते ही महफ़िल में एक अजीब सी रूहानी फिज़ा छा गई—जैसे किसी ने सबको याद दिला दिया हो कि नेकी कभी मरती नहीं, इंसान मर जाता है।
यह कांफ़्रेंस सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं थी—यह एक पैग़ाम था।
पैग़ाम कि माल जमा करना मकसद नहीं;
माल को सही जगह पहुँचाना ही इंसानियत की जीत है।
जब तक समाज में ऐसे संस्थान और ऐसे ख़िदमतगार मौजूद हैं,
यतीम अकेले नहीं होंगे,
बेवा बेसहारा नहीं रहेगी,
और ज़रूरतमंदों की दुआएँ आसमान में उठती रहेंगी।
यही असल इस्लाह-ए-इक़्तेसाद है…
यही असल इंसानियत का रास्ता।
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