लखनऊ। दफ़्तर-ए-नुमाइंदगी आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली सीस्तानी द० ज़ि० और उलमा-ए-आलाम की तरफ़ से मरजा-ए-तक़लीद की शरीक-ए-हयात की वफ़ात पर शाही जामा मस्जिद, तहसीन गंज में जलसा -ए-ताज़िय्यत और मजलिस-ए-अज़ा का इनएकाद किया गया।
भारत में नुमाइंदे आगा मौलाना सैय्यद अशरफ़ अली अल-ग़रवी की सदारत में प्रोग्राम की शुरुआत: मौलाना मुहम्मद अली द्वारा तिलावत-ए-क़ुरआन-ए-करीम से हुई।
इस मौके पर आगा मौलाना सैय्यद अशरफ़ अली अल-ग़रवी ने गमज़दा अल्फाजों में कहा "उनकी याद हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेगी। सेवा, समर्पण और नेकियाँ ही सच्ची विरासत हैं।"
भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथारिटी और अमीर उल उलमा समेत प्रमुख मौलाना की मौजूदगी
भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी आफताब ए शरीयत मौलाना सैय्यद कल्बे जवाद नक़वी (इमाम-ए-जुमा, लखनऊ) ने इस मौके पर कहा ""मरहूमा की ज़िंदगी इख़लास, परहेज़गारी और खिदमत का बेहतरीन नमूना थी। उन्होंने न सिर्फ़ अपने घराने बल्कि पूरी उम्मत की रहनुमाई में अहम किरदार अदा किया। हमें उनके आदर्शों को ज़िंदगी का हिस्सा बनाना चाहिए।"कई वरिष्ठ उलमा और समाजी शख़्सियतों ने जल्सा में भाग लिया और अपने तास्सुरात साझा किए।
मौलाना फिरोज़ अली बनारसी (तंज़ीमुल मकातिब):
"मरहूमा का घराना इल्म, तालीम और खिदमत की बुनियाद पर खड़ा है। उनकी ज़िंदगी इस बात की गवाही है कि ख़वातीन भी समाज और दीन की तरक़्क़ी में बराबर की शरीक होती हैं।"
मौलाना सैय्यद मुहम्मद मूसा रिज़वी (जामिआ सुल्तानिया):
"उन्होंने अपने बेटों की परवरिश इस अंदाज़ में की कि वह आज पूरी दुनिया में दीन की रहनुमाई कर रहे हैं। यह उनकी तरबियत का सबसे बड़ा सुबूत है।"
मौलाना मिर्ज़ा रज़ा अब्बास:
"मरहूमा की ज़िंदगी ताज़गी और रोशनी से भरी हुई थी। उनका इख़लास और परहेज़गारी हमें हमेशा याद रहेगी।"
मौलाना मिर्ज़ा जाफ़र अब्बास (जामेअतुत्तब्लीग़):
"यह जल्सा-ए-ताज़ियत इस बात का सबूत है कि नेक इंसान की याद कभी ख़त्म नहीं होती। मरहूमा का असर उनके परिवार और उनके अनुयायियों के दिलों में हमेशा बाक़ी रहेगा।"
मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान अदीबुल हिंदी:
"मरहूमा का घराना इल्म व अदब और दीन व इंसानियत की खिदमत का ख़ज़ाना है। उनका सफ़र हमें याद दिलाता है कि तक़वा और इल्म दोनों इंसान को बुलंदी तक पहुँचाते हैं।"
मौलाना सैय्यद फ़रीदुल हसन (जामिआ नाज़िमिया):
"मरहूमा ने अपने जीवन से यह साबित कर दिया कि असल क़द्र वही है जो इंसान दूसरों के लिए छोड़ जाता है। उनके बेटों का इल्मी और दینی सफ़र इसी तरबियत की झलक है।"
मौलाना मकातिब अली ख़ान:
"उनकी ज़िंदगी एक आईना थी जिसमें सादगी, परहेज़गारी और इंसानियत झलकती थी। यह जल्सा उनके मक़ाम और उनकी खिदमत का ऐतराफ़ है।"
मौलाना काज़िम मेहदी उरूज जौनपुरी:
"मरहूमा की याद हमें यह सिखाती है कि इबादत सिर्फ़ नमाज़ और रोज़ा तक सीमित नहीं, बल्कि इंसानियत की खिदमत भी इबादत है।"
जल्सा-ए-ताज़िय्यत के पश्चात
अमीरुल उलमा आयतुल्लाह सैय्यद हमीदुल हसन तकवी ने मजलिस-ए-अज़ा को ख़िताब किया।
"आज हम एक ऐसे खानदान और शख्सियत की याद में एकत्रित हुए हैं, जिन्होंने दीन और समाज की सेवा को अपनी ज़िंदगी का सर्वोच्च उद्देश्य बनाया। मरहूमा का जीवन हमें सिखाता है कि असली इबादत दूसरों की भलाई में है।"
"उनके बेटों ने अपने कार्यों और समर्पण से यह साबित किया कि परिवार के सदस्यों का योगदान समाज और दीन के लिए प्रेरणास्रोत बन सकता है।"
"आज का प्रोग्राम शोक व्यक्त करने के लिए नहीं, बल्कि हमें उनके आदर्शों और नेक कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करने का अवसर है। हमें अपने जीवन में सेवा, समर्पण और नैतिक मूल्यों को अपनाना चाहिए।"
निज़ामत और मरहूमा की शख्सियत
जल्सा के निज़ामत कर रहे मौलाना सैय्यद अली हाशिम आब्दी ने मरहूमा की शख्सियत और उनके परिवार, विशेषकर दोनों अयातुल्लाह बेटों के योगदान के बारे में विस्तार से बताया।
"सैय्यदा जलीला मरहूमा ने अपने जीवन में उलमा और मोमिनीन की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उनके बेटों ने भी इसी राह को आगे बढ़ाया और दीन, समाज और शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया।"
सामाजिक और धार्मिक समर्थन
जल्सा में बड़ी संख्या में उलमा, मुबल्लिग़ीन, आइम्मा-ए-जमाअत, ज़िम्मेदारान इदारात-ए-दीनिया व मदारिस-ए-इल्मिया, असातेज़ा और तुल्लाब ने शिरकत की।
1200 मकतबों के बोर्ड तंजीमुल मकातिब के सेक्रेट्री मौलाना सैयद सफी हैदर जैदी साहब बीमार होने की वजह से शिरकत नहीं कर सके,लेकिन तंजीम और जामिया इमामिया के तुल्लाब और उस्ताद ने बड़ी संख्या में शिरकत कर इस प्रोग्राम में शिरकत की।
समाजी और सहाफ़ती शख़्सियतें शामिल थीं जिनकी खिराजे अकीदत थी
मौलाना ज़हीर अहमद इफ्तिख़ारी:"मरहूमा का जीवन तक़वा, सादगी और खिदमत से भरपूर था। ऐसे लोग समाज में रोशनी का काम करते हैं।"
मौलाना काज़िम वाहिदी:"उनकी याद में आयोजित यह जल्सा हमें यह एहसास दिलाता है कि इंसान की असल पहचान उसकी नेकियाँ और दूसरों के लिए किए गए काम होते हैं।
मौलाना शफ़ीक़ हुसैन (जामिया सुल्तानिया):"मरहूमा की ज़िंदगी और उनके परिवार का योगदान हमेशा उलमा और तुल्लाब के लिए मिसाल रहेगा।"
मौलाना गुलज़ार हुसैन जाफ़री:"सच्चा इंसान वही है जो समाज और इंसानियत के लिए कुछ छोड़ जाए। मरहूमा की यादें इसी वजह से हमेशा जिंदा रहेंगी।
मौलाना हैदर अब्बास रिज़वी:"उनकी शख्सियत में ख़लूस और इख़लास झलकता था। यही कारण है कि आज इतनी बड़ी तादाद में लोग उनकी याद में इकट्ठा हुए हैं।"
मौलाना मुहम्मद अली ज़ैदी (जामिया नाज़मिया):"मरहूमा के घराने का रिश्ता उलूम-ए-दीन और खिदमत-ए-दीन से हमेशा क़ायम रहा है। यह हम सबके लिए एक प्रेरणा है।"
मौलाना सैय्यद मुहम्मद अली आबिदी (इदारा अलमआरिज):"यह जल्सा इस बात का सुबूत है कि नेक लोगों की यादें समाज को हमेशा जोड़ती हैं और हमें इंसानियत का पाठ पढ़ाती हैं।"
जनाब जमानत अली (अंजुमन वज़ीफ़ा-ए-सादात व मोमिनीन): "मरहूमा की याद में यह जल्सा हमारी जिम्मेदारी का एहसास कराता है कि हमें समाज के कमजोर और जरूरतमंद वर्गों की मदद करनी चाहिए।"
जनाब ऐनुर्रज़ा:"उनका जीवन और परिवार, दोनों ही हमारी कौम और समाज के लिए मिसाल हैं। उनकी दुआएं और रहमतें हम सबके साथ रहेंगी।"
विकार हुसैन (डिप्टी एसपी):"मैंने जल्सा में जो माहौल देखा, वह मरहूमा की शख्सियत की असल पहचान है। समाज की हर तबक़े की मौजूदगी इस बात का सबूत है कि उन्होंने सबके दिलों में अपनी जगह बनाई थी।"
जनाब सैय्यद वफ़ा अब्बास:"ऐसे अवसर समाज की एकजुटता और धर्म के प्रति सम्मान का प्रतीक हैं।"
सीनियर पत्रकार सैय्यद रिज़वान मुस्तफ़ा:"मरहूमा का जीवन समाज और धार्मिक समुदाय के लिए प्रेरणा है।"
जनाब शाहकार हुसैन ज़ैदी खादिम जामा मस्जिद लखनऊ "यह मजलिस-ए-अज़ा सिर्फ़ एक याद नहीं, बल्कि हम सभी के लिए प्रेरणा है कि धार्मिक और सामाजिक मूल्यों को हमेशा जिंदा रखना चाहिए।"
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