निदा टीवी डेस्क
लखनऊ की गार वाली करबला… जिसे लोग भारत का सामरा कहते हैं।
यह वही मुक़ाम है जिसकी 20 एकड़ ज़मीन इमामे ज़माना (अज) की जागीर है।
जहां नमाज़, ज़ियारत और इबादत से रौनक होनी चाहिए थी, वहां आज दिल तोड़ देने वाला सन्नाटा और वीरानी पसरा है।
🌙 शबे जुमा का रंजीदा मंजर
शबे जुमा का नज़ारा रूह को कंपा देने वाला था।
नमाज़ मगरिबैन के वक़्त, जहां हज़ारों की सफ़ें सजनी चाहिए थीं, वहां सिर्फ़ पाँच-छह अफ़राद नमाज़ के लिए आए।
सलाम, नोहे के कुछ बंद और ज़ियारत की तिलावत—बस इतना ही।
मगर दिल तड़प उठा… कि जिस मुक़ाम पर इमामे ज़माना (अज) की तरफ़ से रहमतें बरसनी चाहिए थीं, वहां खामोशी और वीरानी हावी है।
🕌 मौलाना की ग़ैर-हाज़िरी और ट्रस्ट की लापरवाही
हुसैनाबाद ट्रस्ट से नामज़द मौलाना जमाअत पढ़ाने आते ही नहीं।
न पहले आए, न अब आते हैं।
नमाज़े जमाअत का क़ायम न होना इस मुक़द्दस जगह की सबसे बड़ी बेइज़्ज़ती है।
🚫 सन्नाटे का फ़ायदा उठाते अराजक तत्व
जब सफ़ें खाली हों और दरगाह वीरान हो, तो वहां नूर की जगह गुनाह और गंदगी हावी हो जाती है।
आज गार वाली करबला में यही हो रहा है—
🚗 गाड़ियाँ खड़ी करना,
🍾 शराब पीना,
🎲 जुआ खेलना…
और जब ट्रस्ट के कर्मचारी रोकते हैं तो पुलिस-गुंडा गठजोड़ का चेहरा सामने आता है—
👉 कर्मचारियों पर ही 151 की कार्रवाई कर दी जाती है!
❌ यहां न दाएश का खौफ़, न इज़राइल का हमला…
यहां न दाएश का खौफ़ है,
न सीरिया जैसी हुकूमत,
न इज़राइल के हमले,
न अमेरिका की साज़िशें,
न सरकार की रोक-टोक…
फिर भी 20 एकड़ की इमामे ज़माना की जागीर हमारी ग़फ़लत और लापरवाही की वजह से वीरान है।
पूरी क़ौम तमाशाई बनी बैठी है।
⚡ इमाम से मंसूब जगह, हमारी शर्मनाक हालत
अल अजल कहकर इमामे ज़माना (अज) को बुलाने वाली क़ौम आज उनकी जागीर से बेपरवाह क्यों है?
क्या यह जहूर का इंतज़ार है कि मुक़द्दस जगह वीरान छोड़ दी जाए?
इमाम के ज़हूर की दुआ मांगने वालों,
सोचो—
इमाम से मंसूब इस जगह का क्या हाल कर दिया हमने?
🎓 इत्तेफ़ाक़ से इम्तहान और ज़िम्मेदारी भी यहीं है
सोचिए!
यह मुक़द्दस जगह शिया कॉलेज के बिल्कुल पास है, जहां हज़ारों शिया स्टूडेंट रोज़ आते-जाते हैं।
यही नहीं—
- भारत की सुप्रीम रिलिजियस अथॉरिटी आफ़ताबे शरीअत मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नक़वी साहब यहीं मौजूद हैं।
- तंजीमुल मकातिब का दफ़्तर (1200 मकतबों का बोर्ड),
- नज़्मिया, सुल्तानुल मदारिस, जामियातुज़ ज़हरा समेत बड़े-बड़े मदरसे,
- सैकड़ों अंजुमने,
- शिया पर्सनल लॉ बोर्ड,
- और ग्रैंड मरजा-ए-तक़लीद आयतुल्लाह सैयद अली सिस्तानी साहब के नुमाइंदे सैयद अशरफ अली गर्वी साहब का दफ़्तर भी यहीं है।
जब इतने बड़े मराकिज़ और इदारे पास हों,
तो फिर सवाल उठता है—
गार वाली करबला वीरान क्यों है?
💰 करोड़पति मोमिनीन और ज़िम्मेदारी
करोड़पति मोमिनीन की मंडली से खास अपील है—
इस इमाम-ए-ज़माना (अज) से मंसूब जागीर की तरफ़ तवज्जो करें।
अपने माल और ताक़त को इस मुक़द्दस जगह की आबादी और रौनक के लिए खर्च करें।
📖 उलेमाओं और तंजीमों से गुज़ारिश
तमाम उलेमा से गुज़ारिश है—
यहां सिर्फ़ अख़लाक़ के क्लास ही नहीं, बल्कि तालीम और दुआओं के बाक़ायदा प्रोग्राम हों।
ख़ासकर जुमेरात और जुमा की शाम को दुआओं का एहतमाम ज़रूर हो।
और 8 रबी उल अव्वल को इमामे ज़माना (अज) को उनके जद्द का पुरसा देने के लिए अंजुमनों और मोमिनीन का हुजूम यहां लाज़मी होना चाहिए।
🌱 जागीर-ए-इमाम की हिफ़ाज़त – हमारी ज़िम्मेदारी
अगर ज़मीर जिंदा है,
अगर इमाम से मिलने की ललक है,
तो हर मोमिन का फ़र्ज़ है कि वह इस जगह को आबाद करे।
रोज़ाना यहां आना,
नमाज़ और ज़ियारत से रौनक बहाल करना,
और कम से कम एक पेड़ या कुछ फूलों के गमले लगाना—
यही हमारी मोहब्बत और वफ़ादारी की पहचान है।
✊ अब भी वक़्त है…
अगर हमने अपनी ग़फ़लत न छोड़ी,
अपनी ज़िम्मेदारी न समझी,
तो आने वाली नस्लें पूछेंगी—
"क्या यह वही क़ौम थी जो इमामे ज़माना (अज) के इंतज़ार का दावा करती थी?”
गार वाली करबला का सन्नाटा हमें यह याद दिलाता है कि इमामे ज़माना (अज) का इंतज़ार सिर्फ़ लफ़्ज़ों से नहीं, बल्कि उनके मुक़द्दस मक़ामात की हिफ़ाज़त और उनसे वफ़ादारी से होता है।
✍️ आज उठ खड़े होइए… वरना कल हमारी बेपरवाही इस मुक़ाम की रूहानी रौनकें छीन लेगी और इतिहास हमें शर्म से झुका देगा।
हम क्या जवाब देंगे इमाम को?
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