बरसते पानी और लहराते तिरंगों के बीच हज़रत अब्बास अलमदार का लहराया परचम – बाराबंकी में शिया-सुन्नी समुदाय ने निकाला चेहल्लुम का ऐतिहासिक ताज़िए का जुलूस, या हुसैन की सदा से गूंजा शहर,शिया वक्फ बोर्ड के सीईओ जीशान रिजवी ने भी किया इस प्रोग्राम में शिरकत

Nida Tv-निदा टीवी डेस्क/हसनैन मुस्तफा
बाराबंकी – बुधवार, 18 सफर 1447 हिजरी (13 अगस्त 2025) – बाराबंकी की सरज़मीन एक बार फिर ग़म-ए-हुसैन अ.स. में डूब गई, जब बरसते पानी, लहराते तिरंगों और जज़्बाती नारों के बीच शहीदाने कर्बला की याद में 45वां ऐतिहासिक चेहल्लुम जुलूस निकाला गया। बारिश की फुहारों ने माहौल को और भी रूहानी बना दिया, जबकि हवा में लहराते तिरंगे और अलम वफ़ा, कुर्बानी और भाईचारे का पैग़ाम दे रहे थे।

जुलूस की शुरुआत इमामबाड़ा जनाबे ज़ैनब स.अ., बेगमगंज से हुई। मजलिस-ए-ग़म में हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद मोहसिन मेहदी नक़वी की मजलिस के बाद मातमी अंजुमनों की नौहा-ख़्वानी और सीनाज़नी के साथ जुलूस रवाना हुआ। इस जुलूस के बानी सैयद खुर्शीद हुसैन जैदी थे।

बरसते पानी और भीगी फिज़ाओं में हज़रत अब्बास अलमदार का लहराता परचम, ताज़िया, अलम, जुलजनाह, झूला और ताबूत देखकर हर आंख नम हो गई। “या हुसैन” की सदाओं से शहर की गलियां गूंज उठीं। अंजुमन अब्बासिया, फ़नफ़िल हुसैन बहराइच, जौक-ए-बाराबंकी, अंजुमन ग़ुलाम असकरी समेत कई मातमी जत्थों ने ग़म-ए-हुसैन का इज़हार करते हुए नौहे पढ़े और मातम किया।

जुलूस मार्ग में जगह-जगह सबीलें, नज़र-नियाज़ और लंगर का इंतज़ाम किया गया। इस साल का जुलूस शिया और सुन्नी भाईचारे का बेहतरीन मिसाल बना।

लाइन पुरवा से निकला इमामबाड़ा ज़ुल्फ़िकार हुसैन का जुलूस निबलेट तिराहे तक आया, जहां से यह बेगमगंज जुलूस में शामिल होकर दोनों मिलकर करबला सिविल लाइंस पहुंचे और वहीं समाप्त हुए।

वहीं, सुन्नी समुदाय का जुलूस फज़लुर्रहमान पार्क से निकलकर घंटाघर होते हुए करबला वजहन शाह, बेगमगंज पहुंचकर समाप्त हुआ।

इस मौके पर मरहूम हसन रज़ा ‘राजा भाई’ को ख़ास तौर पर याद किया गया। राजा भाई का नाम बाराबंकी के मातमी इतिहास में ऐसे व्यक्तियों में शुमार है, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी इमाम हुसैन अ.स. और शहीदाने कर्बला के पैग़ाम की खिदमत में समर्पित कर दी।

राजा भाई हमेशा जुलूसों की शान बढ़ाने वाले थे। चाहे जुलजनाह की लगाम संभालनी हो, ताबूत को सजाना हो या मातमी अंजुमनों की राहदारी सुनिश्चित करनी हो, हर काम में उनकी सक्रियता और नेतृत्व की मिसाल दी जाती थी। उनकी आंखें हमेशा अश्कबार रहतीं, और उनका ह्रदय हर अज़ादारी में शामिल लोगों के दर्द और ग़म को समझने वाला था।

वो न सिर्फ़ अंजुमनों और मातमियों के लिए प्रेरणा थे, बल्कि नई पीढ़ी को भी शहीदाने कर्बला की गाथा और हुसैन अ.स. के मिशन से जोड़ने का काम करते थे। राजा भाई ने अपने जीवन में कभी भी सुविधाओं या आराम की परवाह नहीं की, बल्कि हर साल चेहल्लुम जुलूस की तैयारी, अलमों की सजावट और नज़र-नियाज़ का इंतज़ाम खुद हाथों से करते रहे।

उनकी याद आज भी हर जुलूस में जुलजनाह की लगाम थामने वाले अज़ादारों के दिलों में ज़िंदा है। जब शहर के रास्तों में “या हुसैन” की आवाज़ गूँजती है और मातमियों की आँखें नम होती हैं, तो राजा भाई की याद उनके साथ चलती है – जैसे उनकी सेवा और समर्पण आज भी जुलूसों की हर बूंद और हर कदम में मौजूद हो।

उनकी करबला में बनी कब्र पे सिसकिया उनके इस जुलूस का इतंजार कर रही थी, अलम ज़ुलजानाह पर पढ़े फूल उनकी कब्र पर उनकी खिदमत का इसाले सवाब बने थे,बहराइच की अंजुमन के मेंबर उनकी कब्र पर फातिहा पढ़कर एक दोस्त को सबाब और रूह को ताकत दे रहे थे।
अब इस जुलूस की जिम्मेदारी उनके लाल शम्स रिजवी बड़ी जिम्मेदा से निभाते है।

मौलाना आज़म हुसैन ख़ान ने कर्बला में अलविदाई  मजलिस  में इमाम हुसैन अ.स., हज़रत अब्बास अलमदार और उनके वफ़ादार साथियों की कुर्बानियों का दर्दनाक तज़किरा किया।

देर रात मातमी माहौल में जुलूस का समापन हुआ, लेकिन शहीदाने कर्बला का पैग़ाम-ए-हक़ और ग़म-ए-हुसैन की सदा पूरे शहर में गूंजती रही। बारिश की हर बूंद, लहराता हर तिरंगा और बुलंद होता हर परचम यह याद दिला रहा था कि हुसैन अ.स. का नाम और मिशन क़यामत तक ज़िंदा रहेगा।

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