✍️ By Syed Rizwan Mustafa
जब मैं इराक के कूफ़ा शहर पहुँचा, और मस्जिद-ए-कूफ़ा के उस हिस्से में कदम रखा जहाँ करबला के पहले शहीद, हज़रत मुस्लिम इब्ने अकील (अ.स) का मक़ाम-ए-शहादत है, तो दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
हर पत्थर, हर दीवार, हर दरवाज़ा — गवाही दे रहा था उस दर्दनाक वाक़े की, जो आज भी इंसानियत को सिखाता है कि वफ़ा का असल मतलब क्या होता है।
वो एहसास कि कूफ़ा की गलीयां आज भी शर्मिंदा हैं,
वो एहसास कि अकेलेपन में भी अगर मक़सद हक़ हो, तो एक अकेला भी उम्मत का रहबर बन सकता है।
हज़रत मुस्लिम की ज़िंदगी सिर्फ इमाम हुसैन (अ.स) के सफीर की नहीं, बल्कि एक बाग़ी ज़माने में हक़ की अलामत की ज़िंदगी है।
🕊️ हज़रत मुस्लिम इब्ने अकील: वफ़ा, हिम्मत और तनहाई की तस्वीर
हज़रत मुस्लिम इब्ने अकील न सिर्फ इमाम हुसैन (अ.स) के दूत थे, बल्कि वह पहले शहीद थे जिन्होंने कर्बला की ज़मीन को अपने लहू से नहीं, बल्कि कूफ़ा की गलियों में वफ़ा की मिसाल से रंगीन किया।
जिस दिन कूफ़ा वालों ने वादाख़िलाफ़ी की,
जिस दिन सिपाहियों ने इब्ने अकील को गिरफ्तार किया,
जिस दिन उनके मासूम बच्चों ने दर-दर की ठोकरें खाईं,
उस दिन कर्बला की इब्तिदा हो चुकी थी।
उनकी शहादत, दरअसल इमामत की तहरीक की वो चिंगारी थी जिसने यज़ीदी तख्त को हिला कर रख दिया।
🕌 मस्जिद-ए-कूफ़ा में रोज़े पर बिताए वो लम्हे
जब मैंने हाथ उठाए, तो लफ़्ज़ नहीं निकले।
बस एक ही सवाल दिल में गूंज रहा था:
"ऐ मुस्लिम! आपने तो हमारा इंतज़ार किया… हम कहाँ थे जब आप तन्हा थे?"
रौज़े के अंदर की रौनक, और उसके बाहर की वीरानी — एक अजीब सा तज़ाद महसूस होता है।
शायद यही तज़ाद हज़रत मुस्लिम की ज़िंदगी का आईना है — एक तरफ हक़, एक तरफ बेवफ़ाई।
💔 आज की कूफ़ा बनती दुनिया
आज फिर हर दौर एक नया कूफ़ा है।
जहाँ हक़ की आवाज़ उठाने वाला अकेला होता है,
जहाँ वादे करने वाले पीछे हट जाते हैं,
जहाँ 'हुसैनी' कहलाने वाले 'यज़ीदी' अंदाज़ में चुप रह जाते हैं।
हज़रत मुस्लिम की शहादत हमें यही सबक देती है कि...
> अगर सच्चाई के रास्ते पर हो, तो अकेला होना शर्म की बात नहीं — वो तो इब्ने अकील की सुन्नत है।
🌹 दुआएँ और वादे
जब मैंने ज़ियारत की,
तो सिर्फ एक दुआ माँगी:
"ए अल्लाह! हमें भी वो वफ़ा दे जो मुस्लिम इब्ने अकील को दी थी।
हमें भी वो हिम्मत दे जो कूफ़ा की ज़ालिम भीड़ के सामने मुस्कराकर कुर्बानी देने वालों को दी थी।"
हज़रत मुस्लिम इब्ने अकील की शहादत इतिहास नहीं, एक आइना है —
जो हमें दिखाता है कि जब पूरी दुनिया ख़ामोश हो, तब भी हक़ बोलना बंद न करो।
🖤
हमें तो कूफ़ा लगे ये दुनिया,
क़दम क़दम आज़माइशों की फ़ज़ा मिली है,
हमें तो हर दौर में नई कर्बला मिली है…
अगर ये एहसास आप तक पहुँचा हो, तो इस पोस्ट को दूसरों तक ज़रूर पहुँचाएँ।
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