नहजुल बलाग़ा एक नायाब खज़ाना है, जिससे इन्कार नामुमकिन है: मौलाना सैयद फ़ैज़ान मेहदी,इदारा-ए-इल्मो दानिश के ज़ेरे एहतेमाम अशरा-ए-विलायत में दर्स-ए-नहजुल बलाग़ा का सिलसिला जारी


निदा टीवी डेस्क,

बिजनौर / बुख़ारा सादात। अशरा-ए-विलायत की पुरनूर फ़िज़ाओं में अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली इब्ने अबी तालिब अ.स. का जिक्र-ए-जमीला हर दिल की धड़कन बन गया है। इसी सिलसिले में इदारा-ए-इल्मो दानिश, लखनऊ की जानिब से देश के मुख़्तलिफ़ इलाक़ों में दर्स-ए-नहजुल बलाग़ा का एहतमाम किया जा रहा है, ताकि उम्मत को कलाम-ए-अमीर से रुश्नाई हासिल हो और मआरिफ़-ए-अलवी की ताज़ा बयार ज़हनों को तरोताज़ा कर दे।

इसी मुबारक सिलसिले का दूसरा दर्स बिजनौर के सरसब्ज़ और रूहानी इलाक़े बुख़ारा सादात में मुनक्किद हुआ, जहाँ मुबल्लिग़-ए-अहलेबैत, जावानसाल इमामे जुमा मौलाना सैयद फ़ैज़ान मेहदी ज़ैदपुरी ने नहजुल बलाग़ा के मुताल्लिक़ बसीरत अफ़रोज़ और दिलनशीं तर्ज़-ए-बयान में मआरिफ़-ए-अली अ.स. पेश किए।

मौलाना ने अपने असरदार खिताब में कहा:

"नहजुल बलाग़ा ऐसी किताब है, जो सिर्फ़ दीनी रहनुमाई ही नहीं करती, बल्कि इंसानी समाज को सियासी, अख़लाक़ी और समाजी बसीरत भी अता करती है। अमीर-ए-बयान के ख़ुत्बात, मकतूबात और हिकमत से लबरेज़ कलामात रूहानी इनक़िलाब की बुनियाद हैं।"

उन्होंने उम्मत को इस अज़ीम किताब के मुतालआ की तरफ़ मुतवज्जेह करते हुए कहा कि अगर कोई समाज ज़वाल से निजात और बुलंदी की तरफ़ गामज़न होना चाहता है तो उसे नहजुल बलाग़ा को महज़ किताब नहीं, बल्के रहनुमा बना लेना चाहिए।

अपने दर्स के दौरान मौलाना फ़ैज़ान मेहदी ने शैख़ सैय्यद रज़ी (रह.) की इल्मी और तद्विनी ख़िदमात को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश करते हुए उनके उस्ताद जनाबे शैख़ मुफ़ीद (रह.) की इल्मी शख़्सियत पर भी रोशनी डाली।

इसी दर्स में मौलाना ने अमीरुल मोमिनीन अ.स. के फ़ज़ाएल को उन्हीं की ज़बान, यानी नहजुल बलाग़ा के आईने में पेश किया। माज़ूआत में ज़ात-ए-ख़ुदा से उन्स, रसूल-ए-ख़ुदा स.अ. से नज़दीकी, इस्मत-ए-अली, इल्म-ए-अली और ज़ुह्द व तक़वा जैसे पहलुओं को मौलाना ने नहजुल बलाग़ा की रौशनी में बयान किया, जिसने मजलिसगाह की फ़िज़ा को रूहानी कैफ़ियत से भर दिया।

मोमिनीन की दिलचस्पी और हौसला-अफ़ज़ाई

दर्स का आग़ाज़ तिलावत-ए-कलाम-ए-पाक से हुआ, जिसमें इलाक़े के बुज़ुर्ग, नौजवान और तलबा बड़ी तादाद में शरीक हुए। इस दर्स के बाद लोगों ने इस बात की ख़्वाहिश का इज़हार किया कि ऐसे इल्मी और रूहानी इज्तिमा आते-जाते न रहें, बल्के तस्सल्सुल से जारी रहें।

ईद-ए-ग़दीर पर ख़ास दर्स की तैयारियाँ

इदारा-ए-इल्मो दानिश के तरजुमान ने बताया कि अशरा-ए-विलायत की तकमील पर, रोज़-ए-ग़दीर के मुबारक दिन एक ख़ास दर्स का एहतमाम लखनऊ के फरीदी नगर में वाक़े काज़मी मस्जिद में सुबह 10 बजे से किया जाएगा। दो घंटे जारी रहने वाले इस दर्स में मौलाना सैयद हैदर अब्बास रज़वी तदरीसी फ़राएज़ अंजाम देंगे।

अख़ीर में मोमिनीन से गुज़ारिश की गई कि इस मुबारक महफ़िल में वक़्त की पाबंदी और इल्मी जोश व जज़्बे के साथ शिरकत फ़रमाएं, ताकि अमीरुल मोमिनीन अ.स. की सीरत से फ़ैज़याब होकर समाज में अमन, इंसाफ़ और रौशन ख़याली का पैग़ाम आम किया जा सके।


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