जश्न-ए-विलादत-ए-इमाम रज़ा (अ.स.) पर बाराबंकी की करबला सिविल लाइंस में सजी रूहानी महफ़िल, शोअरा ने पेश किए अकीदत के फूल


निदा टीवी/अली मुस्तफा

बाराबंकी। करबला सिविल लाइंस स्थित परिसर में जश्न-ए-विलादत-ए-इमाम अली रज़ा (अ.स.) के मौके पर एक पुरवक़ार व रूहानी महफ़िल का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर से मशहूर शायरों और उलेमा ने शिरकत की। यह फिदा हुसैन रिज़वी के संयोजन में आयोजित किया गया, जिसमें इमाम रज़ा (अ.स.) की सीरत और करामात पर रोशनी डाली गई, और शोअरा ने अपने कलाम से अकीदत का नजराना पेश किया।

महफ़िल की शुरुआत तिलावते कलामे इलाही से हसनैन आब्दी उर्फ गुड्डू भाई ने की। इसके बाद मौलाना हिलाल अब्बास साहब ने जलसे को संबोधित करते हुए कहा कि, “हादी बनाना और उसकी हिफ़ाज़त करना परवरदिगार की जिम्मेदारी है। जो ख़ुदा के बनाये हादी को नहीं मानता, वह गुमराही का शिकार हो जाता है।” मौलाना ने इमाम रज़ा (अ.स.) की ज़िन्दगी और मोजिज़ों पर विस्तृत व्याख्यान देते हुए मुल्क में अमन व सलामती के लिए दुआ की।

इस रूहानी महफ़िल में देश के कई नामचीन शायरों ने अपने अशआर के जरिए इमाम रज़ा (अ.स.) की शान में अकीदत के फूल निछावर किए।

मुख्य अशआर जो महफ़िल की जान बने:

  • "ये उसकी सना का अजब मोजिज़ा है, 
  • जो लफ़्ज़ों के जिस्मों को चेहरा मिला है" 
  • – डॉ. मुहिब रिज़वी
  • "सींचा है लहू देकर सरवर ने बहत्तर का, 
  • इस्लाम वो पौधा है काटो तो हरा होगा" 
  • – हाजी सरवर अली क़र्बलाई
  • "तुम शाहे अजम भी हो तुम्हीं शाहे अरब भी, 
  • मर्ज़ी जो तुम्हारी है वही मर्ज़ी-ए-रब भी"
  • – डॉ. रज़ा मौरानवी
  • "पूर कैफ़ हैं हवाएं, चमन पुर बहार है, 
  • काज़िम का फूल आया, ये हर सूं पुकार है" 
  • – मौलाना इब्ने अब्बास
  • "जहाँ कहीं भी जहालत की तीरगी देखी, 
  • वहीं उलूम-ए-रज़ा तेरी रौशनी देखी" 
  • – आरिज जरगावी
  • "पाए दरे रज़ा से शरफ़ इब्तेदा के बाद, 
  • ज़र्रा भी आफ़ताब हुआ करबला के बाद" 
  • – कशिश संडीलवी
  • "या नबी राहे जिना इसलिए ईरान में है, 
  • आपके जिस्म का टुकड़ा जो ख़ुरासान में है" 
  • – जीना ज़फराबादी

रज़ा मेहदी और अन्य शायरों ने भी अपने कलाम से समां बांधा। इस कार्यक्रम का संचालन बख़ूबी कशिश संडीलवी ने किया।

कार्यक्रम के अंत में आयोजक फिदा हुसैन रिज़वी ने सभी अतिथियों, उलेमा, शोअरा और हाज़रीन का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि, “यह महफ़िल हमारे दिलों को रौशन करने और इमाम रज़ा (अ.स.) की मोहब्बत को ताज़ा करने का जरिया बनी है।”

यह जश्न एक ऐसा पैग़ाम था, जो न सिर्फ मोहब्बत और इमामत की रौशनी फैला गया, बल्कि समाज को अमन, इंसाफ और रूहानियत का रास्ता भी दिखा गया।

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