क़ुम, ईरान/ फज्र मीडिया के मरकज़ी दफ़्तर में उस वक़्त रूहानी मंज़र बन गया , जब तन्ज़ीमुल मकातिब के सेक्रेटरी, मुफक्किर-ए-मिल्लत, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सैयद सफ़ी हैदर साहब क़िबला वहां तशरीफ़ लाए।फज्र मीडिया की टीम ने इस्तिकबाल किया।
दफ़्तर का जायज़ा, लेकिन निगाह में फिक्र-ए-उम्मत
मौलाना साहब ने फज्र मीडिया, फज्र जूनियर, मद्ह व अज़ा रिसर्च सेंटर और टेक्निकल डिपार्टमेंट का बड़ी बारीकी से जायज़ा लिया। लेकिन उनकी निगाह सिर्फ़ तकनीकी हुनर पर नहीं थी, वो हर डिपार्टमेंट में ढूँढ रहे थे उस सच्चाई को, जो मिल्लत की तामीर कर सके।
उन्होंने फज्र मीडिया की कोशिशों को सराहते हुए फरमाया:
"यह सिर्फ़ कैमरे की दुनिया नहीं, यह दिलों की तर्जुमानी है। आप सिर्फ़ रिकॉर्ड नहीं कर रहे, आप ज़माने को हक़ दिखा रहे हैं।"
पॉडकास्ट — आवाज़ में लहू की हरारत थी
मौलाना सफ़ी हैदर साहब ने दो बेहतरीन पॉडकास्ट रिकॉर्ड करवाए:
1. हमारी महफ़िलें
2. हमारी मजलिसें
इनके लफ़्ज़ों में रूह थी, लहजे में इल्म था, और अंदाज़ में सरपरस्त का वो प्यार था जो अपने बेटों को एक बुलंदी पर ले जाना चाहता हो। जल्द ही यह दोनों पॉडकास्ट फज्र मीडिया के यूट्यूब चैनल पर दस्तक देंगे — और शायद दिलों में भी।
*तज़ुर्बा, जो ख़ज़ाना बन गया*
अपनी तक़रीर के दौरान मौलाना साहब ने बारहा इस बात पर ज़ोर दिया कि आज हमारी नौजवान नस्लें इल्म-ओ-अक़ीदे से दूर होती जा रही हैं। ऐसे में मीडिया एक हथियार नहीं, एक अमानत है जिसे ईमानदारी से चलाना होगा।
उन्होंने कहा:
"जब तक हमारे नौजवान मजलिसों में बैठेंगे, तब तक कोई गुमराह नहीं कर सकता। जब तक हमारे घरों में ज़िक्र-ए-हुसैन ज़िंदा रहेगा, तब तक दुश्मन की कोई साज़िश कामयाब नहीं होगी।"
*चलते-चलते छोड़ गए एक अमानत*
रुख़्सत से पहले मौलाना ने अपने दिल का एक बोझ भी हल्का किया — उन्होंने गुज़ारिश की कि हिंदुस्तान के 20वीं सदी के बुज़ुर्ग उलेमा की ज़िंदगी और उनके तजुर्बात को दस्तावेज़ी शक्ल दी जाए। ताकि आने वाली नस्लें जानें कि किस मिट्टी से हम बने हैं, और किन दुआओं से आज तक बाक़ी हैं।
*दुआएं, जो दिल से निकलीं और आसमान तक पहुंचीं*
फज्र मीडिया की टीम ने उनकी आमद को एक नेमत समझते हुए बारगाहे इलाही में ये दुआ की:
"ऐ अल्लाह! हमारे बुज़ुर्गों का साया हमारे सिरों पर बाक़ी रख, उनकी नसीहतों को हमारी ज़िंदगी की मशअल राह बना, और फज्र मीडिया को हक़ की आवाज़ में तब्दील कर दे। आमीन।"
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