निदा टीवी डेस्क
लखनऊ की तालीमी और फिक्री दुनिया आज ग़मज़दा है। एक ऐसा नाम, जो दशकों तक नौजवान ज़ेहनों को सँवारता रहा, जिसने Organic Chemistry के सूखे तजुर्बों में भी इन्सानियत का जज़्बा शामिल कर दिया — वही डॉ. सैयद जमाल हैदर ज़ैदी साहब अब हमारे दरमियान नहीं रहे। बीती रात अचानक दिल में तेज़ दर्द के बाद उन्हें लारी कार्डियोलॉजी ले जाया गया, लेकिन क़ज़ा का फरिश्ता आ चुका था। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया।
उनका जनाज़ा बजाजा में उनके मकान पर लाया गया, जहाँ हर आंख नम थी, हर चेहरा ख़ामोश सिसकियों से भीगा हुआ था। उनकी वालिदा की तड़प, वह मंजर जो हर पत्थर दिल को भी ग़मगीन कर दे। 11 अप्रैल को दोपहर 12:30 बजे, उन्हें इमामबाड़ा गुफ़रान माब में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जाएगा
इल्म और खिदमत का मुकम्मल सफरनामा
जन्म: 28 जून 1965
पता: 235/22A, शाहचरा लेन, विक्टोरिया स्ट्रीट, चौक, लखनऊ – 226003
तालीम:
- M.Sc. (Organic Chemistry)
- Ph.D. (Chemistry), लखनऊ यूनिवर्सिटी
तालीमी सफर:
- 1988 से शिया कॉलेज में बतौर पार्ट-टाइम लेक्चरर शुरुआत
- 1998 से फुल-टाइम लेक्चरर
- वर्तमान में एसोसिएट प्रोफेसर के ओहदे पर फ़ायज़
- Organic Chemistry में महारत, 21 रिसर्च पेपर्स
डॉ. ज़ैदी साहब एक ऐसे मिज़ाज के मालिक थे जिनका इल्म, तहज़ीब, और तसव्वुर-ए-कौम एक मुकद्दस मिशन था। किताबों के दरमियान रहते हुए भी वह समाज के हर तबक़े के दर्द को महसूस करते थे। उनका हर लहजा नर्मी, हर बात में रहनुमाई, और हर काम में खिदमत का जज़्बा झलकता था।
जिन्होंने सिर्फ पढ़ाया नहीं, बल्कि दिलों को छुआ
मेरी पहली मुलाक़ात उनसे 1985 में शिया कॉलेज के दरवाज़े पर हुई थी। उस वक़्त से लेकर अब तक — एक मुस्कुराता चेहरा, जोश से लबरेज़ ज़बान, और हर वक्त मदद के लिए हाज़िर एक इंसान।
हाल ही में अंबर फाउंडेशन के चेयरमैन वफा अब्बास द्वारा आयोजित Career Avenue Program में वह न सिर्फ़ शामिल हुए, बल्कि छात्रों की रहनुमाई में अहम किरदार अदा किया। उनकी मौजूदगी से प्रोग्राम को इल्मी शान मिली।
रमज़ान से पहले, उनके छोटे भाई अब्बास हैदर बबलू के ससुर डॉ. मजहर अब्बास नक़वी (मुस्तफाबाद, कानपुर) के इंतेक़ाल पर उन्होंने तदफीन से लेकर मजलिस तक तमाम इंतेज़ाम बड़ी जिम्मेदारी से किए। उस रोज़ उनसे लम्बी गुफ़्तगू हुई — शिया कॉलेज की पुरानी यादें, नौजवानों की सोच, कौमी बेदारी — सब पर उन्होंने दिल खोल कर बात की।
एक उस्ताद नहीं, एक मोहसिन खो दिया हमने...
वो सिर्फ़ Organic Chemistry के प्रोफेसर नहीं थे, वो दिलों के रसायन भी जानते थे।
उनके लहजे में नर्मी थी, मगर हक़ कहने का हौसला भी था।
छात्रों के लिए उनके दिल में बेशुमार मोहब्बत थी।
हर नौजवान को वो अपने बेटे जैसा समझते थे।
दुआ और श्रद्धांजलि
या रब्ब! इस बुलंद अख़लाक़ और खिदमतगुज़ार रुह को अपने जवार-ए-महबूब (अ.स.) में आला मक़ाम अता फरमा। उनके घरवालों, अज़ीज़ों और कॉलेज परिवार को सब्र-ए-जमील अता कर।
"कुछ लोग इस दुनिया में सिर्फ़ जीते नहीं, वो रौशनी बनकर दूसरों की राहें भी रौशन करते हैं...
डॉ. जमाल हैदर ज़ैदी साहब — एक रौशनी का नाम थे। आज वो रौशनी बुझ गई, मगर उसका नूर हमेशा कायम रहेगा..."
सैयद रिज़वान मुस्तफा
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