बाराबंकी, 23 अप्रैल:
बीती रात क़रीब 7:30 बजे बाराबंकी और ज़ैदपुर की जानी-मानी और बुज़ुर्ग रूहानी शख्सियत सैयद कायम रज़ा रिजवी साहब ने 79 वर्ष की आयु में इस फानी दुनिया को अलविदा कह दिया। उनका इंतिकाल अस्करी हाल बाराबंकी स्थित अपने निवास पर हुआ, जहाँ वह अपने बेटों के साथ रह रहे थे। कुछ समय से उनकी तबीयत नासाज़ थी, लेकिन आज मग़रिब की नमाज़ के बाद तबीयत अचानक ज़्यादा बिगड़ गई और हालत काबू से बाहर हो गई।
मरहूम ताल्लुक़दार मोहम्मद असकरी साहब के पोते थे और गढ़ी जदीद ज़ैदपुर के रहने वाले थे। वह उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन से सेवानिवृत्त हुए थे, लेकिन उनकी सक्रियता सामाजिक और मज़हबी मैदान में अंतिम वक्त तक बनी रही।
मरहूम अपने पीछे तीन बेटे—सफदर रिजवी, फिरोज़ रिजवी, मुफर्रे रज़ा रिजवी—और एक बेटी का भरपूर परिवार छोड़ गए हैं। उनकी शख्सियत में एक खास नर्मी, तहज़ीब, इंसाफ-पसंदी और सादगी का अक्स नज़र आता था, जिसके चलते वो हर उम्र और तबके के लोगों में बेहद मक़बूल थे।
अस्करी हाल बाराबंकी और जैदपुर के आबाई इमामबाड़े में उनकी हमेशा से गहरी दिलचस्पी रही। अज़ादारी के तमाम कार्यक्रमों में उनकी मौजूदी न सिर्फ एक जिम्मेदारी समझी जाती थी, बल्कि लोग उनकी रहनुमाई को बेहद अहम मानते थे। उनकी मुस्कराहट, मिलनसारी और बेबाक अंदाज़ उन्हें खास बनाता था।
यह भी बताना लाज़मी है कि मरहूम, मेरे दादा अल्हाज सैयद शुजाअत हुसैन रिजवी नगरामी साहब के क़रीबी और दिली दोस्तों में शामिल थे। 1972 में वारसी साहब के मकान में जब ये दोनों एक-दूसरे के पड़ोसी बने, तब से यह रिश्ता दोस्ती से आगे बढ़कर एक रूहानी रिश्ता बन गया। यह दोस्ती ज़िंदगी के आख़िरी पड़ाव तक मज़बूती से क़ायम रही।
सैयद कायम रज़ा साहब का जनाज़ा कल बुधवार को सुबह 10 बजे ज़ैदपुर स्थित मशहूर और मक़दस छोटी सरकार के आबाई और खानदानी क़ब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जाएगा। उनके इंतिकाल की खबर से अहले खानदान, ज़ैदपुर, बाराबंकी और अज़ादारी से जुड़े हर शख्स के दिल में ग़म की लहर है।
"इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन"
अल्लाह तआला मरहूम को जन्नतुल फ़िरदौस में आला मक़ाम अता फरमाए और उनके परिवार को सब्र-ए-जमील अता करे। आमीन।
अली मुस्तफा
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