निदा टीवी डेस्क /अली मुस्तफा
लखनऊ – तहज़ीब, तमीज़ और अदब की राजधानी लखनऊ ने आज अपने एक बेनज़ीर सपूत को अश्कों और दुआओं के साथ विदा किया। जामा मस्जिद और इमामबाड़ा मलका की रूहानी खिदमत में ज़िंदगी वक्फ करने वाले पूर्व डिप्टी एसपी, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित सैयद रिज़वान हैदर का जनाज़ा, एक इतिहास बन गया।
भारत की सुप्रीम रिलीजियस अथॉरिटी 'आफ़ताबे शरीअत' मौलाना डॉ. कल्बे जवाद नकवी साहब ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई, और तंजीमुल मकातिब के सेक्रेटरी रहबर ए हिंद हुज्जतुल इस्लाम सैयद सफी हैदर जैदी ने मजलिस को पुर-असर लहजे में खिताब किया।
हर कोई ग़मगीन था, लबों पर उनके नेकियों का तज़किरा था, और हाथ परवरदिगार की बारगाह में उनकी बख़्शिश के लिए उठे हुए थे।
एक बहादुर अफसर, एक दरवेश दिल इंसान:
अमरोहा की सरज़मीं में जन्मे सैयद रिज़वान हैदर ने यूपी पुलिस की सेवा में वह मिसाल कायम की, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। चंबल के ख़ूंख़ार डाकुओं को, ख़ासकर मलखान सिंह को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर करना, उनके साहस और समझदारी का लाज़वाब मिसाल थी। इन्हीं ख़िदमात के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाज़ा गया।
सेवानिवृत्ति के बाद भी 'ख़िदमत' बनी रही मक़सद:
नेपियर रोड पर अपना आशियाना बनाने के बाद जब उनकी नज़र लावारिस पड़ी लखनऊ की जामा मस्जिद पर पड़ी, तो उन्होंने उसे इबादत और इंसानियत के मरकज़ में बदलने की कसम खा ली। तमाम अवैध कब्जे हटवाए, मस्जिद की हिफाज़त की, सजाया, संवारा और उसे दुआओं का मरकज़, सुकून का महफूज़ ठिकाना और मिल्ली यकजहती की पहचान बना दिया।
उन्होंने इमामबाड़ा मलका को भी एक नई जिंदगी दी, और वहाँ की ऐतिहासिक लाइब्रेरी को संजीदगी से तरतीब देकर तहज़ीब की चिराग़दानी में एक और रौशनी जोड़ दी।
उनकी जिंदगी एक पैग़ाम थी:
"ख़िदमत, इबादत है। और इबादत का हक़, इंसानियत की भलाई में है।"
इस दिल ग़मगीन मंजर में शामिल थे:
- हुज्जतुल इस्लाम मौलाना अशरफ अली गरवी (नुमाइंदा आयतुल्लाह सिस्तानी भारत)
- मौलाना कल्बे सिब्तेन नूरी (साहबज़ादा हकीम-ए-उम्मत डॉ. कल्बे सादिक)
- नाज़मिया अरेबिक कॉलेज के प्रिंसिपल मौलाना फरीदुल हसन साहब,
- सुलतानुल मदारिस के वरिष्ठ मौलाना मूसा साहब
- हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हसनैन बाकरी, पेश इमाम मौलाना वासिफ रज़ा, मौलाना इब्राहीम साहब, मौलाना हैदर अब्बास, मौलाना मोहम्मद हुसैन, मौलाना एजाज, मौलाना तनवीर, मौलाना अलमदार, मौलाना वसी आबिदी, मौलाना सईदुल हसन, मौलाना जावेद अब्बास
सामाजिक क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों में:
- वफा अब्बास (अंबर फाउंडेशन चेयरमैन)
- सैयद रिज़वान मुस्तफा (वाइस प्रेसिडेंट, सेव वक्फ इंडिया)
- शाहकार जैदी (जामा मस्जिद एतिकाफ कमेटी)
- और लखनऊ शहर की सैकड़ों मुमताज़ शख्सियतें मौजूद थीं।
- गुस्ल करने की फजीलत मोहम्मद भाई की टीम ने पाई
जामा मस्जिद का आंगन आज गवाह था उस शख्स की वफादारी, फिक्र और रूहानी रोशनी का, जिसने इसे नई ज़िंदगी दी।
"इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहि राजेऊन"
उनका जाना, एक युग का ख़ात्मा है, लेकिन उनके जज़्बात, उनके ख़िदमात हमेशा लखनऊ की फिजाओं में महकते रहेंगे।
अलविदा रिजवान हैदर साहब कहता मजमा और हूटर की गूंजती आवाज अमरोहा की सरजमीं पर अपनी आखिरी आराम गाह के लिए जनाजा रवाना हो गया।
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