मेरी अम्मी – मेरी दुनिया



4 रमज़ान 2020 की सहरी खत्म हो चुकी थी। जा-नमाज़ पर बैठे हाथ दुआ के लिए उठे ही थे कि फोन की घंटी बजी। उधर से रोने की आवाज़ आई— "अम्मी नहीं रहीं..."

एक सन्नाटा सा छा गया। जिस आवाज़ की आदत थी, जो हर मुश्किल में ढाल बनकर खड़ी रहती थी, वो अब कभी सुनाई नहीं देगी। अम्मी कानपुर गई थीं अपनी बिटिया के पास। सोचा था कि जल्द ही वापस आएँगी, मगर वह मनहूस करोना काल था। लॉकडाउन ने सब कुछ रोक दिया था— सफर भी, मुलाकातें भी, और अब अम्मी भी चली गईं…

मैं तड़प गया। उनका चेहरा आँखों के सामने घूमने लगा। उनकी हर बात, हर नसीहत, हर दुआ अब बस यादों में रह गई। उनकी तदफीन नगराम के आबाई क़ब्रिस्तान में हुई, लेकिन उनके जाने के साथ मेरी दुनिया भी वीरान हो गई।

माँ – वह साया जो सिर से उठ जाए तो सब कुछ अधूरा हो जाता है
माँ सिर्फ़ जन्म देने वाली नहीं होती, वह पूरी ज़िंदगी का सहारा होती है। जब माँ होती है, तो दुनिया की हर मुश्किल छोटी लगती है। लेकिन जब माँ नहीं रहती, तो हर खुशी अधूरी लगने लगती है।

कहा जाता है कि जब हज़रत मूसा (अ.) अल्लाह से हमकलाम होने तूर पर्वत पर गए, तो अल्लाह ने फ़रमाया:

"मूसा! संभल कर आना, आज तेरे सिर पर माँ नहीं है…"

यह अल्फ़ाज़ अपने अंदर गहरी हकीकत समेटे हुए हैं। माँ का दामन वह छाँव है, जिसमें औलाद सुकून पाती है। जब तक माँ होती है, तब तक कोई फिक्र नहीं होती, मगर जब माँ का साया उठ जाता है, तब इंसान तन्हा हो जाता है।

मरहूमा जीनत फातिमा बिन्ते सैयद मुहिब हुसैन के लिए फातिहा

बाराबंकी के वक़्फ़ अमजद अली ख़ान साहब बेगमगंज में मरहूमा जीनत फातिमा बिन्ते सैयद मुहिब हुसैन की याद में मजलिस का एहतमाम किया गया। इस ख़ास मौके पर मौलाना जवाद अस्करी साहब क़िब्ला ने ख़िताब किया।

इसके अलावा, नगराम लखनऊ में मस्जिद सैयद फ़िदा हुसैन कोठी में जुमेरात के रोज़ इफ्तार और मजलिस का भी एहतमाम किया गया, जहाँ मरहूमा के लिए सुरह फ़ातिहा और ईसाले सवाब किया जाएगा

माँ का दामन – सबसे बड़ी पनाहगाह

एक बच्चा की जब विलादत होती है, तो सबसे पहले अपनी माँ की गोद में सुकून महसूस करता है। माँ की लोरी उसे ज़िंदगी की पहली मीठी धुन सुनाती है, उसकी उँगली पकड़कर वह चलना सीखता है, उसकी बातों से तमीज़ और तहज़ीब हासिल करता है।

माँ का बस एक लफ्ज़ ‘बेटा’ पुकारना ही दिल को राहत देने के लिए काफ़ी होता है। वह ख़ुद तकलीफ़ें सहकर भी अपनी औलाद को आराम देती है। अगर औलाद भूखी है, तो माँ का हलक़ से निवाला नीचे नहीं उतरता। अगर औलाद किसी मुसीबत में हो, तो माँ बेचैन हो जाती है।

माँ के बिना ज़िंदगी की वीरानी

जब माँ दुनिया से चली जाती है, तो इंसान की ज़िंदगी में एक ऐसा ख़ला (शून्य) आ जाता है, जिसे कोई और नहीं भर सकता। माँ की दुआएँ इंसान की तक़दीर बदल सकती हैं। इसीलिए जब माँ नहीं होती, तो उसकी दुआओं की ताक़त भी इंसान से छिन जाती है।

कई बार ज़िंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं, जब इंसान गिरने लगता है, तब माँ की एक दुआ उसे संभाल लेती है। लेकिन जब माँ नहीं होती, तो यही गिरना कभी-कभी इंसान को तोड़कर रख देता है।

माँ की क़ीमत – जब तक वह साथ हो, तब तक समझो

अक्सर हम माँ की अहमियत को तब तक नहीं समझते, जब तक वह हमारे पास होती है। लेकिन जब वह चली जाती है, तो उसकी यादें हमें तड़पाती हैं। इसलिए जब तक माँ हमारे पास है, हमें उसकी क़दर करनी चाहिए, उसे खुश रखना चाहिए, उसके हर लफ्ज़ की अहमियत समझनी चाहिए।

माँ का दिल बहुत नर्म होता है। वह औलाद के कड़वे बोल भी बर्दाश्त कर लेती है, लेकिन उसके अंदर छुपे दर्द को कोई महसूस नहीं कर पाता। माँ की एक आह भी इंसान की ज़िंदगी में बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकती है, और उसकी एक दुआ उसे बुलंदियों तक पहुँचा सकती है।

माँ ही असली दौलत है

दुनिया की दौलत, शोहरत, मक़ाम और रिश्ते सब बेकार हैं, अगर माँ का साया सिर पर नहीं है। इसलिए अगर आपकी माँ ज़िंदा है, तो उसे गले लगाइए, उसके कदमों में बैठिए, उसकी बातों को गौर से सुनिए और उसकी खिदमत को अपनी ज़िंदगी का मक़सद बना लीजिए।

क्योंकि जब वह चली जाएगी, तब सिर्फ़ उसकी यादें, उसकी बातें और उसकी अधूरी दुआएँ ही रह गई… और तब अल्लाह की वह सदा कानों में गूंजेगी:

"संभल कर चलना, आज तेरे सिर पर माँ नहीं है…"

(मरहूमा जीनत फातिमा बिन्ते सैयद मुहिब हुसैन के लिए सुरह फ़ातिहा की इल्तेजा है।)

सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा 

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