सब्र और यकीन: अल्लाह की रहमत तक पहुंचने की सीढ़ियां
रमज़ान का पाक महीना इंसान को खुदा की रहमत और बरकतों की तलाश में सब्र और यकीन का सबक सिखाता है। यह वह महीना है, जिसमें इंसान सिर्फ भूखा-प्यासा नहीं रहता, बल्कि अपनी रूहानी ताकत को मज़बूत करता है, अपने गुनाहों की माफी मांगता है और अल्लाह की रहमत का हक़दार बनने की कोशिश करता है। इसी पाक महीने में यह समझना जरूरी हो जाता है कि मोज़िज़े (चमत्कार) सिर्फ दो सीढ़ियों के फासले पर होते हैं—पहली सीढ़ी सब्र और दूसरी यकीन।
सब्र: अल्लाह की रज़ा में राज़ी रहने की पहली सीढ़ी
अक्सर लोग सब्र को सिर्फ तकलीफें सहने और हालात से मजबूर होकर जीने का नाम समझते हैं, लेकिन असल सब्र यह नहीं है। सब्र का असली मतलब है अल्लाह की मर्ज़ी में खुश रहना, हर हालात को उसके हुक्म के तौर पर तस्लीम करना और किसी भी परेशानी में शिकायत न करना।
क़ुरआन-ए-पाक में अल्लाह फरमाता है:
"इन्नल्लाहा मआस्साबिरीन"
(बेशक, अल्लाह सब्र करने वालों के साथ है) — (सूरह अल-बक़रह 2:153)
इस आयत से साफ जाहिर होता है कि सब्र करने वाले अल्लाह की खास रहमत के हकदार होते हैं। जब इंसान अपने हालात पर गिला-शिकवा करने के बजाय, उन्हें अल्लाह की मर्ज़ी मानकर आगे बढ़ता है, तो वह सब्र की पहली सीढ़ी चढ़ जाता है।
यकीन: मोज़िज़ों तक पहुंचने की दूसरी सीढ़ी
सब्र के बाद दूसरी अहम चीज़ यकीन है। यकीन सिर्फ यह मानने का नाम नहीं कि अल्लाह है, बल्कि यह भरोसा रखने का नाम है कि जो कुछ भी हो रहा है, वह अल्लाह की मर्जी से हो रहा है और उसका अंजाम बेहतर होगा।
अक्सर हम दुआ करते हैं लेकिन हमारा यकीन कमजोर रहता है। हमें लगता है कि हमारी दुआ कबूल नहीं होगी या बहुत देर हो जाएगी। यकीन का मतलब यह है कि इंसान हर हाल में इस भरोसे के साथ जिए कि अल्लाह उसके लिए सबसे बेहतर करेगा।
हज़रत मूसा (अ.स) का यकीन देखिए—जब उनके सामने समंदर था और पीछे फिरऔन की फौज, तो उनके साथियों ने कहा कि अब कोई रास्ता नहीं बचा। लेकिन हज़रत मूसा (अ.स) ने पूरे यकीन के साथ कहा:
"कल्ला, इन्न मआय्या रब्बी सयहदीन"
(हरगिज़ नहीं, मेरा रब मेरे साथ है और वह मुझे रास्ता दिखाएगा) — (सूरह अश-शुअरा 26:62)
और अल्लाह ने समंदर में रास्ता बना दिया। यही यकीन की ताकत होती है।
सब्र और यकीन: दोनों का मिलना जरूरी
अगर सब्र हो लेकिन यकीन न हो, तो इंसान मायूस हो जाता है।
अगर यकीन हो लेकिन सब्र न हो, तो इंसान जल्दबाज़ी में गलत फैसले कर लेता है।
इसलिए दोनों का एक साथ होना जरूरी है। जब इंसान सब्र और यकीन की दोनों सीढ़ियां चढ़ता है, तो अल्लाह उसे ऐसे रास्तों से निकलता है, जो उसके गुमान में भी नहीं होते।
अल्लाह की रहमत तक पहुंचने का रास्ता
- तकलीफों पर सब्र करें: कोई भी मुश्किल हमेशा के लिए नहीं होती।
- दुआ करते रहें: हर मुश्किल का हल अल्लाह के पास है।
- यकीन को मजबूत करें: जो अल्लाह पर भरोसा करता है, अल्लाह उसे कभी मायूस नहीं करता।
- नेकी और भलाई जारी रखें: अल्लाह नेक लोगों का सहारा बनता है।
हर मुश्किल आसान हो जाएगी
जब इंसान सब्र और यकीन के साथ जिंदगी गुज़ारता है, तो अल्लाह उसकी परेशानियों को दूर करता है, उसके रास्ते आसान करता है और उसे ऐसी रहमतों से नवाजता है जिनका उसने कभी सोचा भी नहीं होता।
अल्लाह से दुआ है कि वह हमें सच्चा सब्र और मजबूत यकीन अता फरमाए और हमारी तमाम मुश्किलात को आसान कर दे।
आमीन या रब्बल आलमीन 🤲
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