रमज़ान में तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट की ख़ामोश खिदमत – इंसानियत की मिसाल,क्या हमें भी ऐसे नेक कामों का हिस्सा बनना चाहिए? https://youtube.com/shorts/WxThaKzU_Zo?si=-fR-KYwtQ1LFWsZj

निदा टीवी डेस्क,

ये सऊदी अरब, ईरान, इराक या यूएई नहीं है, ये है हमारा भारत महान, जहां रोज़ा रखने वालों के सम्मान में पलकें बिछाई जाती हैं। जहां मज़हब से ऊपर उठकर इंसानियत की सेवा की जाती है, और इसी जज़्बे को सालों से ज़िंदा रखा है तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट, लखनऊ ने।

पद्म भूषण हकीम-ए-उम्मत मौलाना डॉ. कल्बे सादिक़ साहब ने इस नेक काम की बुनियाद रखी थी। उन्होंने एक ऐसा सिस्टम तैयार किया था, जिसके ज़रिए गरीब और ज़रूरतमंद मोमिनीन तक रमज़ान में मदद ख़ामोशी से पहुंचाई जाती रहे, ताकि न उनकी इज़्ज़त पर कोई असर पड़े और न ही किसी की खुद्दारी को ठेस पहुंचे।

आज, उसी जज़्बे और शान के साथ, सोशल रिफॉर्मर डॉ. कल्बे सिब्ते नूरी की सरपरस्ती में यह सिलसिला जारी है। रमज़ान के पूरे महीने यह ट्रस्ट अपने देश और इंसानियत की सेवा के लिए अल्लाह की मदद से जुटा रहता है। यही नहीं, इन नेकियों की बदौलत देश की तरक्की और सलामती के लिए ईद तक ज़ोरदार दुआएं भी की जाती हैं।

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ख़ामोशी से तक़सीम होने वाली मदद – एक शानदार मिसाल

आज जब निदा टीवी की टीम ने इस मुहिम को क़रीब से देखा, तो एक ऐसा नज़ारा सामने आया, जिसने दिल को छू लिया। ट्रस्ट ने पूरी ताज़ीम और ख़ामोशी के साथ ज़रूरतमंदों तक मदद पहुंचाने की ज़िम्मेदारी संभाल रखी थी। कोई शोर-शराबा नहीं, कोई दिखावा नहीं—बस एक ख़ालिस इबादत और इंसानियत की सेवा

यह देखकर दिल से यही दुआ निकली कि अल्लाह इस नेक अमल को और बुलंद करे। यह सिर्फ़ एक राशन तक़सीम करने की बात नहीं है, बल्कि यह एक सबक भी है उन लोगों के लिए, जो सिर्फ़ मंचों से तक़रीरें करके मज़हब और इंसानियत की बातें करते हैं, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं करते।

इंसानियत की ख़िदमत ही असल मक़सद है

तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट ने यह साबित कर दिया कि सिर्फ़ बोलने से कुछ नहीं होता, असल काम अमली ख़िदमत है। हकीम-ए-उम्मत मौलाना डॉ. कल्बे सादिक़ साहब का यही पैग़ाम था—ख़ामोशी से नेक काम करो और इंसानियत की भलाई के लिए जीयो।

भारत हमेशा इंसानियत और आपसी भाईचारे की मिसाल बना रहेगा, जहां रोज़ेदारों के लिए पलकें बिछाई जाती हैं और नेकियों का सिलसिला बिना किसी शोर के जारी रहता है।

क्या हमें भी ऐसे नेक कामों का हिस्सा बनना चाहिए?


यह सवाल हर इंसान को ख़ुद से पूछना चाहिए। नेक काम का हिस्सा बनने के लिए सिर्फ़ दौलत की ज़रूरत नहीं होती, बल्कि एक नेक नीयत और सच्चे जज़्बे की ज़रूरत होती है। अगर हम सिर्फ़ अपनी ताक़त के मुताबिक़ भी किसी ज़रूरतमंद की मदद कर सकें, तो शायद समाज में और ज़्यादा बदलाव ला सकते हैं।


आपका क्या ख्याल है? क्या हमें भी समाज के लिए इसी तरह के ख़ामोश लेकिन असरदार कदम उठाने चाहिए?




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