बरसी का दिन था। अम्मी की यादें हर लम्हा दिल और दिमाग पर छाई हुई थीं। दिन भर एक अजीब सी उदासी थी। कुछ दूर के लोगों ने याद किया, फ़ोन किया, हालचाल लिया, लेकिन जो सबसे क़रीबी थे, जिन्होंने हर खुशी और ग़म में साथ होने का दावा किया था, वो ख़ामोश थे।
ये खामोशी किसी शिकवे की तरह थी— ऐसी खामोशी जो इंसान को अंदर तक तोड़ देती है। वो लोग, जिनसे उम्मीद थी कि वे आगे बढ़कर गले लगाएंगे, दिलासा देंगे, वे जैसे इस दिन से ही बेख़बर थे। कभी-कभी सन्नाटे चीख़ों से ज़्यादा तकलीफ देते हैं।
शाम हुई, तो विकार भाई आए। कुछ देर बातें हुईं, हाल-चाल पूछा। उनका आना, चंद लफ्ज़ बोलना, बस पास बैठ जाना ही काफ़ी था। फिर हम मस्जिद की तरफ़ निकल पड़े, मगरिब की नमाज़ अदा की और रोज़ा खोला। वो कुछ लम्हे, वो चंद बातें, जो दिल की गहराई तक सुकून दे गईं।
आज के रिश्ते – सिर्फ नाम के!
आजकल रिश्तों की हालत अजीब हो गई है। जो लोग अपने क़रीबी कहलाते हैं, वही दूर होते जा रहे हैं। और जो दूर होते हैं, वे कभी-कभी इतनी शिद्दत से पास आ जाते हैं कि दिल को छू जाते हैं।
कुछ रिश्ते सिर्फ ज़रूरत तक सीमित हो गए हैं। जब तक मतलब है, तब तक प्यार है, अपनापन है। लेकिन जैसे ही ज़रूरत ख़त्म होती है, वो अपनापन भी कहीं खो जाता है। रिश्तों का मतलब अब एहसास नहीं, बल्कि सुविधाएँ बनती जा रही हैं।
पहले लोग रिश्ते निभाने के लिए जीते थे, अब रिश्तों का इस्तेमाल करके जीते हैं। पहले दुख और खुशी मिलकर बांटे जाते थे, अब सोशल मीडिया पर स्टेटस डालकर रिश्ते निभाने की रस्म अदा कर दी जाती है।
अजीजों का अंदाज़ – वो भी अजनबी हो गए!
सबसे ज्यादा तकलीफ़ तब होती है, जब जो सबसे करीब थे, वही सबसे ज्यादा दूर नज़र आते हैं। जिनसे उम्मीद होती है कि वे आगे बढ़कर गले लगाएंगे, वे ही कंधा झटककर आगे बढ़ जाते हैं।
कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं, जो दिल के करीब होते हैं, लेकिन उनका अंदाज़ धीरे-धीरे बता देता है कि वे अब हमारे नहीं रहे। उनके पास वक्त नहीं होता, उनकी याददाश्त कमज़ोर हो जाती है, या शायद अब उनके दिल में हमारी जगह नहीं बची।
रिश्ते अब लफ्ज़ों में रह गए हैं, दिलों से मिटते जा रहे हैं।
रिश्तों की हकीकत – जो अपने हैं, वही काफ़ी हैं
इस दुनिया में हर इंसान सबका नहीं हो सकता और हर रिश्ता हमेशा एक जैसा नहीं रहता। जो लोग सच्चे होते हैं, वे हर हाल में साथ होते हैं, चाहे वक़्त कैसा भी हो।
हमेशा उन्हीं लोगों की फ़िक्र करो जो तुम्हारी क़द्र करते हैं, जो तुम्हारी गैरमौजूदगी में भी तुम्हें याद रखते हैं, तुम्हारी ख़ुशी और ग़म में सच्चे दिल से शामिल होते हैं। और जो लोग सिर्फ मौके पर याद करते हैं, उनका बोझ दिल से उतार दो।
क्योंकि रिश्ते निभाए जाते हैं, तौला नहीं जाता। जो तुम्हें तौल रहे हैं, उनका बोझ अपने दिल पर मत रखो।
परवरदिगार सबको अच्छा रखे
दुआ है कि अल्लाह हर किसी को रिश्तों की अहमियत समझने की तौफ़ीक़ दे। जिनके अपने जिंदा हैं, वे उनकी क़द्र करें। जो चले गए, उनके लिए दुआ करें।
और सबसे अहम बात – जो लोग तुम्हें भूल गए, उनसे शिकायत करने के बजाय, उन लोगों को याद रखो जिन्होंने तुम्हें अकेला महसूस नहीं होने दिया।
अल्लाह सबको सलामत रखे, दिलों में मोहब्बत पैदा करे, और हमें अच्छे रिश्ते निभाने की तौफ़ीक़ अता करे।
✍️सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
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