19 जनवरी 1996 का दिन नगराम के इतिहास में कभी न भुलाया जाने वाला दिन है। लखनऊ के बलरामपुर हॉस्पिटल में मौलाना सैयद हसन अब्बास रिजवी नगरामी का इंतिकाल हुआ। उनके इंतिकाल ने न केवल उनके परिवार बल्कि पूरे नगराम कस्बे और उसके आसपास के क्षेत्रों को गमजदा कर दिया। यह क्षति उस समाज के लिए भी बड़ी थी, जिसे मौलाना ने अपनी जिंदगी में इंसानियत और तालीम की राह दिखाई।
मौलाना सैयद हसन अब्बास साहब उन शख्सियतों में से थे, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लोगों की भलाई और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए समर्पित की। वे एक ऐसे आलिम थे, जो न केवल किताबों और मजलिसों में मशहूर थे, बल्कि अपनी इंसानियत, हमदर्दी और खुशमिजाजी के लिए भी जाने जाते थे।
इल्म और अमल का बेहतरीन संगम
मौलाना सैयद हसन अब्बास रिजवी ने अपनी शुरुआती तालीम नगराम में हासिल की। इसके बाद उन्होंने आकाए शरीयत मौलाना कल्बे आबिद साहब के साथ शिक्षा ग्रहण की। यह रिश्ता सिर्फ किताबों और मजलिसों तक सीमित नहीं था। मौलाना कल्बे आबिद साहब और मौलाना हसन अब्बास साहब के बीच एक ऐसा मजबूत रिश्ता था, जिसमें इल्म और अमल का संगम देखने को मिलता था। मौलाना ने इस तालीम को अपने अमल में ढालकर समाज के सामने इंसानियत और खिदमत की बेहतरीन मिसाल पेश की।
तंजीमुल मकातिब से जुड़ाव
मौलाना हसन अब्बास साहब ने मौलाना गुलाम अस्करी साहब के मिशन तंजीमुल मकातिब से जुड़कर समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार का काम शुरू किया। भागलपुर, अकबरपुर बाराबंकी, रुदौली और अन्य इलाकों में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने शिक्षा को हर वर्ग और हर तबके तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया। मौलाना का मानना था कि शिक्षा ही इंसान को बेहतर इंसान बना सकती है।
बिजनौर लखनऊ में भी उन्होंने अपनी तालीम देने की कोशिशें जारी रखीं। बिजनौर लखनऊ में अपने बेटे जावेद अब्बास के पास रहते हुए भी वे बच्चों को शिक्षित करने और समाज की भलाई के कामों में जुटे रहे। उनकी यह कोशिशें उनके जाने के बाद भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।
खानवादए जौरास और मौलाना की अदब व मोहब्बत
मौलाना सैयद हसन अब्बास साहब का बहुत समय खानवादए जौरास में गुजरा। इस खानदान के मौलाना बाकिर जौरासी, मौलाना ग़फिर साहब, मौलाना सैय्यदैन जौरासी और मौलाना जाबिर जौरासी जैसे बड़े आलिम उनके करीबी दोस्त और सम्मानकर्ता थे। यह रिश्ता मोहब्बत, अदब और इंसानियत के साझा मूल्यों पर आधारित था।
उनका नाम जिक्र होते ही लोग उनकी नेकियों, उनकी हमदर्दी और उनकी खिदमत को याद करते हैं। मौलाना जौरासी परिवार के साथ उनके संबंधों की गहराई इस बात से समझी जा सकती है कि वे हर खास-ओ-आम में उनकी सलाह और मार्गदर्शन को अहमियत देते थे।
मौलाना सैयद सफी हैदर और उनकी कद्र
तंजीमुल मकातिब के सेक्रेट्री मौलाना सैयद सफी हैदर साहब ने भी मौलाना हसन अब्बास साहब की नेकियों और खिदमतों का जिक्र करते हुए कहा कि वे न केवल एक बेहतरीन आलिम थे, बल्कि एक ऐसे इंसान भी थे, जो अपनी जिंदगी को खिदमत-ए-खल्क के लिए वक़्फ कर चुके थे। उनकी इंसानियत और खुशमिजाजी का असर ऐसा था कि हर कोई उनसे मोहब्बत करता था।
खानदान का योगदान और उनकी विरासत
मौलाना हसन अब्बास साहब के परिवार ने भी उनके उसूलों और उनकी तालीम को आगे बढ़ाने का काम किया। उनके तीन बेटे – सरवर भाई, अनवर भाई और जावेद भाई – अपने पिता की दी गई तालीम को अपनाने की पूरी कोशिश करते रहे। उनकी बेटियां – सीरत बाजी और इफ़्फत बाजी – ने भी अपने पिता की शिक्षा और खिदमत का प्रभाव अपने जीवन में महसूस किया।
मौलाना की जौजा भी एक धार्मिक और नेकदिल महिला थीं, जिन्होंने हर कदम पर उनका साथ दिया। आज उनके परिवार में उनके छोटे बेटे सईद अब्बास गुड्डन भाई नगराम में रहते हैं और उनकी बेटी बिब्बन बाजी रुदौली में रह रही हैं। यह परिवार आज भी मौलाना की याद और उनके नेक कामों को जिंदा रखे हुए है।
मौलाना की शख्सियत का असर
मौलाना सैयद हसन अब्बास साहब की शख्सियत अपने आप में एक मिसाल थी। वे न केवल एक आलिम, बल्कि एक सच्चे हमदर्द, एक बेहतरीन शिक्षक और इंसानियत के सच्चे पैरोकार थे। उनकी खिदमत का असर उनके जाने के बाद भी समाज पर साफ दिखाई देता है।आज कई उलेमा उनके शागिर्द है।
मौलाना की जिंदगी हर उस इंसान के लिए प्रेरणा है, जो अपनी जिंदगी को दूसरों की भलाई और इंसानियत के उसूलों के लिए समर्पित करना चाहता है।
यादों का उजाला और उनकी सीख
आज उनकी बरसी पर, हम उनके द्वारा दिए गए इंसानियत और शिक्षा के सबक को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनका जीवन इस बात का सबूत है कि इंसानियत और हमदर्दी से बढ़कर कोई चीज नहीं है। उनके नेक काम और उनकी शिक्षा आज भी उनके चाहने वालों के दिलों में जिंदा हैं।
खुदा से दुआ है कि मौलाना की रूह को जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता करे और उनकी नेकियों का सिलसिला उनके परिवार और चाहने वालों के जरिए हमेशा जारी रहे।
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