निदा टीवी डेस्क/सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
नगराम की फिजा में जब भी मोहर्रम का आगाज़ होता है, सैयद सिब्तेन जहीर रिजवी, जिन्हें लोग मोहब्बत से "अहसन भाई" के नाम से याद करते हैं, की यादें हर दिल में ताजा हो जाती हैं। बगले का उनका बड़ा घर, बड़ा दरवाजा और उसके सामने फैला मस्जिद का मैदान उनकी शख्सियत और नगराम में अज़ादारी की विरासत को बयान करता है।
मोहर्रम के दौरान मेहदी का जुलूस जब उनके घर से रवाना होता था, तो वह नजारा देखने लायक होता। अहसन भाई की शख्सियत पूरे जुलूस पर छाई रहती थी। कभी वह पेट्रोमैक्स में हवा भरते, कभी मेहदी के थालों को सही करते, तो कभी ढोल बजाने वालों को उनकी गलती पर टोकते। उनकी मसरूफियत और खिदमत का अंदाज ऐसा था कि लोग उनकी हर अंदाज को सराहते थे, मर्सिया पढ़ने वालों के साथ खड़े होकर टॉर्च की रोशनी में उनका साथ देना उनकी फिक्र और अकीदत को बयान करता था।
जुनून और इखलास का मंजर
अहसन भाई की जिंदगी का एक ही मकसद था – अज़ादारी को उसका असल मकाम देना। वह हर काम जुनून और इखलास के साथ करते। उनका मकबूल नव्हा "चाचा आस दिलाए दो, चाचा प्यास बुझाए दो" ऐसा दर्दनाक था कि हर मजहब और हर तबके के लोग इसे सुनकर सिसक उठते। उनके लफ्ज़ों की गूंज और उनकी आवाज़ का दर्द ऐसा था कि हर सुनने वाला उनके साथ रोता।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी डॉ. इसरार हुसैन रिजवी साहब के घर के सामने का भरा मजमा, "अली अली हाय अली" की सदा और घंटों वहीं खड़े होकर जुलूस का हिस्सा बनना आज भी नगराम के हर दिल में ताजा है। वह न केवल एक बेहतरीन नौहाख्वां थे, बल्कि अज़ादारी के हर पहलू को बखूबी निभाने वाले रहनुमा भी थे।
नवहा पढ़ने वालों की हौसला अफजाई
अहसन भाई बच्चों और नवजवानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत थे। वह नवहा पढ़ने वाले छोटे बच्चों और नवजवानों की हौसला अफजाई करते थे। उनकी उंगली पकड़कर बच्चों को नवहा पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना और नवजवानों को उनकी तालीम और अज़ादारी के सफर में साथ देना उनकी शिक्षा और मोहब्बत का प्रतीक था। उनके इस स्नेह और प्रोत्साहन ने नगराम में कई नौजवानों को अज़ादारी की राह पर चलने की प्रेरणा दी।
उनकी नेकियां और जुझारूपन
उनकी नेकियों और जुझारूपन का हर कोई कायल था। उनका हर अंदाज नगराम के लोगों के लिए मिसाल था। उन्होंने अज़ादारी को न सिर्फ अपनी जिंदगी का मकसद बनाया, बल्कि उसे अपनी शख्सियत का हिस्सा भी बना लिया। उनके बिना नगराम की अज़ादारी अधूरी सी लगती थी।
19 जनवरी 2015 को उनके इंतेकाल के बाद, वह भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, उनके काम और उनका जुझारू अंदाज आज भी ज़हन और दिलों में ताजा है।
विरासत को संभालते अर्शी और शम्सी सल्लम्हू
अहसन भाई की इस अज़ादारी की विरासत को उनके बेटे अर्शी और शम्सी आज भी बड़े जिम्मेदारी और मोहब्बत से निभा रहे हैं। अपने वालिद के नक्श-ए-कदम पर चलते हुए, वे नगराम में अज़ादारी की परंपरा को जारी रख रहे हैं। यह उनकी मेहनत और फिक्र का ही नतीजा है कि आज भी नगराम में मोहर्रम की शान और उसकी अकीदत बरकरार है।
दुआ और फातिहा की गुजारिश
अहसन भाई के लिए एक सुरा-ए-फातिहा पढ़कर उनकी रूह को बख्श दीजिए। वह न केवल नगराम की अज़ादारी की पहचान थे, बल्कि एक ऐसी शख्सियत थे, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी दूसरों के लिए और मजहब के लिए वक्फ कर दी। उनकी बातें, उनके लफ्ज़ और उनका अंदाज हमेशा नगराम की फिजाओं में गूंजता रहेगा।
"अहसन भाई, आप आज भी हमारे दिलों में जिंदा हैं, और आपकी मेहनत और मोहब्बत का हर लम्हा हमें आपकी कमी महसूस कराता है।"
हमारी वेबसाइट का उद्देश्य
समाज में सच्चाई और बदलाव लाना है, ताकि हर व्यक्ति अपने हक के साथ खड़ा हो सके। हम आपके सहयोग की अपील करते हैं, ताकि हम नाजायज ताकतों से दूर रहकर सही दिशा में काम कर सकें।
कैसे आप मदद कर सकते हैं:
आप हमारी वेबसाइट पर विज्ञापन देकर हमें और मजबूती दे सकते हैं। आपके समर्थन से हम अपने उद्देश्य को और प्रभावी ढंग से पूरा कर सकेंगे।
हमारा बैंक अकाउंट नंबर:
- बैंक का नाम: Bank Of India
- खाता संख्या: 681610110012437
- IFSC कोड: BKID0006816
हमारे साथ जुड़कर आप हक की इस राह में हमारा साथी बन सकते हैं। आपके सहयोग से हम एक मजबूत और सच्ची पहल की शुरुआत कर सकेंगे।