नौचंदी जुमेरात: एक पुरानी रिवायत की खाली होती ज़मीन


"नौचंदी जुमेरात को इंतजार करते आपका कर्बला और कब्रिस्तान: कब्रें भरती गईं पर दिलों में जगह कम होती गई", बेहिसी की इंतिहा: कब्रों पर न फूल न सुराए फातिहा?"

नौचंदी जुमेरात का दिन कभी हमारे दिलों में गहरे एहसास और श्रद्धा से भरा होता था। यह एक ऐसा मौका था जब हम अपने बुजुर्गों की यादों में खो जाते थे, उनकी कब्रों पर फातिहा पढ़ते थे और उनके लिए दुआ करते थे। यह कोई साधारण दिन नहीं था, बल्कि मरहूमों के प्रति हमारी मोहब्बत का इज़हार था। लेकिन आजकल यह सिर्फ एक रस्म बनकर रह गया है, जिसमें न तो वही इबादत की सच्ची भावना है, न ही हमारी दिलों में वह जगह बची है जो कभी इन कब्रों ने हमारे दिलों में बनाई थी।

कर्बला और कब्रिस्तान: भरती कब्रें, खाली दिल

आज भी कर्बला और कब्रिस्तान की ज़मीन मुर्दों से भरी हुई है, लेकिन वह दिन अब खत्म हो चुका है जब लोग अपनी पुरखों की कब्रों पर श्रद्धा और दुआ के लिए आते थे। अब अधिकतर लोग वहां कैमरा लेकर पहुंचते हैं, तस्वीरें खींचते हैं, फिर जल्दी से बाहर निकल जाते हैं। कब्रों के पास बैठने, रोने, या कुछ वक्त निकालने की बजाय वे सिर्फ रस्म अदायगी तक ही सीमित हो गए हैं।

कर्बला में खामोशी: बेहिसी का इज़हार

पुरानी कर्बलाओं की खामोशी आज दिलों में एक गहरी गूंज पैदा करती है। वह खामोशी जो कभी दुआओं और रोने की आवाज़ से टूटती थी, अब लोगों के जमीर के लिए एक चुनौती बन गई है। जगह-जगह टूटी कब्रें और अधूरी मिट्टी की गहराइयां हैं, लेकिन सवाल यह है कि इनको कौन देखेगा? क्या हम अब भी अपने पुराने रिश्तों की क़ीमत समझते हैं?

मौजूदगी से ज्यादा गैरमौजूदगी का अहसास

आज के समय में लोग कर्बला और कब्रिस्तान तो आते हैं, लेकिन उनका मकसद बिल्कुल बदल चुका है। बहुत से लोग फातिहा पढ़ने आते हैं, लेकिन कई लोग इसे महज एक परंपरा मानते हैं। वे चुपचाप कब्रों की हालत देख कर भी नज़रअंदाज़ कर जाते हैं, जबकि ये कब्रें हमारे पुरखों का हिस्सा हैं और हमें इन्हें संजीदगी से देखना चाहिए।

बेहिसी का दौर: क्या हम अपने फर्ज़ को निभा रहे हैं?

हमारे समाज में एक खामोश बेहिसी का दौर है। लोग अब अपने बुजुर्गों के लिए वक्त नहीं निकालते। उनकी कब्रों की मरम्मत या देखभाल के लिए कोई कदम नहीं उठाते। हमे याद रखना चाहिए कि मज़हब ने हमें मरहूमों के लिए दुआ करने का हुक्म दिया है, लेकिन क्या हम इस हुक्म को निभा रहे हैं?

क्या कर सकते हैं हम?

1. अपने बच्चों को यह सिखाएं कि मरहूमों की कब्रों पर जाना केवल एक रस्म नहीं, बल्कि दिल से जुड़ने का तरीका है।
2. कर्बला कब्रिस्तान की साफ-सफाई और देखभाल को सुनिश्चित करें।
3. कब्रों की मरम्मत और कर्बला में फूलों की देखभाल के लिए एक फंड इकट्ठा करने की पहल शुरू करें।
4. नौचंदी जुमेरात को एक यादगारी दिन बनाएं, जिसमें परिवार और दोस्त मिलकर अपने मरहूमों की याद में दुआ करें।

आखिरी सवाल: क्या हम अपना फर्ज निभा रहे हैं?

क्या हम अपने बुजुर्गों के लिए एक दिन निकाल सकते हैं, या महीने में एक दिन उनकी कब्रों पर जाकर दुआ कर सकते हैं? कर्बला और कब्रिस्तान केवल इमारतें नहीं हैं, ये हमारे रिश्तों, यादों और पहचान का प्रतीक हैं। अगर हम इन्हें भूल गए, तो हम अपनी इंसानियत को भी खो देंगे।

अब समय आ गया है कि हम अपने जमीर को जगाएं। फातिहा सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि हमारे दिलों की आवाज़ है, जो मरहूमों की सुकून और मगफिरत का कारण बन सकती है।

उठिए, कुरान की तिलावत के साथ दुआए कुमैल पढ़ें, और अपने जमीर को जागरूक करें।

हमारी वेबसाइट का उद्देश्य

समाज में सच्चाई और बदलाव लाना है, ताकि हर व्यक्ति अपने हक के साथ खड़ा हो सके। हम आपके सहयोग की अपील करते हैं, ताकि हम नाजायज ताकतों से दूर रहकर सही दिशा में काम कर सकें।

कैसे आप मदद कर सकते हैं:

आप हमारी वेबसाइट पर विज्ञापन देकर हमें और मजबूती दे सकते हैं। आपके समर्थन से हम अपने उद्देश्य को और प्रभावी ढंग से पूरा कर सकेंगे।

हमारा बैंक अकाउंट नंबर:

  • बैंक का नाम: Bank Of India
  • खाता संख्या: 681610110012437
  • IFSC कोड: BKID0006816

हमारे साथ जुड़कर आप हक की इस राह में हमारा साथी बन सकते हैं। आपके सहयोग से हम एक मजबूत और सच्ची पहल की शुरुआत कर सकेंगे।

Post a Comment

Previous Post Next Post