वर्ष 2025 की पहली खुशी, इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की विलादत, मुसलमानों और इंसानियत के लिए एक प्रेरणा है। 1 रजब, इस्लामी कैलेंडर के अनुसार, वह दिन है जब इस महान हस्ती ने दुनिया में कदम रखा। उनका जन्म न केवल एक ऐतिहासिक घटना है, बल्कि यह ज्ञान, न्याय और धर्म के पुनःस्थापन का प्रतीक भी है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) का परिचय
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ), अहले बैत के सदस्य और इस्लाम के पाँचवें इमाम हैं। उनका उपनाम “बाक़िर” (ज्ञान में गहराई से खोदने वाला) उनके असाधारण ज्ञान और शोध के लिए प्रसिद्ध है। उनके पिता इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ) और दादा इमाम हुसैन (अ) थे, जिनकी करबला में दी गई कुर्बानी ने इस्लाम को नई दिशा दी।
इमाम बाक़िर (अ) का जन्म 57 हिजरी में मदीना में हुआ। उनका समय राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल का था। करबला के बाद की पीढ़ी को उन्होंने धर्म और समाज की शिक्षा देकर इस्लाम के वास्तविक स्वरूप से अवगत कराया।
ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक
इमाम बाक़िर (अ) ने इस्लामी इतिहास में शिक्षा और ज्ञान के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उनके मदरसे को "इस्लामी ज्ञान का केंद्र" माना जाता है। उन्होंने न केवल धार्मिक शिक्षा दी, बल्कि विज्ञान, गणित, खगोल विज्ञान और चिकित्सा जैसे विषयों को भी बढ़ावा दिया।
उनका संदेश स्पष्ट था:
“ज्ञान ही वह ताकत है, जो इंसान को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है। अगर समाज को बदलना है, तो सबसे पहले शिक्षा का प्रचार करना होगा।”
सामाजिक और धार्मिक न्याय
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) ने न्याय और समानता पर जोर दिया। उनका मानना था कि समाज में किसी भी प्रकार का अन्याय या भेदभाव अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा:
“हर व्यक्ति को बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए, चाहे वह किसी भी वर्ग, धर्म या जाति का हो। न्याय ही समाज की नींव है।”
उनकी यह सोच, उस समय के अत्याचार और भेदभावपूर्ण शासन के खिलाफ एक आवाज़ थी। उन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के लिए आवाज उठाई और उन्हें उनका हक दिलाने की कोशिश की।
आध्यात्मिकता और दुनिया की मोहब्बत से बचाव
इमाम बाक़िर (अ) ने इंसान को आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख होने की शिक्षा दी। उन्होंने समझाया कि इस दुनिया के भौतिक सुख-वैभव के पीछे भागने से इंसान अपनी आत्मा की शांति और खुदा की रज़ा को खो देता है। उनका संदेश था:
“दुनिया में रहो, लेकिन दुनिया को अपने दिल में न बसाओ। खुदा की याद में सुकून है, न कि दौलत में।”
आर्थिक क्रांति और आत्मनिर्भरता
इमाम बाक़िर (अ) का योगदान केवल धार्मिक क्षेत्र तक सीमित नहीं था। उन्होंने उस समय की आर्थिक चुनौतियों का भी सामना किया। जब रूमी सिक्कों पर इस्लाम का अपमान करने की धमकी दी गई, तो उन्होंने अब्दुल मलिक को इस्लामी सिक्के जारी करने की सलाह दी।
उनके डिजाइन किए सिक्कों पर लिखा गया:
“ला इलाहा इल्लल्लाह” और “मुहम्मदुर रसूलुल्लाह।”
इस पहल ने इस्लामी अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाया और विदेशी दबावों से आजाद किया।
करबला की क्रांति का संदेश
इमाम बाक़िर (अ) ने करबला की क्रांति के संदेश को दुनिया में फैलाने का काम किया। उन्होंने बताया कि करबला केवल एक युद्ध नहीं था, बल्कि यह अन्याय के खिलाफ सत्य की जीत का प्रतीक था। उनका संदेश था:
“हर यज़ीद के खिलाफ एक हुसैन चाहिए।”
उन्होंने करबला की शिक्षाओं को शिक्षा और न्याय के माध्यम से समाज में लागू करने की पहल की।
आज के समाज के लिए इमाम बाक़िर (अ) का पैगाम
इमाम बाक़िर (अ) की शिक्षाएँ आज के दौर में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।
1. शिक्षा का प्रसार: शिक्षा ही हर समस्या का समाधान है। समाज में सुधार लाने के लिए हर व्यक्ति को ज्ञान की ओर अग्रसर होना चाहिए।
2. सामाजिक न्याय: समानता और न्याय का पालन करना हर समाज की जिम्मेदारी है।
3. सच्चाई का साथ: कठिनाइयों के बावजूद सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना जरूरी है।
विलादत: मुबारकबाद और प्रेरणा
इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) की विलादत पर, हम सभी को उनके जीवन और शिक्षाओं को याद करना चाहिए। यह रात न केवल खुशी मनाने का अवसर है, बल्कि खुदा से दुआ करने का समय है कि वह हमें इमाम (अ) की सीरत पर चलने की तौफीक़ दे।
दुआ और संकल्प
अल्लाह से दुआ है कि हम इमाम बाक़िर (अ) के बताए मार्ग पर चलें, ज्ञान प्राप्त करें, समाज में न्याय और शांति स्थापित करें, और अपने जीवन को इस्लाम के आदर्शों के अनुसार बनाएं।
यह विलादत हमें यह सोचने का मौका देती है कि हम अपने जीवन में क्या बदलाव ला सकते हैं ताकि इमाम (अ) की शिक्षाओं का पालन कर सकें।
“हर मोमिन को इमाम बाक़िर (अ) की विलादत की मुबारकबाद!”
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