रजब की 13वीं तारीख़ और उसका रूहानी महत्व


रजब की 13वीं रात सफेद रातों में से पहली रात है, जिसका दीन-ए-इस्लाम में बड़ा रूहानी दर्जा है। इस रात में खास नमाज़ अदा करना बहुत अफज़ल माना गया है। इमाम जाफर सादिक़ (अ.स.) के फरमान के मुताबिक़, जो शख्स इन रातों की नमाज़ अदा करेगा, उसे रजब, शाबान और रमज़ान के पूरे महीनों का सवाब मिलेगा और उसके तमाम गुनाह माफ कर दिए जाएंगे, सिवाए शिर्क के।

नमाज़ का तरीक़ा

रजब की 13वीं रात को दो रकअत नमाज़ पढ़ी जाती है। हर रकअत में सुरह फातिहा (सूरा नंबर 1), यासीन (सूरा नंबर 36), अल-मुल्क (सूरा नंबर 67), और अल-तौहीद (सूरा नंबर 112) की तिलावत की जाती है।

14वीं रात में चार रकअत नमाज़ (हर दो रकअत पर सलाम) पढ़ी जाती है।

15वीं रात में छह रकअत नमाज़ (हर दो रकअत पर सलाम) पढ़ना अफज़ल है।


13 रजब और रोज़े की फज़ीलत

13 रजब को रोज़ा रखना बहुत सवाब का काम है। इस दिन रोज़ा रखने वाले को बेपनाह इनाम दिया जाता है। जो लोग मशहूर दुआ उम्मे दाऊद पढ़ना चाहते हैं, वे इस दिन रोज़ा रखकर शुरुआत कर सकते हैं।

इमाम अली (अ.स.) की विलादत

इस तारीख़ की सबसे अहम वज्ह-ए-शोहरत यह है कि इसी दिन अमीरुल मोमिनीन इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ.स.) की विलादत हुई। यह तारीख़ इस्लामी तारीख़ का वह सुनहरा दिन है जब इमाम अली (अ.स.) का जन्म खुद पवित्र काबा के अंदर हुआ। यह वाक़िया हाथी वाले साल के 30 साल बाद पेश आया, और यह ऐसा करिश्मा है जो पूरी तारीख़-ए-इंसानियत में सिर्फ़ इमाम अली (अ.स.) के हिस्से में आया।

रजब की इस मुकद्दस तारीख़ पर नमाज़, रोज़ा और इबादत के ज़रिये अल्लाह का करीब हासिल करना हर मोमिन की जिम्मेदारी है।

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