मस्जिद काला इमामबाड़ा, पीर बुखारा, चौक में शनिवार नमाज़-ए-मग़रिबैन के बाद मरहूम सैयद मोहम्मद सगीर ज़ैदी साहब के ईसाल-ए-सवाब के लिए मजलिस-ए-तरहीम का एहतमाम किया गया।
इस मौके पर माहौल रुहानी था, पेशख़्वानी का फरीज़ा जनाब अंजुम बनारसी साहब और उस्तादुश्शोअरा जनाब जावेद बरक़ी साहब ने अंजाम दिया। बरक़ी साहब का कलाम समा बाँध गया:
> खुद समझ लो भला बुरा क्या है
हुर है क्या और हरमला क्या है
इश्क-ए-शह में कहा ये क़ासिम ने
मौत का असल ज़ायका क्या है।
ख़िताबत का शरफ़ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अल-हाज मौलाना मुस्तफ़ा अली ख़ान अदीबुल हिंदी साहिब क़िबला को हासिल हुआ।
उन्होंने इमाम ज़ैनुल आब्दीन अ०स० के रिसाला ए हुक़ूक़ से बाप के हक़ को बयान करते हुए कहा: हमेशा ख़्याल रहे कि हम जो कुछ भी हैं अपने बाप की वजह से हैं! अगर बाप न होते तो हम भी न होते!"
उन्होने कहा:
"वालिद इंसान की ज़िंदगी का वो साया हैं जो औलाद को सिर्फ जन्म ही नहीं देते, बल्कि उन्हें तरबियत, तहज़ीब और इंसानियत का पैग़ाम भी देते हैं।
मौलाना मुस्तफा अली ख़ान ने हदीस की रौशनी में बाप के हक़ को बयान करते हुए कहा: बाप का हक़ है कि औलाद कोई ऐसा काम न करे जिस से बाप को बुरा कहा जाए!
आयतुल्लाहिल उज़मा मरअशी नजफी का ज़िक्र करते हुए मौलाना मुस्तफा अली ख़ान ने कहा: मरहूम कहते थे कि मैं आज जो भी हूँ अपने बाप की ख़िदमत और उनकी दुआ के सबब हूँ!
मौलाना ने यह भी कहा कि:
"वालिद की अजमत औलाद की कामयाबी से होती है। अगर औलाद दीन, समाज और इंसानियत की राह पर रहे तो यह वालिद की रूह के लिए सबसे बड़ा तोहफ़ा और इज़्ज़त है।"
मजलिस में मस्जिद काला इमाम बाड़ा के इमाम जमाअत मौलाना सैयद अली हाशिम आब्दी साहब के अलावा बड़ी तादाद में मोमनीन ने शिरकत की।
ख़ास बात यह रही कि मजलिस का एहतमाम मरहूम के फ़रज़ंद तुरज ज़ैदी और अख़्तर ज़ैदी की जानिब से किया गया।
तुरज ज़ैदी, जो कि राष्ट्रपति फख़रुद्दीन अली अहमद कमेटी के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं, लाख मसरूफ़ियत के बावजूद हर साल अपने वालिद साहब की बरसी की मजलिस का एहतमाम बड़े एहतिराम से करते हैं। यह उनकी वालिद से मोहब्बत और उनकी अजमत का ज़िंदा सबूत है।
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