ए ज़िंदगी! गुरूर का और कुरान व नामूस-ए-रसूल की तौहीन करने वाले का साथ देने का अंजाम देख लिया… अब तूने एक और मौका तौबा का दिया, शैतानी खिसलत से दूर रहने का ,एक सबक दुनिया के नेताओं के लिए


निदा टीवी डैस्क 

सियासत का मैदान कभी शोहरत देता है तो कभी रुसवाई। ताक़त और गुरूर का नशा इंसान को उस मोड़ तक ले जाता है, जहाँ सच और झूठ की सरहद धुंधली हो जाती है। यही हाल हुआ रामपुर के सियासी सितारे आज़म खान के साथ।

बेपनाह खूबियों और लाजवाब काबिलियत के मालिक रहे आज़म खान ने गरीबों की आवाज़ उठाई, मजदूरों और बुनकरों का सहारा बने, तालीम की मशाल जलाई और अल्पसंख्यकों का मज़बूत चेहरा बनकर उभरे। लेकिन जब कुरान और नामूस-ए-रसूल के दुश्मन, औक़ाफ़ की जमीनें हड़पने वाले वसीम रिज़वी जैसे गुनहगारों का साथ देने से शैतानी खिसलत उनकी रगों में समाने लगी। यही वह मोड़ था जहाँ अल्लाह की रहमत से दूर होकर वह मुसीबतों में उलझ गए।

खूबियाँ भी थीं, लेकिन शैतान का धोखा भारी पड़ा

आज़म खान की शख्सियत बहुआयामी रही। वकालत की पढ़ाई के बाद सियासत में आकर मजदूरों, बुनकरों और मजलूमों के लिए खड़े होना उनकी पहचान बनी। दस बार विधायक, सांसद, मंत्री और यूनिवर्सिटी के बानी बनना—ये सब उनकी मेहनत और काबिलियत का सबूत है।
मगर जब इंसान शैतान के फरेब में आ जाए, तो उसकी सारी नेकी, सारी कामयाबी, सब धुंधला जाती है। यही उनके साथ हुआ।

जब अपनों ने किनारा किया

जिंदगी के उस दौर में, जब मुकद्दमों की भरमार हुई, जेल की सलाखें सामने आईं और सियासत से दूरी बनी, तो सबसे दर्दनाक नज़ारा यह था कि उनके अपने ही अपनों से किनारा करने लगे।
जो लोग उनके साथ कुर्सी की रोशनी में खड़े थे, वही अंधेरे के वक्त पीछे हट गए। यही गुरूर और गलत फैसलों का अंजाम था।

अब तौबा जरूरी है

23 सितंबर 2025 को सीतापुर जेल से रिहाई का जो दरवाज़ा खुला है, वह महज़ कानूनी आज़ादी नहीं, बल्कि अल्लाह की तरफ़ से एक नया मौका है। मौका तौबा का, मौका शैतान से किनारा करने का, मौका हक के साथ खड़े होने का।
कुरान कहता है—अल्लाह हर गुनाह को माफ़ कर देता है, बशर्ते इंसान सच्चे दिल से लौट आए। आज़म खान के लिए यही वक्त है कि वे अपने अतीत की गलतियों से सबक लें और आने वाले वक्त में कौम और इंसानियत की खिदमत को अपना शियार बनाएं।

सियासतदानों के लिए सबक

आज़म खान की कहानी सिर्फ एक इंसान की दास्तान नहीं है, बल्कि उन सब नेताओं के लिए सबक है जो गुरूर, ताक़त और शैतानी ख्वाहिशात के पीछे दौड़ते हैं।
सत्ता आती है और जाती है, शोहरत कायम नहीं रहती, लेकिन अल्लाह और उसके रसूल की तौहीन करने वालों का अंजाम हमेशा रुसवाई ही होता है।
आज ज़रूरत इस बात की है कि दुनिया के नेता समझें—हक के साथ रहना जरूरी है, वरना न सत्ता काम आती है, न शोहरत, न दौलत।


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