अंजुमन-ए-शब्बारिया के साहिब-ए-ब़याज़ जनाब अकबर बेग मुराद अली साहब का इंतिक़ाल, करबला तालकटोरा में हज़रत इमाम हुसैन और हज़रत अब्बास के रोज़ों के पास सुपुर्द-ए-ख़ाक — अज़ादार उनकी कब्र से ताजिया और अलम लेकर निकलते रहेंगे और उनकी यादें हमेशा महफ़िलों को रोशन करती रहेंगी।
देखिए हसनैन मुस्तफा की रिपोर्ट:
إِنَّا لِلّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعونَ
आज अज़ादारी की मजलिसे और अज़ादार गहरे ग़म और रिक्कत में डूब गए। Anjuman-e-Shabbariya, शीश महल, लखनऊ के साहिब-ए-ब़याज़, जनाब अकबर बेग मुराद अली साहब का इंतिक़ाल लारी हॉस्पिटल में हुआ।
मरहूम अकबर बेग साहब का जिस्म आम था, मगर उनकी आवाज़ और उनका अंदाज़ अद्भुत और रूहानी था। जब वह ग़म-ए-इमाम मज़लूम का ज़िक्र करते, तो हर अज़ादार की आंखें नम हो जातीं और दिलों में बेचैनी और रिक्कत पैदा होती।
उनके मशहूर नौहे हमेशा याद रखे जाएंगे:
💔 “18 बरस के अली अकबर का जनाज़ा” — जिसने पूरी दुनिया के अज़ादारों को रुलाया।
https://youtu.be/U2IP7-3NxUM?si=g49fAfyzXh3uROwS
💔 “इलैया इलैया… सकीना सकीना…” — जिसने अज़ादारों के दिलों को सींचा।
https://youtu.be/sELu6y_SpHg?si=OWFHEpzk5VIgNQb0
💔 “सकीना हम नहीं होंगे” — जिसने सुनने वालों की आंखों में आंसू और दिलों में ग़म का दरिया बहाया।
https://youtu.be/HyjW1FaUyXQ?si=yUGVd-CvNZCuFBDK
जनाब अकबर बेग साहब बेहद नेक, मिलनसार और वफ़ादार इंसान थे। अंजुमन शब्बारिया के कोई वायदे छूटते नहीं थे, सभी को पूरा करते थे।
उनकी किस्मत देखिए — आज उन्हें अंजुमनों के मातम और अलम के साए में, करबला तालकटोरा में, हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और हज़रत अब्बास आलमदार के रोज़ों के पास सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जाएगा।
जहाँ अज़ादार उनकी कब्र से ताजिया और अलम लेकर निकलते रहेंगे और उनकी यादें हमेशा ताज़ा रहेंगी।
✍️ सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा भाई कहते है मै गवाही देता हूँ कि जनाब अकबर बेग साहब ने अज़ादारी को अपनी रूह और दिल से जिया। उनकी आवाज़ में वह रूहानी ताक़त थी, उनका अंदाज़ अनूठा था, और उनका दिल हुसैनियत के दर्द से भरा हुआ।
एक व्यक्तिगत याद बताते हुए कहते है मैंने 1982 में मोहर्रम में पहली बार यह “सकीना हम नहीं होंगे” नगराम के इमामबाड़े और जुलूसों में अरशद भाई के साथ नवहा पढ़ा था, इस नौहे की रिक्कत और दर्द था कि गैर-कौमों के चेहरे पर भी आंसू दिखाई दिए।
अली अकबर साहब जब भी यह नव्हा पढ़ते, मैं पूरा सुनता, अश्कों से शहीदाने करबला को नज़राना पेश करता और दुआ करता।
आज सुबह अज़ान के बाद से जो दर्द महसूस हो रहा था, वह व्हाट्सएप पर इस ग़म की खबर देखकर और बढ़ गया — यह वही दर्द और तकलीफ़ थी, जो उनकी आवाज़ और हुसैनी जज़्बे से जुड़ी हुई थी।
उनकी यादें, उनका जज़्बा और उनकी आवाज़ हमेशा अज़ादारी को रोशन करती रहेंगी।
🕯️ दुआ है कि अल्लाह तआला मरहूम की मग़फ़िरत फ़रमाए, उनके दर्जात बुलंद करे और अहल-ए-ख़ाना को सब्र-ए-जमील अता करे।
उनकी छोड़ी हुई आवाज़, उनके नव्हे और उनकी यादें हमेशा अज़ादारी में जीवित रहेंगी।
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