एक मददगार दिल, एक प्यारी मुस्कान — अब सिर्फ यादों में रह जाएंगे रज़ा ज़ैदी ,दोपहर में जोहरैन के बाद गुलाम अस्करी हाल से उठेगा जनाज़ा, कमरिया बाग में होगी सुपुर्द-ए-ख़ाक


إِنَّا لِلّهِ وَإِنَّـا إِلَيْهِ رَاجِعونَ
“हम सब अल्लाह के लिए हैं और उसी की ओर लौटकर जाने वाले हैं।”

निदा टीवी डेस्क

बाराबंकी, 10 अगस्त — बाराबंकी की फिज़ाओं में आज ग़म का
 सन्नाटा है। सैयदवाड़ा भटिया के रहने वाले, सादगी, शाइस्तगी और इंसानियत की मिसाल जनाब मुहम्मद रज़ा ज़ैदी का इंतकाल आज तड़के 12:35 बजे लखनऊ के पीजीआई में हो गया।

काबिलियत और सफ़र-ए-ज़िंदगी
उच्च शिक्षा में एमबीए करने के बाद रज़ा ज़ैदी साहब ने बैंक में नौकरी कर अपनी मेहनत और ईमानदारी से अलग पहचान बनाई। उनकी काबिलियत और हुनर को देखते हुए पूर्व सांसद कमला प्रसाद रावत ने उन्हें अपना ओएसडी नियुक्त किया था। यह ज़िम्मेदारी उन्होंने पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ निभाई, जहां उनका हर कदम लोगों की मदद और उनकी समस्याओं के समाधान के लिए समर्पित रहा।

मददगार और मिलनसार स्वभाव
रज़ा ज़ैदी साहब का दरवाज़ा हर ज़रूरतमंद के लिए हमेशा खुला रहता था। लोगों की मदद करना, अपने खुले दिल से हर किसी से मिलना और रिश्तों को निभाना उनकी पहचान थी। उनके निधन की खबर ने पूरे शहर को गहरे सदमे में डाल दिया।

परिवार और सामाजिक योगदान
मरहूम के वालिद का नाम सैयद कैंसर हुसैन था। उनकी ज़ौजा मिस शमीम, शहर के मशहूर आनंद भवन स्कूल में सीनियर  टीचर हैं, जो अपनी काबिलियत, मोहब्बत और तालीमी खिदमत से स्टूडेंट्स के दिलों में एक खास मकाम रखती हैं।

भाई शम्सी की आंखों से बहते आंसु हर शख्स को गमगीन किए है।

जाकिर-ए-अहलेबैत, हाजी हबीब हैदर जैदी साहब ने बताया कि नमाज़-ए-जनाज़ा आज ज़ोहरैन के बाद देवा रोड स्थित गुलाम अस्करी हाल में अदा की जाएगी, जिसके बाद मरहूम को कमरिया बाग कब्रिस्तान में सुपुर्द-ए-ख़ाक किया जाएगा।

रज़ा ज़ैदी साहब के जाने से बाराबंकी ने न सिर्फ एक काबिल बेटा, बल्कि एक नेकदिल और मोहब्बत बांटने वाला इंसान खो दिया। उनकी बातें, उनका हंसमुख चेहरा और उनकी सादगी अब सिर्फ यादों में रह जाएंगी।

परवरदिगार ,मरहूम को जन्नतुल फिरदौस में बुलंद मकाम अता फरमाए, उनके हक़ में अपने रहमत के दरवाज़े खोल दे, और लवाहिकीन को सब्र-ए-जमील अता करे।

“कुछ रौशनी के चराग़ ऐसे होते हैं,
जो बुझने के बाद भी देर तक रोशनी देते हैं।
मुहम्मद रज़ा ज़ैदी साहब भी ऐसे ही एक चराग़ थे।”

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