"नहजुल बलाग़ा पढ़कर दिलों को ज़िंदगी मिलती है": मौलाना आगा मुनव्वर अली,अशरा-ए-विलायत के मौके पर ‘दरस-ए-नहजुल बलाग़ा’ का शानदार आग़ाज़, किताबख़ाना 'इल्म ओ दानिश' लखनऊ की पहल


निदा टीवी डेस्क/हसनैन मुस्तफा

हैदराबाद (तेलंगाना):बर्रे स़ग़ीर हिंदोस्तान की सरज़मीन हमेशा इल्म व हिकमत, तसव्वुफ़ और तक़वा के चिराग़ों से रोशन रही है। इन्हीं चिराग़ों में एक नूरानी नाम नहजुल बलाग़ा का है — जो हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) की ख़ुत्बाओं, ख़तूत और हिकमत भरी बातों का ऐसा मजमूआ है जो आज भी इंसानियत को ज़िंदगी का सीधा रास्ता दिखाता है।

इसी सिलसिले में किताबों और तालीम के मैदान में खिदमत अंजाम दे रही लखनऊ की मशहूर तंज़ीम किताबख़ाना इल्म ओ दानिश ने अशरा-ए-विलायत के बाबरकत मौक़े पर “दरस-ए-नहजुल बलाग़ा” नाम से एक रूहानी और इल्मी मुहिम की शुरुआत की है।

इस मुहिम का पहला प्रोग्राम हैदराबाद के याकूतपुरा इलाक़े में वाके तबीयान इंस्टीट्यूट में मुनाक़िद हुआ, जिसमें हैदराबाद और आसपास के इलाक़ों से कई इल्म-दोस्त, नौजवान, और दीनी तलबा शरीक हुए। प्रोग्राम की सदारत मौलाना आगा मुनव्वर अली साहब ने की, जो न सिर्फ़ एक आला दर्जे के खतीब और मुबल्लीग़ हैं, बल्कि अपने नेक अख़लाक़, फिक्र अंगेज़ अंदाज़-ए-बयान और मुतअल्लिक़ीन के बीच मक़बूलियत के लिए भी जाने जाते हैं।


मौलाना का तआरुफ़ और नहजुल बलाग़ा की अहमियत पर रोशनी

मौलाना आगा मुनव्वर अली साहब ने अपनी दिलनशीं और दिलकश तक़रीर में सबसे पहले नहजुल बलाग़ा के तआरुफ़ पर बात करते हुए सय्यद रज़ी (रह.) की इल्मी और अदबी खिदमात को ख़िराज-ए-अक़ीदत पेश किया। उन्होंने कहा कि:

"सय्यद रज़ी ने महज़ 21 साल की उम्र में हज़रत अली (अ.स.) की तक़रीरों, ख़तूत और हिकमतों को जमा कर वो किताब तसनीफ़ की, जो आज 1000 साल बाद भी इंसानी ज़ेहन और दिल को रौशन करती है।"

उन्होंने यह भी वाज़ेह किया कि नहजुल बलाग़ा सिर्फ शिया मसलक की किताब नहीं, बल्कि अहले सुन्नत के नामवर उलेमा ने भी इसकी अज़मत को तस्लीम किया है। उन्होंने इमाम फ़ख़्रुद्दीन राज़ी, शहरिस्तानी, ग़ज़ाली, और इब्ने अबिल हदीद मुतज़लि जैसे सुन्नी उलेमा के हवाले देकर यह साबित किया कि हज़रत अली (अ.स.) की फसाहत-ओ-बलाग़त की मिसाल नहीं मिलती।


मौलाना का पैग़ाम: तसव्वुराती अली नहीं, तहरीरी अली पेश करें

मौलाना आगा साहब ने बड़ी साफ़गोई से कहा कि:

"अब वक्त आ गया है कि ज़ाकिरीन, शायर, और खुतबा-ए-किराम कल्पनाओं और अफ़सानों के अली की जगह वो अली (अ.स.) पेश करें, जिनका कलाम खुद उनकी ज़बान से निकला और नहजुल बलाग़ा में महफ़ूज़ है।"

उन्होंने ख़ुत्बा 101 का हवाला देते हुए फ़रमाया:

"हमारा काम और हमारी पहचान बेहद कठिन है। उसे वही समझ सकता है, जिसका दिल अल्लाह की आज़माइश में कामयाब हो चुका हो... मुझसे पूछ लो जो पूछना चाहते हो, क्योंकि मैं आसमानों के रास्तों को ज़मीन के रास्तों से बेहतर जानता हूँ।"


प्रोग्राम का मक़सद और इल्म ओ दानिश की मुहिम

इस प्रोग्राम की मुनज़्ज़िम तंज़ीम किताबख़ाना इल्म ओ दानिश, लखनऊ के सेवादार मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी ने बताया कि:

"इस बार अशरा-ए-विलायत के मौक़े पर हमने ये तय किया है कि नहजुल बलाग़ा का तर्जुमा शुदा और ख़ूबसूरत संस्करण सिर्फ लखनऊ ही नहीं, बल्कि बाराबंकी, बलरामपुर, बिजनौर, फैज़ाबाद, और देश के दीगर हिस्सों तक पहुँचे।"
"हम चाहते हैं कि हर मस्जिद, इमामबाड़े, मदरसे और हर अली वाला घर इस किताब से रोशन हो।"


आम लोगों से अपील

इल्म ओ दानिश की जानिब से ये अपील की गई कि अवाम-ए-नास, ख़ासकर नौजवान, दीनी तलबा, और इल्म-दोस्त अफ़राद इस मुहिम से जुड़ें और नहजुल बलाग़ा की तालीमात को समझें। इससे न सिर्फ़ हमारा रूहानी राब्ता मज़बूत होगा, बल्कि हमारी सोच, सीरत और समाज भी बेहतर बनेगा।


"नहजुल बलाग़ा सिर्फ किताब नहीं, बल्कि एक रुहानी नक़्शा है — जो इंसान को उसके रब तक पहुंचाता है।"


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