लखनऊ। रमज़ान के मुकद्दस महीने में अल्लाह का मेहमान बनने वाले मुअतकिफ़ीन ने लखनऊ की जामा मस्जिद तहसीनगंज में रूहानी माहौल में एतिकाफ का समापन किया। आखिरी दिन मस्जिद में इबादत का ऐसा नूर बरसा कि हर आंख नम थी और हर लब पर दुआ थी।
🤲 सजदों में सिसकियां, दुआओं में ग़म और उम्मीद
एतिकाफ में शामिल मुअतकिफ़ीन ने पूरी रात अल्लाह की बारगाह में रो-रोकर तौबा और मग़फिरत की दुआएं कीं।
फिलिस्तीन, यमन, सीरिया और लेबनान के मज़लूमों के लिए रहमत और राहत की फरियाद की गई।
मुल्क में अमन-चैन, भाईचारे और बीमारों की शिफ़ा के लिए अल्लाह से गिड़गिड़ाकर दुआ मांगी गई।
मुअतकिफ़ीन ने अपने गुनाहों की माफी और रूह की पाकीज़गी के लिए सजदे में अश्कबार होकर अल्लाह से रहमत की गुजारिश की।
💫 हज और उमरे का मिला सवाब
हदीस-ए-पाक के मुताबिक, एतिकाफ करने वाले को हज और उमरे का सवाब मिलता है। मुअतकिफ़ीन ने इस एहसास के साथ अल्लाह का शुक्र अदा किया कि उसने उन्हें अपनी मेहमाननवाज़ी का मौका अता फरमाया।
🌟 उलेमाओं ने गुलपोशी और तुग़रे देकर किया सम्मानित
एतिकाफ के समापन पर मौलाना इब्राहीम सैन्य साहब, मौलाना वासिफ साहब, मौलाना मोहम्मद आरिफ रिज़वी साहब और मस्जिद के पेश इमामों ने एतिकाफ में शामिल मुअतकिफ़ीन की गुलपोशी और तुग़रे देकर एजाज़ बख्शा।
लबों पर शुक्र और आंखों में आंसू लिए मुअतकिफ़ीन ने इस इज़्ज़त और सवाब के लिए अल्लाह का शुक्र अदा किया।
💫 खिदमतगारों का खुलूस बना यादगार
एतिकाफ के दौरान शाहकार जैदी भाई और मोहम्मद भाई ने मुअतकिफ़ीन की खिदमत में कोई कसर नहीं छोड़ी।
बाकर इमाम साहब, वकार भाई, डॉ रज़ी साहब,निहाल भाई,यावर भाई, मजहर भाई, केपी भाई और नर्जिस क़दर साहब,फिरोज भाई, मौसम भाई की मोहब्बत और अपनाइयत ने माहौल को और भी रुहानी बना दिया।
🌙 एतिकाफ का सबक – तौबा, इबादत और इंसानियत की खिदमत
इस एतिकाफ ने मुअतकिफ़ीन को ये पैगाम दिया कि खुदा की इबादत सिर्फ सजदे तक नहीं, बल्कि इंसानियत की खिदमत में भी है।
एतिकाफ में शामिल लोगों ने इबादत, नमाज़ और कुरआन से जुड़ने का अहद किया।
उन्होंने गरीबों और मजलूमों की मदद को अपनी ज़िम्मेदारी समझा।
दुनिया की मोहब्बत से दूर रहकर, अल्लाह की राह में चलने का वादा किया।🤲 अल्लाह से दुआ – तौबा कुबूल फरमा
"या अल्लाह! तूने हमें एतिकाफ की सआदत बख्शी। हमारी तौबा कुबूल फरमा, गुनाहों को माफ कर दे, और दुनिया में अमन-चैन कायम कर। आमीन!"
यह एतिकाफ का सफर सिर्फ मस्जिद तक का नहीं था, बल्कि रूह तक का था – जहां अल्लाह ने हर अश्क में जवाब दिया। 🤲
सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
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