✒️ सैयद मोहम्मद आरिफ रिजवी
पेश इमाम , जामा मस्जिद, तहसीन गंज लखनऊ
रमज़ान बरकतों, रहमतों और मग़फ़िरत का महीना है। यह ऐसा मुबारक महीना है जिसमें अल्लाह अपने बंदों की तौबा क़ुबूल करता है और उनकी दुआओं को सुनता है। इस पाक महीने में एतिकाफ एक खास इबादत है, जिसमें बंदा दुनिया से कटकर अल्लाह की बंदगी में मशगूल हो जाता है। यह इबादत सिर्फ एक रस्म नहीं, बल्कि खुदा की रहमत और करम को अपनी तरफ मोड़ने का ज़रिया है।
आज के दौर में कई लोग औलाद की नेमत से महरूम हैं। इलाज, दवा और डॉक्टरी मशवरे के बावजूद भी जब मसले हल नहीं होते, तब अल्लाह की बारगाह में सच्चे दिल से दुआ ही आख़िरी सहारा बनती है। रमज़ान में एतिकाफ में बैठकर मांगी गई दुआएं कबूलियत का ज़रिया बन सकती हैं।
🌿 कुरआन और हदीस की रौशनी में एतिकाफ की अहमियत
कुरआन-ए-मजीद में एतिकाफ का ज़िक्र आया है:
"और हमने इब्राहीम और इस्माईल को आदेश दिया कि मेरे घर को तवाफ़ करने वालों, एतिकाफ़ करने वालों और रुकू-सज्दा करने वालों के लिए पाक रखो।"
📖 (सूरह अल-बक़रह: 125)
हदीस-ए-नबवी (स.) में भी एतिकाफ की फज़ीलत बयान की गई है:
"जो शख्स अल्लाह की रज़ा के लिए एतिकाफ में बैठता है, उसके और जहन्नम के बीच तीन खंदक का फासला हो जाता है, जिनमें से हर खंदक का फासला आसमान और ज़मीन जितना होता है।"
📚 (किताबुल इबादात)
🌟 अहलेबैत (अ) की नजर में एतिकाफ की फज़ीलत
हज़रत अली (अ) फरमाते हैं:
"एतिकाफ का मतलब है कि इंसान अल्लाह की बारगाह में अपनी पूरी तवज्जो के साथ हाज़िर हो जाए और अपनी मुराद को सिर्फ उससे मांगे।"
📚 (नहजुल बलागा)
इमाम जाफर सादिक (अ) फरमाते हैं:
"जो शख्स रमज़ान में तीन दिन का एतिकाफ करे, उसके तमाम गुनाह माफ कर दिए जाते हैं।"
📚 (अल-काफ़ी, जिल्द 4)
🤲 एतिकाफ में दुआ का असर और औलाद की तमन्ना
एतिकाफ का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इंसान का अल्लाह पर यकीन मजबूत होता है। वह दुनिया की मायूसी से निकलकर खुदा की रहमत में पनाह मांगता है। रमज़ान में एतिकाफ के दौरान मांगी गई दुआएं कबूल होती हैं, क्योंकि इस महीने में अल्लाह की रहमत जोश में होती है।
हदीस-ए-कुदसी में अल्लाह फरमाता है:
"मुझे मेरी इज्जत और जलाल की कसम! मैं एतिकाफ करने वाले की दुआ को ठुकराता नहीं हूं।"
📚 (सुनन अबू दाऊद)
औलाद की तमन्ना रखने वाले जोड़े अगर सच्चे दिल से एतिकाफ में बैठकर दुआ करें, तो यकीनन अल्लाह उन्हें मायूस नहीं करता। कई वाक़यात में औलाद की नेमत से महरूम लोग रमज़ान में एतिकाफ और दुआ की बरकत से औलाद की खुशी से नवाजे गए।
🌷 एतिकाफ के दौरान पढ़ी जाने वाली खास दुआ
औलाद की तमन्ना रखने वाले लोग एतिकाफ के दौरान सूरह मरयम और यह दुआ पढ़ें:
"रब्बी ला तज़रनी फ़रदं वा अंत ख़ैरुल वारिसीन" (हे मेरे रब! मुझे अकेला मत छोड़ और तू सबसे बेहतर वारिस है।)
📖 (सूरह अंबिया: 89)
🌙 एतिकाफ के फायदे और जामा मस्जिद में एतिकाफ का खास असर
जामा मस्जिद में एतिकाफ करने का अलग ही सवाब है। यहां के रूहानी माहौल में दुआओं का असर बढ़ जाता है। रमज़ान की मुकद्दस रातों में जामा मस्जिद में एतिकाफ करना, कुरआन की तिलावत करना और तड़पकर दुआ मांगना अल्लाह के करम को खींच लाता है।
फायदे:
✅ अल्लाह के करीब होने का मौका।
✅ गुनाहों की माफी और दुआओं की कबूलियत।
✅ औलाद की नेमत के लिए बरकत और रहमत।
✅ इमान और सब्र में इज़ाफा।
💫 खुदा पर यकीन ही सबसे बड़ी इबादत
औलाद के लिए सिर्फ इलाज और दौड़-धूप ही नहीं, बल्कि अल्लाह पर पूरा यकीन रखना भी जरूरी है। एतिकाफ में बैठकर मांगी गई दुआ ही औलाद जैसी नेमत का सबब बन सकती है। रमज़ान में खुद को अल्लाह के हवाले कर दीजिए, क्योंकि खुदा की रहमत दवा से बड़ी और उसकी कुदरत हर चीज़ पर हावी है।
आइए, इस रमज़ान में जामा मस्जिद में एतिकाफ करें, अपने गुनाहों की तौबा करें और अल्लाह से औलाद की नेमत मांगकर अपने घर को खुशियों से भर दें।
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