✒️ हज़रत अली (अ) की वसीयत: तक़वा, इंसाफ़ और इंसानियत का अज़ीम पैग़ामनहजुल बलाग़ा के हवाले से



🌿 इबादतगुज़ार, इंसाफ़पसंद और ज़िंदादिल रहनुमा की आख़िरी नसीहत

हज़रत अली इब्ने अबी तालिब (अ) वह शख्सियत हैं, जिनकी ज़िंदगी इंसाफ़, परहेज़गारी, इल्म और हिकमत का मोजज़ा थी। उनकी ज़ात पूरी इंसानियत के लिए एक मिसाल है। जब ज़ालिम इब्ने मुल्जिम (ल.) ने ज़हर बुझी तलवार से हमला किया और आपने शहादत का जाम पिया, उस वक़्त आपने जो वसीयत की, वह तमाम इंसानों के लिए एक रहनुमाई है।

यह वसीयत न केवल उनके बेटों, इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) के लिए थी, बल्कि हर दौर के इंसान के लिए एक हिदायत है, जो तक़वा, इंसाफ़, रहमदिली और अल्लाह की इबादत का पैग़ाम देती है।


🌟 1. अल्लाह का तक़वा और उसकी इबादत

हज़रत अली (अ) ने सबसे पहले तक़वा और परहेज़गारी की ताकीद की। उन्होंने फरमाया:

"तुम्हें तक़वा अपनाने, अल्लाह से डरने और उसके दीन पर क़ायम रहने की ताकीद करता हूं।"
उन्होंने यह नसीहत की कि दुनिया की चमक-दमक में मत खो जाना, क्योंकि यह सिर्फ धोका है। अल्लाह से हमेशा डरते रहना, क्योंकि वही सच्चा इन्साफ़ करने वाला है।


🌿 2. कुरआन से वाबस्तगी की हिदायत

मौला अली (अ) ने कुरआन को अपनी जिंदगी का मरकज़ बनाने का हुक्म दिया। उन्होंने कहा:

"अल्लाह की किताब (कुरआन) को मजबूती से थामे रहना, ताकि तुम गुमराह न हो जाओ।"
कुरआन वह हिदायत है, जो इंसान को अंधेरे से रोशनी की तरफ़ ले जाती है। अगर कोई इस किताब को छोड़ देता है, तो वह राहे-हक़ से भटक जाता है।


🌟 3. इंसाफ़ और मज़लूम का साथ

मौला अली (अ) ने हमेशा ज़ालिम के ख़िलाफ़ और मज़लूम के हक़ में खड़े होने की ताकीद की। उन्होंने फरमाया:

"हमेशा मज़लूम के मददगार रहना और ज़ालिम के ख़िलाफ़ खड़े रहना।"
यह हिदायत इंसानियत के लिए एक बड़ा पैग़ाम है। मौला अली (अ) का इंसाफ़ ही था, जिसके चलते हर मज़लूम उन्हें अपना रहबर मानता था।


🌿 4. मुसलमानों में इत्तेहाद की ताकीद

हज़रत अली (अ) ने मुसलमानों को तफरक़ा से बचने और आपसी एकता को बरक़रार रखने का हुक्म दिया।

"तुम्हारे मामले में तफरक़ा मत होना, क्योंकि तफरक़ा बर्बादी का सबब है।"
आज की दुनिया में यह वसीयत और भी अहम हो जाती है, जहां मुस्लिम उम्मत को तफरक़े और बिखराव का सामना करना पड़ रहा है।


🌟 5. पड़ोसियों का हक़ अदा करने की ताकीद

मौला अली (अ) ने पड़ोसियों के साथ अच्छा सुलूक करने का हुक्म दिया।

"पड़ोसियों के हक़ का ख़्याल रखना, क्योंकि यह रसूल (स) की वसीयत थी।"
यह वसीयत इंसान को समाज में भलाई, मोहब्बत और भाईचारे का सबक देती है।


🌿 6. नमाज़ को हल्के में न लेने की नसीहत

हज़रत अली (अ) ने नमाज़ को अल्लाह की अमानत बताया और कहा कि इसे कभी हल्के में न लेना।

"नमाज़ को अल्लाह का अमानत समझो। इसे कभी हल्के में न लेना, क्योंकि यह दीं का सुतून (स्तंभ) है।"
नमाज़ इंसान को गुनाहों से बचाती है और अल्लाह की रहमत का जरिया बनती है।


🌟 7. यतीमों और बेसहारों का ख़्याल

मौला अली (अ) ने समाज के कमजोर तबके की मदद का हुक्म दिया। उन्होंने फरमाया:

"यतीमों का ख़्याल रखना, उनके हक़ को कभी न भूलना।"
यह हिदायत हमें बताती है कि समाज में गरीबों और यतीमों की मदद करना ही सच्चा इंसाफ़ और दीनदारी है।


🌿 8. दुनियादारी से बचने की नसीहत

हज़रत अली (अ) ने दुनिया की मोहब्बत में पड़कर दीन से गाफिल न होने की ताकीद की।

"दुनिया की मोहब्बत तुम्हें गुमराह न कर दे, क्योंकि यह धोके का घर है।"
उन्होंने समझाया कि इंसान को दुनिया की बजाय आखिरत के लिए काम करना चाहिए, क्योंकि यही हमेशा रहने वाला ठिकाना है।


🌟 9. अल्लाह की राह में सच्चाई पर क़ायम रहो

मौला (अ) ने वसीयत में सच्चाई और अमानतदारी को अपनाने की ताकीद की।

"हमेशा हक़ की पैरवी करो, सच्चाई का दामन पकड़े रहो और किसी हालत में धोखा न दो।"
इस हिदायत में मौला अली (अ) ने इंसाफ़ और अमानतदारी को हर हाल में बरक़रार रखने की बात कही।


🌿 🔚 आख़िरी अल्फ़ाज़ में अल्लाह के सुपुर्द किया

अपनी वसीयत के आख़िर में मौला अली (अ) ने अल्लाह को गवाह बनाकर कहा:

"अल्लाह! मैं अपनी औलाद को तेरे सुपुर्द करता हूं। तू उन्हें दीन पर क़ायम रखना।"
यह अल्फ़ाज़ बताते हैं कि मौला अली (अ) ने अपने आख़िरी लम्हों में भी अपने बेटों और पूरी उम्मत के लिए दुआ की।


🌟 ✅ नसीहतें जो हमेशा के लिए रहनुमा हैं:

  • तक़वा और परहेज़गारी
  • कुरआन से जुड़ाव
  • मज़लूम का साथ देना
  • तफरक़े से बचना
  • नमाज़ की पाबंदी
  • यतीमों और गरीबों का ख़्याल
  • सच्चाई और अमानतदारी अपनाना
  • दुनिया की मोहब्बत से बचाव

🌿 🔖 

हज़रत अली (अ) की वसीयत एक मुकम्मल इंसानी जीवन का नुस्खा है। इसमें तक़वा, इंसाफ़, इंसानियत, इबादत, नमाज़, कुरआन, मज़लूमों की मदद और दुनिया की मोहब्बत से बचने की हिदायत दी गई है। अगर हम मौला अली (अ) की वसीयत पर अमल करें, तो हमारी जिंदगी भी फला पा सकती है और आखिरत में भी कामयाब हो सकते हैं।

"मौलाए कायनात की वसीयत इंसानियत के लिए क़यामत तक रहनुमा रहेगी।"

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