निदा डेस्क
वक़ार ये नहीं कि आप बहस करें या ये साबित करें कि आप हक़ पर हैं,
बल्कि ये है कि आप अपनी ख़ामोशी को उस वक़्त अपना हथियार बनाएं,
जब गुफ़्तगू बेवक़ूफ़ी के दायरे में हो।
वक़ार ये है कि आपके पास कहने के लिए अल्फ़ाज़ हों,
लेकिन आप उन्हें उन लोगों पर ज़ाया न करें,
जो उनकी क़द्र नहीं समझते।
वक़ार ये है कि आप मज़बूती से खड़े हों,
और ख़ामोशी के साथ उन लोगों को देखें,
जो बेमानी बातों से अपनी बरतरी साबित करने की कोशिश करते हैं।
वक़ार ये है कि आप ये समझें कि इज़्ज़त अल्फ़ाज़ के ज़रिए फ़तह हासिल करने में नहीं,
बल्कि ख़ामोशी की अज़मत को बरक़रार रखने में है।
जैसा कि हिकमत कहती है:
"नादानों की मौजूदगी में ख़ामोशी इज़्ज़त-ए-नफ़्स है,
कमज़ोरी नहीं।"
अगर आप वो देख सकते हैं जो दूसरे नहीं देख सकते,
तो अपने आपको वज़ाहत में थकाने की ज़रूरत नहीं,
क्योंकि कुछ दिमाग़ वही देखते हैं जो वो देखना चाहते हैं।
लिहाज़ा, अपने वक़ार का इंतिख़ाब करें,
और अपनी क़दर की हिफ़ाज़त के लिए गुफ़्तगू के दरवाज़े बंद कर दें।
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