रायबरेली के मुस्तफाबाद की मशहूर शख्सियत सैयद इश्तियाक हुसैन इच्छन मियां के घर में पैदा हुए मोहिब्बाने अहलेबैत, खिदमतगुज़ार डॉक्टर और जज्बाती शायर डॉ. सैयद मजहर हुसैन नकवी का आज कानपुर के रिजेंसी हॉस्पिटल में इंतकाल हो गया। उनके निधन की खबर से अदबी, मजलिसी और इंसानियत पसंद हलकों में ग़म की लहर दौड़ गई।
उनकी तदफीन आज रात 8 बजे लखनऊ के मिस्री की बगिया में दरगाह हजरत अब्बास में की जाएगी। मुस्तफाबाद से कानपुर की जूही सफेद कॉलोनी तक उनका दायरा फैला हुआ था, जहां उन्होंने अपनी शायरी, खिदमत और इंसानियत की खुशबू बिखेरी।
शायरी में अहलेबैत की मोहब्बत का उजाला
डॉ. मजहर हुसैन नकवी की शायरी सिर्फ अल्फाज़ नहीं, बल्कि एक अहसास थी। उनकी शायरी में अहलेबैत से बेपनाह मोहब्बत और उनका अकीदा झलकता था। उनका एक मशहूर शेर आज भी अकीदतमंदों की जुबां पर है:
"जलवाए शेरे खुदा अब्बास के तेवर में है,
क्या जश्न का सामान नुसेरी के खुदा के घर में है।
घर में हैदर के नजर आया बनी हाशिम का चांद,
ईद का दिन आज अहलेबैत पैगंबर में है।"
उनके कलामों में जोश, जज़्बा और हुसैनी शान नज़र आती थी। मजलिसों और महफिलों में उनकी मौजूदगी और उनका कलाम पेश करने का अंदाज हमेशा याद रखा जाएगा।
गरीबों के सच्चे हमदर्द और इंसानियत के खिदमतगार
डॉ. मजहर नकवी न सिर्फ एक बेहतरीन शायर थे, बल्कि गरीबों के सच्चे हमदर्द भी थे। पेशे से डॉक्टर होने के बावजूद उन्होंने कभी दौलत को अपना मकसद नहीं बनाया। उनके लिए सबसे बड़ी दौलत गरीब और बेसहारा मरीजों की मुफ्त इलाज करके मदद करना था। उनकी यह दरियादिली और इंसानियत उन्हें एक अलग मुकाम पर ले जाती थी।
उनके दरवाजे हमेशा हर जरूरतमंद के लिए खुले रहते थे। कोई भी मजबूर इंसान उनकी चौखट से मायूस नहीं लौटा। यही वजह थी कि लोग उन्हें सिर्फ डॉक्टर नहीं, बल्कि एक फरिश्ते की तरह मानते थे।
परिवार में छोड़ गए ग़मगीन चाहने वाले
डॉ. मजहर नकवी अपने पीछे एक भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं, जिनमें उनकी बेवा और तीन होनहार बेटे शामिल हैं:
इंजीनियर मोहम्मद अतहर हैदर
डॉ. सरफराज हैदर
इनकम टैक्स ऑफिसर कविश हैदर
इसके अलावा, उनकी बेटी की शादी लखनऊ में सोशल रिफॉर्मर सैयद अब्बास जैदी साहब के साथ हुई है।
खानवादाए इफ्तिखार हुसैन कित्तूर, बाराबंकी की बड़ी बेटी उनकी ज़ौजा हैं।
उनका परिवार भी उनकी ही तरह खिदमत और मोहब्बत की रवायत को आगे बढ़ा रहा है।
मुस्तफाबाद और कानपुर की अदबी और दीनी विरासत को बड़ा नुकसान
डॉ. मजहर हुसैन नकवी की मौजूदगी मुस्तफाबाद और कानपुर की मजलिसी और अदबी दुनिया के लिए एक अमानत थी। उनकी मौत से जो खालीपन आया है, उसे भर पाना मुश्किल है। उनके लिखे हुए अशआर, उनकी खिदमत और उनकी इंसानियत के किस्से हमेशा लोगों के जहन में ताजा रहेंगे।
अल्लाह मरहूम को जन्नतुल फ़िरदौस में आला मक़ाम अता फरमाए और उनके घरवालों को सब्र जमील दे। आमीन।
आप सभी से सुरह फातिहा और नमाज़े वहशत की इल्तिजा है।
"लफ्ज़ों में अकीदत, अमल में वफा थी,
हर मजलिस की शान,
हर दिल की सदा थी।
चला गया जो छोड़कर यादों की रौशनी,
वो शायर, वो खिदमतगार, खुद एक दास्तां थी।"
"जो कलम से लिखे, वो सदियों तलक रहेगा,
जो दिलों में बसे, वो कभी न फना रहेगा।
नकवी तेरा नाम रहेगा यूं ही रोशन,
तेरी शायरी का हर लफ्ज़ अज़ा रहेगा।"
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