निदा टीवी डेस्क
बाराबंकी। इदारा इल्म व दानिश के तत्वावधान में "नूर-ए-असर क्रैश कोर्स" के चौथे चरण का भव्य आयोजन सैयदवाड़ा, आलमपुर (बाराबंकी) में संपन्न हुआ। इससे पहले यह कार्यक्रम दतिया (मध्य प्रदेश), हसनपुरा सीवान (बिहार) और लखनऊ (उत्तर प्रदेश) में बड़ी सफलता के साथ संपन्न हो चुका है। इस कोर्स का मूल उद्देश्य युवाओं को इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की पहचान, उनकी तालीमात और ज़हूर की तैयारी के प्रति जागरूक करना है।
कार्यक्रम की शुरुआत मौलाना अयाज़ हैदर आलमपुरी की तिलावत-ए-क़ुरआन से हुई। इसके बाद मुख्य वक्ता मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी ने अपने बयान में कहा कि इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की सही पहचान और उनसे जुड़ाव के बिना इंसान का ईमान अधूरा है। उन्होंने हदीस-ए-नबवी (स) का हवाला देते हुए कहा:
"जो अपने समय के इमाम की पहचान किए बिना मर गया, उसकी मौत जहालत की मौत होगी।"
उन्होंने बताया कि आम तौर पर हमारे युवा इमाम-ए-हाज़िर (अ.फ.) से परिचित नहीं होते, जबकि उनकी पहचान हर मोमिन की सबसे पहली ज़िम्मेदारी है।
इमाम हमारे बीच मौजूद हैं, मगर हम ग़ाफ़िल हैं
मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी ने कहा कि इमाम (अ.फ.) हमारे बीच मौजूद हैं, लेकिन हम ही उनसे दूर हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब कोई मोमिन दुआ करता है तो इमाम (अ.फ.) उसकी दुआ पर "आमीन" कहते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारी दुआएं और कर्म इस योग्य हैं कि इमाम (अ.फ.) हमें अपनी तवज्जो में रखें?
उन्होंने इस्लामी इतिहास के संदर्भ में बताया कि इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की ग़ैबत के बावजूद उनका असर हर दौर में मौजूद रहा है।
सुन्नी विद्वानों ने भी इमाम-ए-आखिरुज्ज़मान (अ.फ.) का उल्लेख किया
मौलाना ने ऐतिहासिक तथ्यों का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ़ शिया ही नहीं, बल्कि सुन्नी विद्वानों ने भी इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) का उल्लेख अपनी किताबों में किया है। उन्होंने कहा कि इब्न सबाग़ मालिकी, इब्न हजर हैतमी और ग़ंजी शाफ़ेई जैसे प्रतिष्ठित सुन्नी विद्वानों ने अपनी किताबों में इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) का वर्णन किया है।
इसके अलावा, मिस्र के विद्वान मुहम्मद ज़की इब्राहीम राइद ने अपने लेख में यह लिखा कि:
"जो कुछ शिया मानते हैं, वह अहल-ए-सुन्नत के बुनियादी सिद्धांतों से मेल खाता है।"
यह प्रमाण इस बात का संकेत देते हैं कि इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) पर आस्था सिर्फ़ किसी एक फिरके तक सीमित नहीं, बल्कि यह संपूर्ण इस्लामी विरासत का हिस्सा है।
युवाओं को जागरूक करने की ज़रूरत
मौलाना ने अपने संबोधन में कहा कि आज के दौर को आख़िरी ज़माना कहा जाता है, जहां समाज नैतिक और धार्मिक संकट से गुज़र रहा है। ऐसे में युवाओं को अपने इमाम (अ.फ.) की पहचान, उनकी तालीम और उनके संदेश को अपनाने की आवश्यकता है।
उन्होंने इमाम हसन अस्करी (अ.) के दौर की मिसाल देते हुए बताया कि इमाम (अ.) ने अपने अनुयायियों को इमाम-ए-ग़ायब (अ.फ.) के दौर के लिए तैयार किया था। इसी तरह, आज के दौर में हमें अपने इमाम (अ.फ.) के लिए तैयार रहना चाहिए।
शिक्षा और इम्तिहान की तैयारी
इस क्रैश कोर्स में लगभग 300 युवाओं ने भाग लिया, जिनमें आलमपुर, जर्गावां, संगोरा और क़ादिरपुर गढ़ी के युवक शामिल थे।
कार्यक्रम के समापन पर मौलाना ज़ाइर आबिद ने घोषणा की कि 21 फरवरी को इस कोर्स का इम्तिहान लिया जाएगा और सफल प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र व पुरस्कार दिए जाएंगे।
इस मौके पर कई विद्वानों ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, जिनमें शामिल थे:
- मौलाना सज्जाद हुसैन (इमाम-ए-जुमा, महमूदाबाद, सीतापुर)
- मौलाना सैयद मोहम्मद आज़िम बाक़री (फैज़ाबाद)
- मौलाना सैयद ज़फर अब्बास (होज़ा इल्मिया, क़ुम, ईरान)
इन सभी विद्वानों ने युवाओं को इमाम (अ.फ.) की तालीमात को अपनाने और उनके ज़हूर की तैयारी के लिए नवजवानों को तैयार करने का पैगाम दिया।
नौजवानों के लिए विशेष संदेश
कार्यक्रम के अंत में मौलाना सैयद हैदर अब्बास रिज़वी ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि:
- हर मोमिन की ज़िम्मेदारी है कि वह इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की पहचान करे और उनके मिशन का हिस्सा बने।
- समाज में नैतिक पतन को रोकने और इस्लामी मूल्यों को फैलाने का संकल्प लें।
- अपनी तालीम और किरदार को बेहतर बनाएँ ताकि जब इमाम (अ.फ.) का ज़हूर हो तो हम उनकी सेना में शामिल होने के योग्य हों।
- अपने समय के विद्वानों से जुड़ें और उनकी तालीम को समझें, ताकि गुमराही से बचा जा सके।
इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम ने युवाओं के भीतर इमाम-ए-ज़माना (अ.फ.) की पहचान और उनके प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को निभाने की भावना को जागृत किया। कार्यक्रम के दौरान युवाओं के बीच जज़्बा, जुनून और इमाम (अ.फ.) से जुड़ने की नई लहर देखने को मिली।
(रिपोर्ट: रिज़वान मुस्तफा)
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