निदा टीवी डेस्क
लखनऊ, 9 जनवरी:1942 में आयतुल्लाह सैयदुलुलमा सैयद अली नक़वी नक़्क़न साहब द्वारा स्थापित अंजुमन "यादगारे हुसैनी" के सद्र सैयद मोहम्मद हैदर उर्फ हसन यूसुफ का आज लखनऊ में इंतकाल हो गया। वह 81 साल के थे। उनके इंतकाल की खबर से लखनऊ के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक हलकों में गम का माहौल है। हसन यूसुफ साहब न केवल एक प्रभावशाली प्रशासक थे, बल्कि एक ऐसे रहनुमा थे, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अहलेबैत की खिदमत और इंसानियत के फ़रोख़्त में गुजार दी।
"यादगारे हुसैनी" की दोबारा तामीर और नेतृत्व
आयतुल्लाह सैयदुलुलमा सैयद अली नक़वी नक़्क़न साहब के इंतकाल के बाद, "यादगारे हुसैनी" कई सालों तक निष्क्रिय रही। लेकिन हसन यूसुफ साहब ने इसे पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया और अपनी मेहनत और नेतृत्व क्षमता से इसे एक बार फिर समाज में सक्रिय और प्रभावशाली संस्था बना दिया। उनकी कोशिशों ने "यादगारे हुसैनी" को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।
उनकी सदारत में, अंजुमन ने कई ऐतिहासिक प्रोग्राम और सेमिनार आयोजित किए। सबसे बड़ा आयोजन 2014 में हुआ, जब तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन लखनऊ में किया गया। इस सेमिनार में दुनिया भर के मशहूर विद्वानों ने हिस्सा लिया और यह आयोजन "यादगारे हुसैनी" के पुनर्जीवन की मिसाल बन गया।
एक अधूरा सपना: "सैयदुलुलमा मीडिया सेंटर"
हसन यूसुफ साहब का सबसे बड़ा सपना "सैयदुलुलमा मीडिया सेंटर" की स्थापना था। यह सेंटर आयतुल्लाह सैयदुलुलमा की याद में एक स्थायी धरोहर होता, जहां उनके विचारों और शिक्षाओं को सहेजा और आगे बढ़ाया जाता। लेकिन, शिया वक्फ बोर्ड के आंतरिक विवादों और अन्य बाधाओं के कारण, यह सपना हकीकत में तब्दील न हो सका।
हालांकि, मौजूदा चेयरमैन जनाब अली जैदी साहब इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। यह हसन यूसुफ साहब की विरासत को बनाए रखने और उनके सपनों को पूरा करने का एकमात्र रास्ता है।
एक मिसाली शख्सियत
हसन यूसुफ साहब केवल "यादगारे हुसैनी" के लिए नहीं, बल्कि पूरे लखनऊ और भारतीय मुस्लिम समाज के लिए एक मिसाल थे। उनकी सादगी, ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें समाज के हर वर्ग में सम्मानित बनाया। वह अपनी जिंदगी को अहलेबैत की खिदमत और समाज के उत्थान के लिए समर्पित कर चुके थे।
तदफीन और श्रद्धांजलि
जनाब हसन यूसुफ साहब की तदफीन आज ऐशबाग स्थित मलका जहां कर्बला में अंजाम पाई। उनके इंतकाल की खबर से उनके चाहने वालों, परिवार और अंजुमन के सदस्यों में गम और अफसोस का माहौल है। लखनऊ के कई प्रमुख धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की और उनके योगदान को सराहा।
उनका योगदान अमिट है
हसन यूसुफ साहब का योगदान न केवल "यादगारे हुसैनी" तक सीमित था, बल्कि उन्होंने समाज के हर वर्ग में अपनी सेवा और नेतृत्व की छाप छोड़ी। उनकी कमी को पूरा करना आसान नहीं होगा। वह एक ऐसी रोशनी थे, जो हमेशा अंधेरों को चीरकर आगे बढ़ने का रास्ता दिखाती रही।
यादगारे हुसैनी की जिम्मेदारी
उनके इंतकाल के बाद, "यादगारे हुसैनी" के सदस्यों और उनके चाहने वालों की जिम्मेदारी है कि वह उनके अधूरे ख्वाब को पूरा करें। "सैयदुलुलमा मीडिया सेंटर" का निर्माण उनकी याद को हमेशा के लिए जीवित रखने का सबसे अच्छा जरिया हो सकता है।
समाज के लिए प्रेरणा
हसन यूसुफ साहब ने अपने जीवन में जो नैतिकता, ईमानदारी और समर्पण का उदाहरण पेश किया, वह आज के दौर में दुर्लभ है। उनका जीवन हर उम्र और वर्ग के लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
आखिरी अल्फाज़
"हसन यूसुफ साहब का योगदान इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उनका जीवन सच्चे नेतृत्व और खिदमत का प्रतीक था। अल्लाह से दुआ है कि उन्हें जन्नतुल फिरदौस में आला मुकाम अता फरमाए और उनके परिवार और चाहने वालों को सब्र और हिम्मत दे।"
"वह केवल एक इंसान नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मशाल बनकर रहेंगे।"
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