निदा टीवी डेस्क
नगराम, लखनऊ की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रहे ज़फ़र अस्करी बाबा को याद करना नगराम की आजादारी की एक पुरानी और बेहतरीन परंपरा को ताज़ा करना है। ज़फ़र अस्करी बाबा सादात घराने की वह रौशन शमां थे, जिन्होंने अपने मजलिसों और नौहों से न केवल नगराम बल्कि आसपास के इलाकों में भी इमाम हुसैन (अ.स.) की याद को अमर कर दिया।
मजलिसों का जुनून और मसाएब का असर
ज़फ़र अस्करी बाबा की शख्सियत का सबसे बड़ा पहलू उनका मजलिस पढ़ना था। 1 मोहर्रम से उनका मजलिसों का सिलसिला शुरू होता, और मसाएब पढ़ते वक्त उनकी आवाज़ भरभरा कर रो पड़ती थी। उनकी यह गहरी और सच्ची तासीर हर श्रोता के दिल को छू जाती थी। मसाएब पढ़ते हुए उनका दर्द और इमाम हुसैन (अ.स.) के ग़म का इज़हार ऐसा होता कि पूरा माहौल गमगीन हो जाता।
नौहा पढ़ने की अद्भुत शैली
ज़फ़र अस्करी बाबा ने न केवल मजलिसें पढ़ीं, बल्कि नौहा पढ़ने की भी एक अनोखी और मार्मिक शैली विकसित की। उन्होंने नौहों के जरिए इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके साथियों के बलिदान की कहानी को जन-जन तक पहुँचाया। नौहा पढ़ते हुए उनका अंदाज इतना असरदार था कि सुनने वाले ग़म में डूब जाते थे।
गुरबत में भी नेकियों का जखीरा
ज़फ़र अस्करी बाबा का जीवन सादगी और खुद्दारी की मिसाल था। उन्होंने कभी अपनी गरीबी को अपनी सेवा और नेकियों के रास्ते में आने नहीं दिया। उनका हर कार्य इस बात का गवाह था कि इंसान अगर नीयत सच्ची और इरादे मजबूत रखे, तो हालात कितने भी कठिन क्यों न हों, नेकियों का जखीरा बनाया जा सकता है।
मजाक का अनोखा अंदाज़
ज़फ़र अस्करी बाबा के व्यक्तित्व का एक और खूबसूरत पहलू उनका मजाक करने का अंदाज़ था। उनका हंसमुख स्वभाव और हल्के-फुल्के मजाक करने की कला हर किसी को उनके करीब लाती थी। उनके मजाक में कभी कटुता नहीं होती थी; यह हमेशा सकारात्मक और प्रेरणादायक होता।
नगराम की आजादारी का मरहूम हिस्सा
ज़फ़र अस्करी बाबा नगराम की आजादारी के वे स्तंभ थे, जिनके बिना नगराम की शान अधूरी लगती है। उनके जज्बे और जुनून ने नगराम की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को नया आयाम दिया। आज जब उनकी याद आती है, तो उनकी खिदमत, मजलिसों और नौहों की गूँज दिलों को भर देती है।
ज़फ़र अस्करी बाबा का असर और सीख
ज़फ़र अस्करी बाबा की शख्सियत हमें यह सिखाती है कि इंसान का असली मकसद अपने समय और समाज की सेवा करना होना चाहिए। उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी आजादारी और इमाम हुसैन (अ.स.) के पैगाम को फैलाने में लगा दी।
ज़फ़र अस्करी बाबा को याद करना नगराम की सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक परंपरा को सलाम करने जैसा है। उनकी शख्सियत का हर पहलू प्रेरणा और इबादत का संदेश देता है। उनके नक्शेकदम पर चलना और उनकी यादों को संजोकर रखना हर नगराम वासी का फर्ज़ है।
ज़फ़र अस्करी बाबा, आप हमारे दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।
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