5 रजब का दिन इतिहास में रोशनी का वह दिन है जब इमामत के चिराग के 10वें इमाम, हज़रत अली नकी (अलैहिस्सलाम), का जन्म हुआ। आपकी विलादत सन् 212 हिजरी को मदीना मुनव्वरा में हुई। आपके पिता इमाम मोहम्मद तकी (अ.स.) और माता बीबी समाना थीं। आपने अपने समय में न केवल इस्लामी शिक्षाओं की हिफ़ाज़त की, बल्कि ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों के लिए एक प्रेरणा भी बने।
हज़रत अली नकी (अ.स.) का दौर और चुनौतियाँ
आपका दौर इस्लाम की सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं से भरा हुआ था। अब्बासी खलीफा के शासनकाल में शिया मुसलमानों पर अत्याचार हो रहे थे। बावजूद इसके, आपने अपने हुस्न-ए-अख़लाक और इल्मी सलाहियत से इस्लामी तहज़ीब और उसके उसूलों को ज़िंदा रखा।
इमाम अली नकी (अ.स.) का पैग़ाम
1. तौहीद और इबादत का महत्व
इमाम (अ.स.) ने हमेशा तौहीद (एकेश्वरवाद) की शिक्षा दी। आपने बताया कि इबादत सिर्फ़ रस्म अदायगी नहीं है, बल्कि यह इंसान को अल्लाह के करीब लाने का ज़रिया है। इबादत के साथ-साथ आपने यह भी सिखाया कि इंसान को दूसरों के साथ इंसाफ़ और रहमत का बर्ताव करना चाहिए।
2. अख़लाक़ और इंसानियत की अहमियत
इमाम अली नकी (अ.स.) ने इंसानियत को तरजीह दी। आपने फरमाया:
"जो इंसान दूसरों की जरूरतों को पूरा करता है, वह अल्लाह का सबसे करीबी बंदा है।"
आपके इस कथन से साफ होता है कि आपने दूसरों की मदद और इंसानी अख़लाक़ को सबसे बड़ा धर्म बताया।
3. इल्म और तालीम की रोशनी
इमाम (अ.स.) ने इल्म को समाज की तरक्की के लिए जरूरी बताया। आपने फरमाया:
"इल्म वो रोशनी है, जो जहालत के अंधेरे को मिटा देता है।"
आपने हमेशा शिक्षा और ज्ञान के प्रचार-प्रसार पर ज़ोर दिया।
4. सब्र और इस्तेकामत का पैग़ाम
इमाम अली नकी (अ.स.) ने अपने जीवन से साबित किया कि कठिन परिस्थितियों में भी सब्र और इस्तेकामत (स्थिरता) इंसान की पहचान है। अब्बासी हुकूमत की साजिशों और दुश्मनों के तमाम अत्याचारों के बावजूद आपने अपनी इमामत की जिम्मेदारियों को निभाया।
आज के दौर के लिए इमाम (अ.स.) का संदेश
आज जब समाज में हिंसा, नफ़रत, और अन्याय का बोलबाला है, इमाम अली नकी (अ.स.) का पैग़ाम हमें एकजुटता, इंसाफ़, और आपसी मोहब्बत का रास्ता दिखाता है। आपकी तालीमात हमें याद दिलाती हैं कि मुसलमानों का असल मकसद अल्लाह की इबादत के साथ इंसानियत की खिदमत करना है।
आपकी विलादत पर हमारी जिम्मेदारी
इमाम (अ.स.) की विलादत का जश्न मनाने का सही तरीका यही है कि हम उनकी तालीमात पर अमल करें। जरूरतमंदों की मदद करें, तालीम को बढ़ावा दें और इस्लाम के असल उसूलों पर चलें।
अंत में, 5 रजब का यह मुबारक दिन हमें याद दिलाता है कि इमाम (अ.स.) जैसे रहनुमाओं की वजह से ही इस्लाम की असल रूह आज तक जिंदा है।
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