"इमाम अली नकी (अ.) की शहादत: लखनऊ वालो का जमीर इमामे जमाना (अ.फ) को पुरसा देने के लिए सामरा में जाने के काबिल नहीं रह गया है क्या ?"


निदा टीवी डेस्क

लखनऊ, जो अहलेबैत (अ.) की मोहब्बत और वफादारी का प्रतीक माना जाता है, इमाम अली नकी (अ.) की शहादत के अवसर पर उनके मानने वालों के लिए एक गहरी सोच और आत्मनिरीक्षण का समय होना चाहिए। लेकिन आज हालात यह हैं कि उनकी दरगाह सामरा पर मौजूदगी और इमाम (अ.) के संदेश को समझने का जज्बा कमज़ोर पड़ता दिखाई देता है।आज सिर्फ कुछ दर्जन लोग हसबे दस्तूर आए,हा कुछ 25 ,30, मस्तूरात आई,
ताबूत सजाया मातम किया मजलिस की और चली गई,जो भी थी वो 5 लाख शियाओ के लखनऊ की खास इमाम की चाहने वाली थी।

इमाम अली नकी (अ.): इल्म, इबादत और सब्र का मीनार

इमाम अली नकी (अ.) वह शख्सियत हैं जिनकी जिंदगी अल्लाह की इबादत, इल्म की रोशनी, और सब्र की मिसाल से भरपूर रही। उन्होंने मुश्किल हालात में अपने मानने वालों को न सिर्फ सीधा रास्ता दिखाया बल्कि दुश्मनों के साजिशों का जवाब भी दिया। उनके दौर में बगदाद की अब्बासी सल्तनत ने न केवल उन्हें परेशान किया बल्कि उनके चाहने वालों पर जुल्म भी ढाए।

इमाम (अ.) ने हमें सिखाया कि सब्र और हिकमत से कैसे अपने मजहब और ईमान को महफूज़ रखा जाए। लेकिन आज, उनके मानने वाले खुद उनकी तालीमात और उनके मकाम की अहमियत को भूलते जा रहे हैं।

इमामे ज़माना (अ.फ) और उनकी विरासत का दर्द

इमाम अली नकी (अ.) की शहादत का गम हर मोमिन को महसूस होना चाहिए, क्योंकि यह गम न सिर्फ अतीत का है, बल्कि मौजूदा वक्त में हमारे मौला इमामे ज़माना (अ.फ) के दिल का दर्द भी है। इमामे ज़माना (अ.फ) खुद अपने दादा इमाम अली नकी (अ.) की तालीमात को आगे बढ़ाने वाले हैं।

क्या हम यह भूल गए हैं कि हर इमाम (अ.) का दुख इमामे ज़माना (अ.फ) का दुख है? क्या हमने यह समझा कि उनकी शहादत के मौके पर उनकी दरगाह पर न जाना, उनकी तालीमात को भूलना, और उनकी विरासत की अनदेखी करना, इमामे ज़माना (अ.फ) को दुख पहुंचाने के बराबर है?

लापरवाही का आलम: सामरा दरगाह रही खाली, नहीं हुई मजलिसें 

लखनऊ जैसे शहर में, जहां सैकड़ों अंजुमनें और धार्मिक संस्थाएं मौजूद हैं, वहाँ इमाम अली नकी (अ.) की दरगाह पर लोगों की कम उपस्थिति हमारे लिए एक शर्मनाक सच्चाई है।

हर साल लाखों लोग मजलिसों और जुलूसों में शामिल होते हैं, लेकिन इमाम अली नकी (अ.) की दरगाह पर हाजिरी देने वालों की संख्या इस कदर कम क्यों है?
क्या यह हमारी लापरवाही नहीं है?

क्या यह हमारी अहमियत को खोने का सबूत नहीं है?

दरगाह की जियारत और इमामे ज़माना (अ.फ) का इंतजार

इमाम अली नकी (अ.) की दरगाह की जियारत करना न सिर्फ उनके प्रति मोहब्बत का इजहार है, बल्कि इमामे ज़माना (अ.फ) के इंतजार को निभाने का भी तरीका है।

अगर हम इमाम अली नकी (अ.) की तालीमात पर अमल करने के बजाय उन्हें भूलने लगे, तो यह इंतजार का सही तरीका नहीं हो सकता।

इमाम (अ.) ने हमेशा अपने मानने वालों को जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने, तालीम हासिल करने, और अपनी जिम्मेदारियों को समझने की शिक्षा दी।

सेव वक्फ इंडिया के प्रवक्ता मौलाना इफ्तिखार हुसैन इंकलाबी कहते है।

क़ौम को जागरूक करने की जरूरत है

आज, जब हर ओर से हमारी पहचान और अकीदे पर सवाल उठ रहे हैं, यह जरूरी है कि हम इमाम अली नकी (अ.) और  इमामों (अ.) की विरासत को याद रखें।

1. मजलिसों से आगे बढ़ें: मजलिसों में शामिल होना जरूरी है, लेकिन दरगाहों की जियारत और वहां दुआएं करना भी उतना ही अहम है।

2. जवानी का इस्तेमाल करें: नौजवानों को चाहिए कि वह दरगाहों की देखरेख में हिस्सा लें और वहां की हाजिरी को बढ़ावा दें।

3. सामाजिक मीडिया का इस्तेमाल: दरगाह की अहमियत पर जागरूकता फैलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें।

4. सामूहिक सफाई और दुआ: दरगाह की सफाई और वहां के माहौल को खुशनुमा बनाने के लिए सामूहिक प्रयास करें।

मुगल मस्जिद मुंबई के पेश इमाम मौलाना नजीबुल हसन जैदी जो इस वक्त कुम में है बताते है ।

पुरसा: इमामे ज़माना (अ.फ) को कैसे दें?

1. दरगाह पर हाजिरी: शहादत के दिन इमाम अली नकी (अ.) की दरगाह पर जाकर सलाम पेश करें और इमामे ज़माना (अ.फ) को पुरसा दें।

2. इस्तिगासा: इमामे ज़माना (अ.फ) से मदद की दुआ करें और उनकी राह में तालीम और अमल का इरादा करें।

3. अंजुमनों का योगदान: अंजुमनों को चाहिए कि वे शहादत के मौके पर दरगाह पर प्रोग्राम आयोजित करें।

4. निजी प्रयास: हर शख्स को खुद से सवाल करना चाहिए कि वह इमाम (अ.) की याद में क्या कर रहा है।

खुद से सवाल करें

क्या हमारी ग़फलत हमारे इमामे ज़माना (अ.फ) को दुख नहीं पहुंचा रही?

क्या हम वाकई अपने मौला (अ.फ) के इंतजार के काबिल हैं, अगर हम उनकी विरासत की इज्जत नहीं कर सकते?

क्या हमारा ईमान इतना कमजोर हो गया है कि हम अपने इमाम (अ.) के मकाम को भूल रहे हैं?

आखिरी गुजारिश

"जो इमाम (अ.) के गम में रोता है, वह उनके नक्शेकदम पर चलता है।"
इमाम अली नकी (अ.) की शहादत का गम हमारे लिए महज एक रस्म नहीं, बल्कि अपनी गलतियों को सुधारने का वक्त है। आइए, हम सब मिलकर उनके संदेश को जिंदा रखें और उनकी दरगाह की हाजिरी से अपने इमामे ज़माना (अ.फ) को पुरसा दें।

"दर्द को महसूस करो, वर्ना इंतजार सिर्फ एक दावे से ज्यादा कुछ नहीं।"

अंजामे गुजारिश

अब आइए आने वाले 5 रजब दुशांबे का दिन हमारे लिए अपनी ग़लतियों को सुधारने और इमाम अली नकी (अ.) की मोहब्बत का इजहार करने का सुनहरा मौका है। आइए, हम सब मिलकर उनकी दरगाह सामरा खदरा की जियारत करें,नजरो नियाज़ करे, और उनके संदेश को आगे बढ़ाएं।

"जो इमाम (अ.) का इंतजार करता है, वह उनके नक्शे कदम पर चलता है।"

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