लखनऊ जामा मस्जिद में तीन दिवसीय एतिकाफ संपन्न: अमाल ए- उम्मे दावूद के साथ दुनिया में अमन और भारत की बुलंदी के लिए मांगी गई दुआएं


निदा टीवी डेस्क

लखनऊ:रजब के पवित्र महीने में लखनऊ की ऐतिहासिक जामा मस्जिद में तीन दिवसीय एतिकाफ का समापन विश्व शांति, अमन और भारत की तरक्की के लिए की गई भावपूर्ण दुआओं के साथ हुआ। यह आयोजन रूहानियत और इबादत का अनूठा उदाहरण बना। इस आयोजन की सरपरस्ती हुज्जतुल इस्लाम मौलाना आरिफ हुसैन, मौलाना साबिर अली इमरानी और मौलाना वाहिद हुसैन ने की।

एतिकाफ की खासियत और दुआ उम्मे-दावूद का महत्व

इस दौरान दुआ उम्मे-दावूद को विशेष तौर पर पढ़ा गया। यह दुआ इच्छाओं की पूर्ति, परेशानियों से निजात और जालिमों के जुल्म से हिफाजत के लिए जानी जाती है। शेख तुसी की किताब मिसबाह अल-मुतहज्जिद के अनुसार, इस दुआ का अमल रजब के 13वें, 14वें और 15वें दिन रोज़ा रखने के बाद किया जाता है।

एतिकाफ में शामिल लोगों ने ज़ोहर और अस्र की नमाज़ अदा करने के बाद कुरआन की सूरह फातिहा, सूरह तौहीद, आयतुल कुर्सी और अन्य कई महत्वपूर्ण सूरहों की तिलावत की। इसके बाद मौलाना साबिर अली इमरानी ने अपने खास अंदाज में दुआए तवस्सुल पढ़ी, जिसने सभी को भाव-विभोर कर दिया।

प्रतिष्ठित हस्तियों और अतिथियों की मौजूदगी

कार्यक्रम में समाज और समुदाय की प्रतिष्ठित हस्तियों ने भी अपनी भागीदारी दर्ज कराई। नायब इमामे जुमा मौलाना सरताज हैदर जैदी,अयातुल्लाह अली सिस्तानी साहब सवाल जवाब महकमे के इंचार्ज  मौलाना अली हाशिम आब्दी साहब की मौजूदगी खास रही 

 इस मौके पर पूर्व डिप्टी एसपी वकार हुसैन, सज्जाद भाई, अफरोज आगा, इंजीनियर अहमद, डॉ. रज़ी, शाहिद काज़मी और खतीबे अहलेबैत शाहकार जैदी ,रेहान मेहदी प्रमुख रूप से शामिल थे।

सहरी और इफ्तार की खास व्यवस्था सोशल वर्कर मोहम्मद भाई और अन्य सहयोगियों द्वारा की गई, जिन्होंने आयोजन को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

एतिकाफ में शामिल 

 इस एतिकाफ में शिक्षाविद बाकर इमाम साहब, रफीक हुसैन साहब, शफीक हुसैन साहब , जैनुल एबा साहब , कल्बे पंजतन साहब, हिफाजत हुसैन साहब, मुस्लिम भाई और तहलका टुडे के संपादक सैयद रिजवान मुस्तफा शामिल थे।


अंतिम दिन की खास झलकियां
जौहर के बाद अमाल उम्मे दावूद  के बाद मगरिब की नमाज़ के बाद हदीस-ए-किसा  शफीक हुसैन ने पढ़ी। इसके बाद खतीबे अहलेबैत शाहकार जैदी ने एक प्रेरणादायक मजलिस को संबोधित किया। उन्होंने इस्लामी शिक्षाओं, आत्मिक शुद्धि और तौबा के महत्व पर जोर देते हुए इसे बेहतर जीवन जीने का आधार बताया।

एतिकाफ: रूहानियत और अमन का प्रतीक

रजब का महीना, जो मुस्लिम कैलेंडर के महत्वपूर्ण महीनों में से एक है, विशेष रूप से रहमतों और बरकतों का महीना माना जाता है। इस महीने में विशेष रूप से 13 रजब को, जब इमाम अली (अ.स.) का जन्म हुआ, अल्लाह से दुआ करने का विशेष महत्व है। यही वजह है कि शिया जामा मस्जिद, नेपियर रोड, लखनऊ में 13 से 16 जनवरी तक तीन दिवसीय एतिकाफ का आयोजन कल्बे पंजतन खान द्वारा किया गया था।

एतिकाफ और उसका महत्व

एतिकाफ, वह समय होता है जब मुसलमान मस्जिद में बैठकर पूरी तरह से इबादत और दुआ में रत रहते हैं। यह समय अल्लाह के करीब जाने और अपनी परेशानियों, दुखों और इच्छाओं को अल्लाह के सामने रखने का होता है। इस दौरान की गई हर दुआ, हर इबादत, और हर आंसू अल्लाह के दरबार में विशेष स्थान पाते हैं। जैसा कि हज़रत अली (अ.स.) ने नहजुल बलागा में कहा था, "दुआ मुसीबतों को टालने का सबसे बड़ा जरिया है।"

13 रजब: हज़रत अली (अ.स.) की विलादत का दिन

13 रजब को जब काबे के अंदर हज़रत अली (अ.स.) का जन्म हुआ, यह इस्लाम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। यह दिन मुसलमानों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अल्लाह की विशेष रहमत और करिश्मे का प्रतीक है। एतिकाफ में बैठकर इस दिन की दुआ की जाए तो यह आशा और विश्वास का संचार करता है कि अल्लाह अपनी रहमत से बंदे की हर मुश्किल को आसान करेगा और उनकी मुरादों को पूरा करेगा।

एतिकाफ का उद्देश्य

एतिकाफ का मुख्य उद्देश्य अल्लाह के करीब जाना, अपने गुनाहों की माफी मांगना और दुआओं की कुबूलियत प्राप्त करना है। यह एक आध्यात्मिक सफर है, जिसमें व्यक्ति अपनी सांसारिक परेशानियों से दूर हो कर अल्लाह से अपनी सच्ची और दिली दुआ करता है। यह वह समय होता है जब इंसान अपने जीवन की नई राह तलाशता है और अपनी किस्मत को बदलने का प्रयास करता है।



यह आयोजन न केवल धार्मिक इबादत का माध्यम बना, बल्कि समाज में अमन, शांति और भाईचारे का संदेश भी फैलाया। रजब के इस एतिकाफ ने लखनऊ के मुस्लिम समुदाय में इबादत और तौबा के प्रति एक नया उत्साह भरा।

जामा मस्जिद का यह तीन दिवसीय एतिकाफ कार्यक्रम यह संदेश देता है कि अल्लाह से रहमत और माफी मांगने के साथ-साथ इंसानियत की भलाई के लिए दुआएं करना ही जीवन का असली मकसद है। यह आयोजन न केवल रूहानी ताकत को बढ़ाने का जरिया बना, बल्कि भारत और पूरी दुनिया में अमन और तरक्की के लिए एक प्रेरणास्त्रोत भी था।

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