"मदद की आड़ में दिखावा":"क्या आपकी नेकियां इंसानियत को सहारा दे रही हैं या सिर्फ आपकी वाहवाही के लिए बर्बाद हो रही हैं?"

"मदद की आड़ में दिखावा":
"क्या आपकी नेकियां इंसानियत को सहारा दे रही हैं या सिर्फ आपकी वाहवाही के लिए बर्बाद हो रही हैं?"

मदद: इंसानियत का फर्ज़, दिखावे से बचे

हज़रत इमाम अली (अ.स.) ने फरमाया:

"सदका उसे दो, जिसे गुरबत खाने न दे और गैरत मांगने न दे।"

यह हदीस हमें सिखाती है कि मदद करते समय हमें उन लोगों को तलाशना चाहिए, जो गरीबी और मुश्किल हालात में होते हुए भी अपनी खुद्दारी और इज्ज़त-ए-नफ्स को बरकरार रखते हैं। ऐसे लोग अपनी जरूरतों को खुलकर जाहिर नहीं करते, लेकिन उनकी खामोशी उनकी तकलीफ का सबूत होती है। ऐसे जरूरतमंदों की मदद करना हमारी इंसानियत और फर्ज़ है।

दिखावे की मदद और उसका नुकसान

आज के दौर में मदद को नेक अमल के बजाय दिखावे का जरिया बना लिया गया है। सोशल मीडिया पर तस्वीरें और पोस्ट डालकर मदद का ऐलान करना आम हो गया है। इससे मदद पाने वाले की इज्जत पर आंच आती है और मदद करने वाले की नेकियां भी बेकार हो जाती हैं।

दिखावे की मदद:
1. जरूरतमंद की खुद्दारी को चोट पहुंचाती है।
2. इंसानियत को शर्मिंदा करती है।
3. अल्लाह के यहाँ इसका कोई सवाब नहीं है।

हज़रत इमाम अली (अ.स.) ने फरमाया:

"जो किसी पर एहसान करके उसे जताए, उसने उस एहसान को बर्बाद कर दिया।"

मदद का सही तरीका

मदद का असल मकसद जरूरतमंद का सहारा बनना और उसकी इज्ज़त बचाना है। सच्ची मदद वही है, जो खामोशी और सच्ची नीयत के साथ की जाए। बिना दिखावे और घमंड के, ऐसे लोगों की मदद करें, जो अपनी गरीबी के बावजूद खुद्दारी को कायम रखते हैं।

याद रखें:

मदद खामोशी से करें।
जरूरतमंद की इज्ज़त का ख्याल रखें।
अपनी नेकियों को दिखावे और घमंड से बचाएं।

मदद इंसानियत का फर्ज़ है और इसका सवाब तभी मिलता है, जब इसे अल्लाह की रज़ा के लिए किया जाए। दिखावे की मदद आपकी नेकियों को मिटा देती है। खामोश जरूरतमंदों तक पहुंचें और उनकी आंखों में उम्मीद को ज़िंदा रखें।

"दिखावा इंसानियत को मारता है, और दिल से की गई मदद इंसानियत को ज़िंदा रखती है।"

सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
वाइस प्रेसिडेंट
सेव वक्फ इंडिया
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