📍 जामा मस्जिद, तहसीनगंज, लखनऊ – माहे रमज़ान के मुबारक दिनों में जामा मस्जिद की फिज़ा कुरआन-ए-पाक की तिलावत और तफसीर से रोशन हो रही है। दारुल कुरआन सैयदा सुल्ताना तंज़ील अकादमी के तत्वावधान में जारी खास रूहानी जलसे "माहे खुदा, किताबे खुदा के साथ" के 11वें दिन हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मुशाहिद आलम साहब ने 11वें पारे की तफसीर बयान की
कुरआन के 11वें पारे की तफसीर
(يَعْتَذِرُونَ إِلَيْكُمْ – "यअतज़िरूना इलैकुम")
कुरआन का 11वां पारा सूरह अत-तौबा (आयत 94 से) शुरू होकर सूरह हूद (आयत 5 तक) पर खत्म होता है। इसमें अल्लाह तआला ने विभिन्न अहम मुद्दों पर रहनुमाई दी है, जिनमें मुनाफिकों (दिखावे के मुसलमान), नबियों के किस्से, तौबा की अहमियत, अल्लाह की रहमत और अजाब का जिक्र शामिल है।
🌿 प्रमुख विषय:
1️⃣ मुनाफिकों का बयान – उनका झूठ और बहाने (सूरह अत-तौबा, 94-110)
इस पारे की शुरुआत में मुनाफिकों (दिखावे के मुसलमानों) का जिक्र किया गया है, जो अपनी नीयत में खोट रखते हैं। जब उन्हें जिहाद में शामिल होने के लिए कहा गया, तो उन्होंने झूठे बहाने बनाए और सच्चे ईमान वालों से अलग रहे।
▶ सबक: ईमान सिर्फ जुबान से नहीं, बल्कि दिल और अमल से साबित होता है।
2️⃣ मस्जिद ज़रार – वह मस्जिद जिसे मुनाफिकों ने फितना फैलाने के लिए बनाया (सूरह अत-तौबा, 107-110)
इसमें एक खास मस्जिद का जिक्र है, जिसे मुनाफिकों ने इस्लाम के खिलाफ साजिश के लिए बनाया था। अल्लाह ने अपने नबी (स) को इसका पर्दाफाश करने और इसे नष्ट करने का हुक्म दिया।
▶ सबक: मस्जिद सिर्फ अल्लाह की इबादत के लिए होनी चाहिए, न कि किसी साजिश या गुमराही के लिए।
3️⃣ हज़रत नूह (अ) की क़ौम और उनकी आज़माइश (सूरह यूनुस, 71-73)
हज़रत नूह (अ) ने अपनी कौम को 950 साल तक तौहीद (अल्लाह की एकता) की दावत दी, लेकिन बहुत कम लोग ईमान लाए। बाकी लोगों ने उनका मज़ाक उड़ाया, जिस वजह से अल्लाह ने उन पर सैलाब का अजाब नाज़िल किया।
▶ सबक: सच्चाई पर डटे रहना मुश्किल हो सकता है, लेकिन इसका अंजाम हमेशा कामयाबी होता है।
4️⃣ हज़रत मूसा (अ) और फिरऔन का किस्सा (सूरह यूनुस, 75-92)
फिरऔन ने हज़रत मूसा (अ) और बनी इसराईल पर जुल्म किए, लेकिन जब अल्लाह का अजाब आया और वह डूबने लगा, तो उसने ईमान लाने का दिखावा किया। मगर तौबा का वक्त निकल चुका था।
▶ सबक: मौत के वक्त की तौबा कुबूल नहीं होती, इसलिए हमें वक्त रहते ही अपने गुनाहों से बाज आकर अल्लाह से माफी मांग लेनी चाहिए।
5️⃣ अल्लाह की रहमत और उसकी कुदरत (सूरह हूद, 1-5)
इस पारे के आखिरी हिस्से में बताया गया कि अल्लाह की रहमत हर चीज़ पर हावी है, लेकिन उसकी सज़ा भी बहुत सख्त हो सकती है। इंसान को चाहिए कि वह अल्लाह के बताए रास्ते पर चले और नेक अमल करे।
💡 11वें पारे से मिलने वाले अहम सबक:
✔ ईमान और मुनाफिकत में फर्क – जो लोग सच्चे दिल से अल्लाह पर ईमान लाते हैं, वे अमल से भी इसे साबित करते हैं, जबकि मुनाफिक सिर्फ जुबान से इस्लाम का इज़हार करते हैं।
✔ झूठ और बहानेबाजी से बचें – जो लोग दीन के अहकामात से भागते हैं, वे अल्लाह के अजाब के हकदार बनते हैं।
✔ तौबा में देर न करें – इंसान को हर वक्त अपने गुनाहों से तौबा करते रहना चाहिए, क्योंकि मौत के वक्त की तौबा कुबूल नहीं होती।
✔ मस्जिद को सिर्फ इबादत के लिए बनाएँ – मस्जिदें इस्लाम की बुनियाद को मजबूत करने के लिए होती हैं, न कि फितना और नफरत फैलाने के लिए
📡 आज का लाइव देखें!
"माहे खुदा, किताबे खुदा के साथ" जलसे का हुसैनी चैनल, विलायत टीवी और कुरआन टीवी पर लाइव प्रसारण किया जा रहा है, ताकि दुनियाभर के मोमिनीन इसका फ़ायदा उठा सकें।
🔴 आज का लाइव देखने के लिए क्लिक करें:
➡️ LIVE QURAN PROGRAM | MAHE KHUDA, KITABE KHUDA KE SAATH
📢 इस मुबारक जलसे में ज्यादा से ज्यादा मोमिनीन को शिरकत करने की दावत दी जाती है। आइए, कुरआन की हिदायतों से अपनी ज़िंदगी को रोशन करें!
📢 देखते रहिए – www.nidatv.com
हमारी वेबसाइट का उद्देश्य
समाज में सच्चाई और बदलाव लाना है, ताकि हर व्यक्ति अपने हक के साथ खड़ा हो सके। हम आपके सहयोग की अपील करते हैं, ताकि हम नाजायज ताकतों से दूर रहकर सही दिशा में काम कर सकें।
कैसे आप मदद कर सकते हैं:
आप हमारी वेबसाइट पर विज्ञापन देकर हमें और मजबूती दे सकते हैं। आपके समर्थन से हम अपने उद्देश्य को और प्रभावी ढंग से पूरा कर सकेंगे।
हमारा बैंक अकाउंट नंबर:
- बैंक का नाम: Bank Of India
- खाता संख्या: 681610110012437
- IFSC कोड: BKID0006816
हमारे साथ जुड़कर आप हक की इस राह में हमारा साथी बन सकते हैं। आपके सहयोग से हम एक मजबूत और सच्ची पहल की शुरुआत कर सकेंगे।