इस्लामी इतिहास का एक गहरा दर्द और सदीयों से महसूस किया जाने वाला ज़ख्म—जन्नतुल बक़ी का इनहेदाम—आज भी हर जागरूक मुसलमान के दिल में एक टीस की तरह मौजूद है। यह न केवल एक कब्रिस्तान था, बल्कि इस्लामी इतिहास और आध्यात्मिकता का एक चमकता हुआ सितारा था, जिसे ज़ुल्म और अन्याय ने उजाड़ दिया। इसी मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाने और इसकी पुनर्स्थापना की माँग को मजबूत करने के लिए अल-बक़ी ऑर्गेनाइजेशन और सूफ़ी इस्लामिक बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में "इनहेदामे जन्नतुल बक़ी कॉन्फ्रेंस" का आयोजन 6 अप्रैल 2025 को हजरत वारिस अली शाह, देवा शरीफ, बाराबंकी में किया जा रहा है।
सम्मेलन का उद्देश्य: न्याय की एक बुलंद आवाज़
यह सम्मेलन केवल एक औपचारिक आयोजन नहीं, बल्कि एक जज़्बाती और ऐतिहासिक आंदोलन का हिस्सा है। इसमें दुनिया के प्रमुख विद्वान, सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक नेता और मानवाधिकार विशेषज्ञ एक मंच पर इकट्ठा होंगे, ताकि जन्नतुल बक़ी के पुनर्निर्माण की माँग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावशाली बनाया जा सके।
इस ऐतिहासिक सम्मेलन में निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा होगी:
- जन्नतुल बक़ी का ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व: यह केवल एक कब्रिस्तान नहीं, बल्कि इस्लाम की प्रारंभिक पीढ़ियों और महान हस्तियों का विश्राम स्थल है।
- धरोहर के संरक्षण की आवश्यकता: क्यों पूरी दुनिया अपनी ऐतिहासिक विरासत को सहेजती है, लेकिन जन्नतुल बक़ी के पुनर्निर्माण की राह में रोड़े अटकाए जाते हैं?
- पवित्र स्थलों की बेअदबी और अन्यायपूर्ण नीतियाँ: क्यों ऐतिहासिक विरासत को मिटाने की कोशिशें की जा रही हैं, और इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाने चाहिए?
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आवाज़ उठाने की रणनीति: इस्लामी देशों, संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों के समक्ष इस माँग को प्रभावी रूप से प्रस्तुत करने की योजनाएँ।
एक ऐतिहासिक स्थान से उठने वाली न्याय की आवाज़
इस बार यह सम्मेलन एक अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक स्थान पर आयोजित किया जा रहा है—हजरत वारिस अली शाह, देवा शरीफ, बाराबंकी। यह स्थान भारत की सूफ़ी परंपरा और गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है। हजरत वारिस अली शाह की शिक्षाएँ प्रेम, सद्भावना और न्याय पर आधारित थीं, और उन्हीं की सरज़मीं से जन्नतुल बक़ी के पुनर्निर्माण की बुलंद आवाज़ उठाई जाएगी।
एक दर्द जो अब भी ताज़ा है
जन्नतुल बक़ी उन हज़ारों दिलों की धड़कन है, जो अपने रसूल (स) और उनके अहलेबैत (अ) से बेइंतहा मोहब्बत रखते हैं। 1925 में इस्लामी इतिहास की इस अनमोल धरोहर को बेरहमी से ढहा दिया गया था, जिससे दुनिया भर के मुसलमानों के दिलों पर गहरी चोट लगी। इस जुल्म के खिलाफ़ उठने वाली आवाज़ें कभी दब नहीं सकतीं। यह सम्मेलन इस अन्याय को याद रखने और इसके समाधान के लिए उठाए जा रहे कदमों को मज़बूती देने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
आपकी भागीदारी क्यों ज़रूरी है?
यह आंदोलन सिर्फ़ कुछ लोगों का नहीं, बल्कि हर उस इंसान का है जो न्याय, इतिहास, और आध्यात्मिक विरासत की कद्र करता है। इस सम्मेलन में शामिल होकर आप न सिर्फ़ जन्नतुल बक़ी की पुनर्स्थापना की आवाज़ को मज़बूत करेंगे, बल्कि दुनिया को यह संदेश देंगे कि धरोहरों और पवित्र स्थलों के सम्मान के लिए हम सब एकजुट हैं।
"जन्नतुल बक़ी की पुकार—इंसाफ़ और इंसानियत की आवाज़"
स्थान: हजरत वारिस अली शाह, देवा शरीफ, बाराबंकी
तारीख़: 6 अप्रैल 2025
आइए, इस आंदोलन का हिस्सा बनें और जन्नतुल बक़ी की पुनर्स्थापना के संकल्प को और अधिक ताकत दें!
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