जनाबे खदीजा (स.अ): इस्लाम की पहली मोमिना और त्याग की मिसाल, पुण्य तिथि 10 रमजान पर खास मरयम मुस्तफा की रिपोर्ट


इस्लाम के शुरुआती दौर की अगर सबसे अहम और प्रभावशाली हस्तियों का ज़िक्र किया जाए, तो उनमें सबसे पहला नाम जनाबे खदीजा बिन्ते खुवैलिद (स.अ) का आता है। आप वह महान महिला थीं जिन्होंने सबसे पहले इस्लाम कबूल किया, नबी ए करीम (स.अ.व) का हर मोड़ पर साथ दिया, और अपनी पूरी दौलत व जिंदगी इस्लाम की राह में न्यौछावर कर दी।

10 रमज़ान का दिन उनकी पुण्यतिथि के रूप में याद किया जाता है, जब इस्लाम की इस पहली और सबसे बड़ी समर्थक ने दुनिया से पर्दा कर लिया। यह दिन सिर्फ एक शख्सियत के रुखसत का दिन नहीं, बल्कि इस्लाम के इतिहास का एक ऐसा मोड़ है, जिसने पैगंबर (स.अ.व) को गहरे ग़म में डाल दिया और इस्लामी आंदोलन के शुरुआती संघर्षों को और कठिन बना दिया।

आइए, इस मुकद्दस मौके पर जनाबे खदीजा (स.अ) की जिंदगी, उनके त्याग और इस्लाम के लिए उनकी अद्वितीय सेवाओं को याद करें।


जनाबे खदीजा (स.अ): पवित्रता और महानता की मिसाल

जनाबे खदीजा (स.अ) मक्का के कुरैश कबीले की एक सम्मानित और प्रतिष्ठित महिला थीं। वह अपने दौर की सबसे अमीर और सफल व्यवसायी थीं, जिनकी व्यापारिक ईमानदारी और करमफरमाई की वजह से उन्हें "अल-ताहिरा" (पवित्र महिला) कहा जाता था।

उन्होंने अपनी समझदारी, इज्जत और मालदारी को कभी घमंड का जरिया नहीं बनाया, बल्कि हमेशा जरूरतमंदों, अनाथों और गरीबों की मदद की। उनकी नेकदिली और उदारता पूरे मक्का में मशहूर थी।

जब उन्होंने हज़रत मुहम्मद (स.अ.व) के अख़लाक़, सच्चाई और ईमानदारी को देखा, तो उन्होंने खुद उन्हें निकाह का पैग़ाम भेजा। यह शादी न सिर्फ मोहब्बत की मिसाल थी, बल्कि इस्लाम की बुनियाद को मजबूत करने वाला एक अहम कदम भी साबित हुई।


इस्लाम की पहली मोमिना और सबसे बड़ी समर्थक

जब पहली बार ग़ारे हिरा में हज़रत जिब्राईल (अ.स) के ज़रिए नबी ए करीम (स.अ.व) पर वही नाज़िल हुई और उन्हें अल्लाह का पैग़ाम मिला, तो इस्लाम की सच्चाई को सबसे पहले जिसने स्वीकार किया, वह थीं जनाबे खदीजा (स.अ)।

उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहट के कहा:
"मैं गवाही देती हूँ कि आप अल्लाह के सच्चे रसूल हैं और आपका दीन ही हक़ का दीन है।"

यह उनकी मोहब्बत और ईमान की गहराई थी कि उन्होंने नबी (स.अ.व) पर पूरा भरोसा किया और उनका हर हाल में साथ दिया।


इस्लाम के लिए अनमोल कुर्बानियाँ

इस्लाम के शुरुआती दौर में जब मक्का के काफिरों ने मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाना शुरू किया, तो जनाबे खदीजा (स.अ) ही वह हस्ती थीं जिन्होंने अपनी पूरी दौलत इस्लाम की हिफाज़त में लगा दी।

जब मुसलमानों को शोबे अबू तालिब में तीन साल के सामाजिक बहिष्कार और भूख-प्यास की तकलीफों से गुजरना पड़ा, तो जनाबे खदीजा (स.अ) ने अपनी सारी संपत्ति नबी (स.अ.व) और उनके साथियों की मदद के लिए खर्च कर दी।

इस मुश्किल दौर में उन्होंने खुद हर तकलीफ को बर्दाश्त किया, लेकिन इस्लाम के लिए उनके संकल्प में कोई कमी नहीं आई। उनका यह त्याग इस्लाम के इतिहास में अमिट मिसाल बन गया।


10 रमज़ान: ग़म का साल

शोबे अबू तालिब की कड़ी मुश्किलों के बाद, इस्लाम की यह सबसे बड़ी समर्थक कमजोर हो गईं और आखिरकार 10 रमज़ान, 10 नबवी (619 ईस्वी) को इस दुनिया से पर्दा कर गईं।

इस साल को "आमुल-हुज़्न" (ग़म का साल) कहा जाता है, क्योंकि जनाबे खदीजा (स.अ) की वफात के कुछ ही समय बाद हज़रत अबू तालिब (स.अ) का भी निधन हो गया। ये दोनों शख्सियतें नबी (स.अ.व) की सबसे बड़ी ताकत थीं। उनके जाने से नबी (स.अ.व) बहुत ग़मज़दा हो गए।

जब जनाबे खदीजा (स.अ) का अंतिम समय आया, तो उन्होंने सिर्फ एक ही ख्वाहिश जताई:
"या रसूलुल्लाह! मेरी कब्र में खुद आना और मुझे अपने हाथों से दफ़न करना।"

पैग़म्बर (स.अ.व) उनकी कब्र में उतरे और रोते हुए कहा:
"ऐ खदीजा, इस दुनिया ने मुझे कभी तुम्हारे जैसी वफादार बीवी नहीं दी!"

उनकी मजार मक्का के जन्नतुल मुअल्ला कब्रिस्तान में स्थित है, जो इस्लाम के चाहने वालों के लिए हमेशा इज़्ज़त और मोहब्बत की जगह बनी रहेगी।


जनाबे खदीजा (स.अ) की विरासत

जनाबे खदीजा (स.अ) की सबसे बड़ी नेमत हज़रत फातिमा ज़हरा (स.अ) थीं, जो अहले बैत (अ.स) की मां बनीं और जिनसे इस्लाम की इमामत और विलायत का सिलसिला जारी रहा।

आज भी, जब इस्लाम की हिफ़ाज़त और त्याग की बात होती है, तो जनाबे खदीजा (स.अ) का नाम सबसे पहले लिया जाता है।


सबक और प्रेरणा

जनाबे खदीजा (स.अ) की जिंदगी हमें सिखाती है कि:

  • सच्चा ईमान सिर्फ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि पूरे दिल से अल्लाह और उसके रसूल (स.अ.व) पर भरोसा करना है।
  • त्याग और बलिदान ही किसी मिशन को मजबूत करता है, चाहे वह कितना भी मुश्किल क्यों न हो।
  • दौलत और शोहरत की असल अहमियत तभी है जब वह नेक कामों और इंसानियत की भलाई में खर्च हो।
  • एक सच्ची औरत की ताकत पूरे समाज को बदल सकती है, अगर उसमें ईमान और हिम्मत हो।

आज 10 रमज़ान को हमें जनाबे खदीजा (स.अ) की कुर्बानियों को याद करते हुए अपने अंदर उनकी सिफतों को अपनाने की कोशिश करनी चाहिए। हमें भी चाहिए कि हम इस्लाम की हिफ़ाज़त के लिए अपना किरदार निभाएं और उनके रास्ते पर चलें।

अल्लाह हम सबको इस्लाम की इस महान हस्ती की जिंदगी से सबक लेने और उनके नक्शे कदम पर चलने की तौफ़ीक़ अता करे।

"सलाम हो जनाबे खदीजा (स.अ) पर, जिन्होंने अपने माल, अपनी जिंदगी, और अपनी मोहब्बत को इस्लाम के लिए कुर्बान कर दिया!"

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