बेऔलादों के लिए अल्लाह की नेमत : 12 रजब की रात से जामा मस्जिद में एतिकाफ शुरू, बने अल्लाह के मेहमान, इमाम अली (अ.स.) की काबे में विलादत पर किस्मत बदलने का पाइए सुनहरा मौका"
रजब का महीना रहमतों और बरकतों का महीना है। इस महीने में मुसलमानों को विशेष रूप से अल्लाह की इबादत और दुआओं के लिए समय निकालने की हिदायत दी गई है। खासकर रजब की 13, 14 और 15 तारीखों को एतिकाफ बैठने का खास महत्व है। एतिकाफ अल्लाह की मेहमाननवाजी का वह अवसर है, जब इंसान अल्लाह के करीब होकर अपनी परेशानियों और दिली मुरादों के लिए दुआ करता है। बेऔलाद लोगों के लिए यह समय खास तौर पर मायूसियों को दूर करने और अल्लाह से औलाद की नेमत पाने का मौका है।
रजब का एतिकाफ और उसकी अहमियत
रजब के इस पाक महीने में मुसलमानों को अल्लाह से जुड़ने और अपनी दुआओं को कुबूल कराने का बेहतरीन मौका मिलता है। कुरान और अहले बैत के अक़वाल के मुताबिक, जो इंसान पूरी निष्ठा और सच्चे दिल से अल्लाह के दरबार में बैठकर रोजा रखकर दुआ करता है, उसकी दुआ को जरूर सुना जाता है। एतिकाफ का यह समय, जब व्यक्ति मस्जिद में रहकर पूरी तरह से अल्लाह की इबादत में व्यस्त होता है, उसे अपनी परेशानियों को हल करने और नई उम्मीदें हासिल करने का रास्ता दिखाता है।
कुरान और नहजुल बलागा की नजर में एतिकाफ और दुआ का महत्व
कुरान में अल्लाह फरमाते हैं:
"जब मेरे बंदे मुझसे मेरे बारे में पूछें, तो कह दो कि मैं उनके बहुत करीब हूं। जो मुझे पुकारता है, मैं उसकी पुकार को सुनता हूं और कुबूल करता हूं।"
(सूरा अल-बकरा: 2:186)
यह आयत हर मुसलमान को इस बात का यकीन दिलाती है कि अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को सुनते हैं और उन्हें उनकी जरूरतों के मुताबिक पूरी करते हैं। एतिकाफ के दौरान दुआ का महत्व और बढ़ जाता है क्योंकि यह समय अल्लाह के साथ संबंध बनाने और अपनी कमजोरियों को उसके सामने रखने का सबसे बेहतरीन समय है।
हज़रत अली (अ.स.) ने नहजुल बलागा में फरमाया:
"दुआ मुसीबतों को टालने का सबसे बड़ा जरिया है। जो दिल से दुआ करता है, अल्लाह उसे नाकाम नहीं करता।"
यह बात बेऔलाद लोगों के लिए एक खास पैगाम है कि वह कभी भी अपनी किस्मत से मायूस न हों। एतिकाफ के दौरान मस्जिद में बैठकर दुआ करना, इबादत करना और अल्लाह से अपने दिल की बात कहना, हर मायूसी को दूर कर सकता है।
13 रजब: हज़रत अली (अ.स.) की विलादत का करिश्मा
रजब के महीने की 13 तारीख इस्लामी इतिहास में एक यादगार दिन है। यह वह दिन है जब काबे के भीतर, हज़रत अली (अ.स.) की विलादत हुई। यह घटना इस्लाम के इतिहास में अपनी मिसाल आप है और यह अल्लाह की विशेष रहमत और करिश्मे को दर्शाती है।
हज़रत अली (अ.स.) की विलादत का यह दिन हमें इस बात का सबक देता है कि अल्लाह अपने बंदों की दुआओं को कैसे खास समय और खास तरीके से कुबूल करता है। जामा मस्जिद में 13 रजब को एतिकाफ में बैठकर दुआ करने वाले हर इंसान को यह यकीन रखना चाहिए कि उनके लिए भी किस्मत का कोई करिश्मा जरूर होगा। हज़रत अली (अ.स.) ने अपने जीवन में सिखाया कि अल्लाह के साथ रिश्ते को मजबूत करने का सबसे अच्छा तरीका है, सच्चे दिल से दुआ करना और उसकी इबादत में मशगूल रहना।
अहले बैत और एतिकाफ की अहमियत
अहले बैत ने हमेशा एतिकाफ और दुआ की अहमियत पर जोर दिया है। हज़रत फातिमा (स.अ.) का एक मशहूर कथन है:
"जो दिल से दुआ करता है, वह अल्लाह के करीब हो जाता है और उसकी मुरादें पूरी होती हैं।"
यह बात बेऔलाद और परेशान हाल लोगों के लिए खास तौर पर एक हिदायत है कि वह कभी भी अल्लाह की रहमत से निराश न हों। जामा मस्जिद में रजब के एतिकाफ के दौरान दुआ करना, उनकी मुरादों की कुबूलियत का जरिया बन सकता है।
एतिकाफ: औलाद और तरक्की के लिए दुआ का जरिया
जो लोग औलाद के लिए तरस रहे हैं, उनके लिए एतिकाफ एक ऐसा जरिया है, जो उनकी दुआ को सीधे अल्लाह तक पहुंचाता है। पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) ने फरमाया:
"दुआ, बंदे और अल्लाह के बीच का सबसे मजबूत रिश्ता है।"
रजब का एतिकाफ, रमजान के आखिरी अशरे की तरह, वह समय है जब हर बंदा अपनी परेशानियों, मुरादों और इच्छाओं को अल्लाह के सामने रख सकता है। इस दौरान की गई हर दुआ, हर इबादत, और हर आंसू अल्लाह के दरबार में खास जगह पाते हैं।
जामा मस्जिद: एतिकाफ का आदर्श स्थान
जामा मस्जिद में एतिकाफ बैठने का एक अलग ही आध्यात्मिक माहौल होता है। यह मस्जिद न केवल इबादत के लिए, बल्कि लोगों को उनकी परेशानियों से छुटकारा दिलाने का एक जरिया भी बनती है। मस्जिद का पवित्र वातावरण, इमाम अली (अ.स.) की विलादत की यादें, और रजब के महीने का महत्व, इन सबका संगम हर इंसान के लिए एक नई उम्मीद लेकर आता है।
किस्मत का करिश्मा और अल्लाह की नेमतें
रजब का महीना, एतिकाफ का यह अवसर, और हज़रत अली (अ.स.) की काबे में विलादत, यह सब मिलकर हर मुसलमान के लिए एक नई उम्मीद और नई प्रेरणा का सबब हैं। जो लोग बेऔलाद हैं या किसी भी परेशानी में हैं, उन्हें इस मौके को गंवाना नहीं चाहिए। जामा मस्जिद में एतिकाफ बैठकर, सच्चे दिल से दुआ करें, तो उनकी किस्मत में भी करिश्मा जरूर होगा।
अल्लाह के दरबार में दुआ करने से बड़ी कोई ताकत नहीं है। यह वह इबादत है, जो हर नामुमकिन चीज को मुमकिन बना देती है। हज़रत अली (अ.स.) के करिश्मे और रजब के इस पाक महीने में, हर इंसान को अल्लाह से अपनी मुरादों की कुबूलियत के लिए दुआ करनी चाहिए।
तो आइए, जामा मस्जिद के इस एतिकाफ में शामिल होकर अपनी किस्मत को बदलने और अल्लाह की रहमत को पाने का मौका न चूकें।
लखनऊ की ऐतिहासिक शिया जामा मस्जिद, नेपियर रोड में तीन दिवसीय एतिकाफ का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यक्रम 13 जनवरी 12 रजब की रात से शुरू होकर 16 जनवरी की शाम तक चलेगा।
इस एतिकाफ का उद्देश्य समाज में नैतिक सुधार लाना, अल्लाह के करीब होना, गुनाहों की माफी और दुआओं की कुबूलियत है। एतिकाफ के दौरान मस्जिद का शांत और रूहानी माहौल लोगों को आत्मिक सुकून और अल्लाह की बरकतें पाने का अवसर देगा।
कार्यक्रम का शेड्यूल:
शुरुआत: 13 जनवरी (सोमवार रात) 12 रजब पहुंच जाय,
सहरी करके रोजा रखेंगे।
तीन दिन रोजा रखना है।
समाप्ति: 16 जनवरी (गुरुवार शाम)
स्थान: शिया जामा मस्जिद, नेपियर रोड, लखनऊ
बिस्तर ,कपड़े खाने पानी के सामान के साथ कुरान और दुआ की किताबें साथ लाएं।
मस्जिद के अनुशासन और एतिकाफ के आदाब का पालन करें।
नियत और इखलास के साथ शामिल हों।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:
के. पी. खान भाई
📱 मोबाइल: +91 9919338996
"इस रजब में आइए, अल्लाह की रहमतें और बरकतें हासिल करें और अपनी रूह को पाक करें,और दिली मुराद पाए"
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