लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें: पिक्चर गैलरी, घंटाघर, वसीका कार्यालय और हुसैनाबाद ट्रस्ट बदहाल हाल में सिमटी शान

पिक्चर गैलरी: ऐतिहासिक धरोहर, बदहाल हालत में सिमटी शान
अली मुस्तफा की रिपोर्ट
20 दिसंबर, लखनऊ।आज जब तहलका टुडे के एडिटर सैयद रिजवान मुस्तफा के साथ पिक्चर गैलरी पहुंचा, तो वहां का दृश्य अवध के गौरवशाली इतिहास और वर्तमान की लापरवाही का कड़वा सच दिखा रहा था। नवाबों की कला और शान का यह प्रतीक आज उपेक्षा के अंधकार में खोता जा रहा है। गैलरी के पास वसीका ऑफिस (दस्तावेज कार्यालय) और आसपास के इलाकों की स्थिति इस ऐतिहासिक धरोहर की दुर्दशा का साफ उदाहरण पेश करती है।

वसीका ऑफिस: धरोहर की अनदेखी का अड्डा

वसीका ऑफिस में दाखिल होते ही सबसे पहले नजर पड़ी गर्द-धूल खाए कंप्यूटरों और टूटे-फूटे फर्नीचर पर। यहां काम करने वाले चार बाबुओं और तीन चपरासियों की व्यवस्था है, लेकिन हकीकत में तीन बाबू और केवल एक चपरासी ही दिखाई दिए। ऑफिस में बिखरे हुए फटे और खस्ताहाल दस्तावेज यह कहानी खुद बयां करते हैं कि यहां इतिहास के दस्तावेजों को किस कदर उपेक्षित रखा गया है।
इस ऑफिस पर सरकार हर साल लगभग 40 लाख रुपये खर्च करती है । यह रकम कर्मचारियों की तनख्वाह और रखरखाव के लिए होती है, लेकिन इसके बावजूद यहां का कामकाज लचर है। साल भर में लगभग 20 हजार रुपए महीने 900 लोग वसीका लेने आते हैं, लेकिन कर्मचारियों को इस कार्यालय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि तक की जानकारी नहीं है। पूछने पर वे आवेदकों को सीधे दिल्ली के आर्काइव विभाग या इंदिरा भवन के अल्पसंख्यक विभाग के एसपी तिवारी से मिलने की सलाह दे देते हैं। यह रवैया इस बात का प्रतीक है कि यहां न तो काम के प्रति गंभीरता है और न ही धरोहरों के संरक्षण की कोई भावना।

पिक्चर गैलरी: नवाबी संस्कृति का प्रतीक

पिक्चर गैलरी में प्रवेश करने के लिए टिकट काउंटर पर लंबी कतारें लगी थीं। अंदर दाखिल होते ही गैलरी का भव्य वातावरण और बड़े-बड़े नवाबी चित्र नजर आते हैं, लेकिन दीवारों पर दरारें और जर्जर छतें गैलरी की बदहाल स्थिति को साफ उजागर करती हैं।

1838 में नवाब मोहम्मद अली शाह द्वारा बनवाई गई यह गैलरी कभी अवध के नवाबों की शान और कला का जीवंत प्रतीक थी। इसके चित्रों में इस्तेमाल किए गए रंग, जो हीरों से बनाए गए थे, और हाथी की खाल से बने कैनवस इसकी अद्वितीयता को दर्शाते हैं। खास बात यह है कि इन चित्रों की आंखें ऐसा आभास देती हैं कि वे आपको हर ओर से घूर रही हैं। यह अनुभव हर आगंतुक के लिए रोमांचकारी और अविस्मरणीय है।

तालाब और आसपास का क्षेत्र: एक अनदेखा सौंदर्य

पिक्चर गैलरी के सामने स्थित तालाब, जो कभी नवाबी युग की सुंदरता और वास्तुकला का हिस्सा था, आज गंदगी और उपेक्षा का शिकार है। तालाब के चारों ओर की सफाई व्यवस्था बेहद खराब है। तालाब में पानी का स्तर भी काफी नीचे चला गया है, जो इसके संरक्षण की तत्काल जरूरत को दर्शाता है।

पास ही हुसैनाबाद ट्रस्ट का ऑफिस है, जिसके चेयरमैन लखनऊ के जिलाधिकारी हैं। यह ट्रस्ट हुसैनाबाद की ऐतिहासिक धरोहरों के रखरखाव के लिए जिम्मेदार है, लेकिन कार्यालय की स्थिति देखकर यह साफ होता है कि इस जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं लिया गया। गंदगी और टूटी-फूटी संरचनाएं यहां के हालात की गवाही दे रही थीं।

घंटाघर और अन्य धरोहरों की स्थिति

पिक्चर गैलरी के आसपास का क्षेत्र, जिसमें हुसैनाबाद घंटाघर, सटकंडा और चोटी इमामबाड़ा जैसे स्थल शामिल हैं, कभी लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान थे। घंटाघर, जो देश का सबसे ऊंचा घंटाघर है, अपनी भव्यता के बावजूद देखभाल की कमी से जूझ रहा है। सटकंडा, जिसे नवाबी युग में बाबुल के झूलते बगीचों की तरह बनाने की कोशिश की गई थी, अब अधूरी और जर्जर संरचना के रूप में खड़ा है।

जमीनें और दरगाह: अनमोल खजाना उपेक्षा में दफन

हुसैनाबाद ट्रस्ट के अंतर्गत पिक्चर गैलरी, तालाब, और आसपास के क्षेत्र की हजारों बीघा जमीनें आती हैं। इनमें कई प्रमुख दरगाहें और ऐतिहासिक स्थल शामिल हैं। इन जगहों की सांस्कृतिक और धार्मिक महत्ता के बावजूद, इनकी देखभाल के लिए न तो पर्याप्त संसाधन हैं और न ही प्रशासनिक इच्छाशक्ति।

सरकारी और प्रशासनिक उपेक्षा का दंश

सरकार और हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा इन ऐतिहासिक स्थलों की उपेक्षा स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। गैलरी के पत्थरों पर उगी काई, दीवारों पर लगी दरारें, और चारों ओर फैली गंदगी यह बताती हैं कि यहां संरक्षण का काम न के बराबर हो रहा है।

क्या होना चाहिए?

पिक्चर गैलरी और इससे जुड़े अन्य स्थलों की स्थिति सुधारने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकार को चाहिए कि वह इन धरोहरों के संरक्षण के लिए एक व्यापक योजना तैयार करे। इसके तहत संरचनाओं की मरम्मत, सफाई व्यवस्था, और इन स्थलों की ऐतिहासिक महत्ता को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाए।

इन स्थानों को पर्यटन स्थलों के रूप में विकसित करना न केवल लखनऊ की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में संरक्षित रहेगा।

नवाबी शान को वापस लाने की अपील

पिक्चर गैलरी, जो लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान है, को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। यह केवल एक इमारत नहीं, बल्कि अवध की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। इसकी बहाली लखनऊ की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।


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